कुछ वर्ष पूर्व कांग्रेस के शासन काल में गांधी जयंती के अवसर पर समाचार पत्र में आई एक रिपोर्ट ने सहसा चैंकाया था. , धर्म और जाति पूछ कर ही नौकरियां बहाल करेंगी कम्पनियाँ। यह रिपोर्ट तत्कालीन अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री माननीय सलमान खुर्शीद के हवाले से आई है। किसी आम आदमी ने यह नहीं कहा है। इस रिपोर्ट के अनुसार निजी या सरकारी हर कम्पनी को धर्म और जाति पूछ कर ही नौकरियाँ बहाल करनी होंगी। एक ओर युवा समाज में धर्म और जाति के खानों से बाहर निकलने की छटपटाहट देखी जा रही है। दूसरी ओर माननीय मंत्रीजी धर्म जाति से बाहर निकल आई कम्पनियों पर इस आयोग के नाम इसमें प्रवेश करने के लिये दबाव बना पुनः अपनी घटिया सोच का परिचय दे राजनीति खेलने के लिये जमीन तैयार कर रहे हैं। आरक्षण का अस्त्र जब विकास के पहिये को आगे न ले जा सका तो अब सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के नाम पर समान अवसर आयोग नामक नया शिगूफा छोड़ा गया है। वास्तव में समाज का विकास करना तो यहाँ मुख्य उद्देश्य है ही नहीं। विभाजन का खेल खेल कर अपनी राजनीति चमकाने की यह भी एक और कवायद भर है। मंत्री से मेरा अनुरोध है पहले वे कश्मीर में तो देश के सब लोगों के लिये समान अवसर ले आयें पिछले साठ वर्ष में वह कहाँ से कहाँ तक पहुंच गया है। जिसने कश्मीर के स्वर्ग को नरक में ढकेल दिया है। कौन है इसके लिये जिम्मेदार? कांग्रेस की यही एकांगी सोच और भेदभावपूर्ण नीतियाँ जिसने जब भी राज किया, हमेशा समाज को तोड़कर राज किया है।
जनता जानती है आप जिस आयोग की बात कर रहे हैं वह क्या है। समान अवसर के नाम पर मात्र मुस्लिम समाज के लिये एक नया संरक्षणवाद है। इस देश का इतिहास गवाह है नेताओं की गलत सोच ने ही भारत के अन्दर और बाहर चारों ओर दुश्मन की फौज खड़ी की है जो किसी न किसी बहाने इसे तोड़ने नोचने के लिये तैयार रहती है। इस्लामिक पूर्वाग्रह ने इस देश के टुकड़े कर आतंक की जो जमीन तैयार की है आप उससे बाहर निकलने की सोचिये न कि आप ऐसी और नई जमीन तैयार करंे जिन्हें इस प्रकार का संरक्षणवाद चाहिये उन्हें भेज दीजिये उन मुल्कों में जहाँ सब कुछ उनके लिये है। भारत में रहे तो सबके जैसे होकर रहे। जो अन्य को मिलता है वहीं उनको मिले। समान रूप से अपने बलबूते न केवल खुद उठे, इस देश को भी उठाये। संरक्षणवाद आदमी का कभी भला नहीं करता, उसको कमजोर करता है मन में विभेदकर द्वेष भरता है। क्या आप इस सोच को नहीं जानते हैं। मानव मन को बांटने की नीति का अंत कितनी दूर तक घाव दे जाता है, जिन्ना को पढ़िये और जानिये। ऐसी ही मांगों से उपजी विभाजन की खाई ने इस धरती को लहूलुहान किया था जिसे देख उसका मन भी चीत्कार कर उठा था। अपने किये पर पछतावा भी हुआ था। किंतु तरकस से निकला हुआ तीर कब वापिस आया है। विभाजनकारी नीति के नुकीले दांत किसी का भला नहीं करते बल्कि सबका सुख चैन अवश्य छीन लेते हैं। आज पड़ोस में क्या हो रहा है, जानते है न आप। आपकी नीतियाँ समानता का क्यों नहीं संदेश देती। आप ऐसे उपाय क्यों नहीं सोच पाते कि सब कहें वाह क्या बात कही है। हमें किसी आरक्षण संरक्षण की जरूरत नहीं है, हमें खुद की क्षमताओं पर भरोसा है। जिसने इस भरोसे पर भरोसा किया है उसी ने पहाड़ की ऊँचाइयाँ भी लांधी हैं।
सरकार ने अब तक भेदभाव के जितने खाने बना रखे हैं लगता है वेाट की सौदागिरी में कम पड़ने लगे हैं। ऐसी नीतियों से अकर्मण्यता का विस्तार ही हुआ है कुछ सुधरा तो दीखता नहीं। सरकारी संस्थानों की क्या दशा है यह किसी से छुपा नहीं है। फिर सरकार देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर बनाने की कोशिश में लगी कंपनियों के साथ भी संरक्षणवाद के नाम पर भेदभाव के खेल खेलने क्यों चली आई है। जनता की मेहनत की कमाई से खड़े किये गये सरकारी उपक्रम उसके द्वारा पालित भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ कर एक-एक कर बंदी का दंश झेल रहे हैं। निजी कंपनियाँ अथक प्रयासों से अपने अस्तित्व को बचाये हुये हैं, शायद सरकार चाहती है कि स्वायत्तशासी उपक्रमों के हाथों में बची अर्थव्यवस्था की रीढ़ भी टूट जाये और धीरे-धीरे वे भी मंदी के कगार पर पहुंच भीख का कटोरा लिये दर-दर की खाक छानते नजर आयें।
मंत्री जी ईमानदारी से बताइये आपके मन में यह कौन सा मन बोल रहा है, एक स्वधर्म का आग्रही मन या एक भारतीय मन। एक सच्चा भारतीय तो इस प्रकार के विभाजनकारी अवसरों से विकास की बात नहीं कर सकता। क्योंकि इनसे मानव का विकास हो ही नहीं सकता। आप कब अपने धार्मिक पूर्वाग्रहों से बाहर निकलेंगे। यदि आप जैसे मंत्री स्तर तक पहुंचे लोग ही देश के व्यापार जगत तक को पाक साफ नहीं रहने देंगे, हर कहीं धर्म जाति के विभाजननकारी विष बीज बोयेंगे तो आम आदमी से कैसे उम्मीद की जा सकती है कि वह इन भेदों से ऊपर उठकर केवल भारतीय बनकर सोचेगा। यदि आप कहें कि यह एक मजहबी पूर्वाग्रही की नहीं बल्कि एक निष्पक्ष भारतीय मन की आवाज होती तो समान अवसर आयोग के विधेयक में बिना किसी का नाम लिये केवल आर्थिक पिछड़ेपन और कमजोर वर्ग की आवाज सुनाई देती न कि अल्पसंख्यक बहुसंख्यक धर्मजाति के विभेदीकरण के स्वर। कब तक आप बहुसंख्यक होकर भी अल्पसंख्यकों से पीछा छोड़ेंगे।
आप भी जानते है कि आज आप जहाँ तक पहुँचे हैं, उसमें बहुसंख्यक के उदार ईमानदार मानवता भाव ने ही सहयोग दिया है। वैमनस्य के बीज बोने वाले इस प्रकार के कानूनों को किसी भी देश समाज में स्वीकृति नहीं दी जा सकती है। जिनमें बार-बार संरक्षण आरक्षण के नाम आदमी की क्षमताओं पर चोट पहुँचा अयोग्य को बिठाने की आधारशिला में भ्रष्टाचार के लिये चोर दरवाजे खोल जायंे। भेदभाव का जहर पिलाते-पिलाते क्या कांग्रेस अब तक थकी नहीं है जो इतना नीचे तक उतर आई है। यदि इसमें थोड़ा सा भी जनहित के प्रति उत्तरदायित्व का भाव बचा है तो सबसे पहले उस मंहगाई पर लगाम लगाये जो उसने अपने पिछले पांच छः साल के राज में जनता को दे दी है। इसने तो जनता से वह दाल रोटी भी छीन ली जो कभी गरीब का भोजन कही जाती थी। क्यों इस देश में कोई भी मूल्य स्थिर नहीं रहे। क्यों नहीं यहाँ पैसे पैसे की कीमत? चलन से बाहर होती अठन्नी क्यों प्रचलन से गायब हो गई? जब कीमत निर्धारण में ये सब जिंदा है। सब जानते हैं सरकार समस्याओं को देखकर भी इसलिये अनदेखा किये रहती है क्योंकि ये भी काली कमाई के जरिये हैं। जिन पर ध्यान देने की विशेष जरूरत है सरकार का ध्यान उस ओर कभी नहीं जाता।
किसी एक के हितों पर बार-बार आरी चला किसी वर्ग विशेष का हितसाधन करने वाला देश का हितचिंतक नहीं कहा जा सकता। कांग्रेस को अब अपनी इन विभेदकारी नीतियों पर लगाम लगानी चाहिये। इस प्रकार की नीतियों ने जनता में क्या संदेश दिया है उस पर गंभीरता से सोचिये और यदि सब कुछ जानबूझकर किया जा रहा है तो यह कदम शोभनीय तो कतई नहीं है बल्कि घोर निंदनीय है। कितना डुबोना चाहते हंै इस देश को? विषबेल रोपकर अमृत की कामना मात्र छलावा है। विष से विष ही जन्म लेता है वह अमृत नहीं दे सकता और यह भी नहीं हो सकता कि जो एक के लिये विष हो वह दूसरे के लिये सुधा बन जाये। विष तो विष का ही प्रभाव छोड़ेगा। धर्म जाति की दीवारें इस देश में पहले ही बहुत हैं इन्हें गिराने की बात हो न कि इन्हें और उठाने की।
अमीरी गरीबी मिटाने की बात कीजिये, आतंक मुक्ति की बात कीजिये, महंगाई से जनता को निजात दिलाने की बात कीजिये। प्रदूषण मुक्त स्वस्थ सुन्दर समाज देने की बात कीजिये। जाति धर्म आधारित विभाजन रेखायंे आदमी को इंसाफ नहीं दे सकती। अतः इनसे मुक्त होने की बात कीजिये। बहुत बांट दिया है देश अब इसमें कुछ जोड़ने की बात कीजिये न कि कुछ तोड़ने की। अतः जितनी जल्दी हो सके आप इस आयोग विधेयक का पटापेक्ष कर दीजिये। इसमें ही जनता का भला है इसमें ही देश का भी हित है।
समान अवसर आयोग के फलित