आज शिक्षा का आधुनिकीकरण का जामा पहन कर मजाक बन कर रह गयी है। स्कूल राजनीति की पाठशाला बनकर रह गये हैं। डर, आदर, सम्मान का लक्ष्य सरकारी स्कूलों से भागकर कहीं अंधेरी गुफा में छुप गये हैं। गैर सरकारी स्कूलों का व्यवसायीकरण चरम सीमा पर है। पैसा दो विद्या लो, आज विद्यालयों में छोटे-बड़े राजनेताओं की खूब मनमानी चल रही है। अनगिनत पैसा शिक्षा के नाम पर खर्च होता है, मगर विद्यार्थी के हिस्से में तो एक तिहाई हिस्सा नहीं भी आता। स्कूलों में कम्प्यूटर भेजे गए मगर कहीं कम्पयूटरों के लिए भवन नहीं, कहीं बिजली नहीं, कहीं शिक्षक नहीं। इस हाल में ये कम्प्यूटर शिक्षकों के लिए जी का जंजाल बन गये हैं। वैसे ही स्कूलों के नाम पर आयी किताबें व मिड डे मिल पर व्यर्थ का पैसा व समय गंवाया जा रहा है। चक्का जाम व हड़तालें भी पढ़ायी में एक व्यवधान हैं। सरकारी स्कूलों की रीढ की हड्डी बड़ी कमजोर हो चुकी है। क्या सरकारी स्कूल ग्रेडिंग प्रणाली सहन कर पायेंगे। जैसे-जैसे शिक्षा का आधुनिकीकरण हो रहा है वैसे-वैसे ही शिक्षा का स्तर घटता जा रहा है। इसका खामियाजा मध्यम वर्ग को भुगतना पड़ता है। शिक्षा प्रणाली बदलने के बजाय उसकी कमियों को दूर करने के प्रयास करने चाहिये। विद्यालयों को राजनीति का अखाड़ा बनने से बचाना चाहिए, गुरू व शिष्य राजनीति से दूर रहें, अधिकारियों के सिवाय विद्यालयों में राजनेताओं का हस्तक्षेप न हो। गुरू शिष्य के बीच डर, आदर, सम्मान व प्रेम होना जरूरी है। तभी शिष्य के अन्दर गुरू के प्रति अटूट विश्वास होगा, यही विश्वास दोनों के अन्दर पढ़ने व पढ़ाने का जुनून पैदा कर पायेगा, तभी दोनों अपना लक्ष्य समझ पायेंगे और भविष्य में देश को सुचारू रूप से चलाने के लिए अच्छे नागरिक मिल जायेंगे, वहीं देश की इस भ्रष्ट राजनीति, भ्रष्ट कार्य प्रणाली में कर सुधार पायेंगे। शिक्षा ही देश की रीढ है, यह कदापि कमजोर नहीं पड़नी चाहिए वरना देश एक बार फिर धराशायी हो जायेगा। साथ ही हम और हमारा वैभव भी सब नष्ट हो जायेगा, अगर यह बात पूरा हिन्दुस्तान समझ गया तो यही हमारी सच्ची देश भक्ति होगी
शिक्षा का आधुनिकीकरण