शुभकामनायें


अच्छा तो 
आप भी कवि हैं,
लेख्क भी हैं
तब तो आपने खूब 
कागज काले किये होंगे
लेकिन मान्यवर!
जरा यह तो बताईये
इस चैखट के बाहर
आपको जानता कौन है?
चन्द स्थानीय टुटपूंजी
पत्र-पत्रिकाओं
सहयोगी संकलनों के अतिरिक्त
आपको छापा किसने है?
तब क्या अर्थ है
कलम घिसने का?
कल जब
आप नहीं होंगे
आपका सारा श्रम
दीमक चाट जायेगी
या, किसी चाटवाले के
काम आयेगी
और आप
दीवार से उतरे
कलेण्डर की तरह
पल भर में
भुला दिये जाओगे।
ये सब इसलिये
कि बगैर शागिर्दी के ही
आप अकेले
अखाड़े में 
मुगदर घुमा रहे हैं।
अब भी, अगर आप
इस फिसलन पर
मजबूती से 
पांव जमाना चाहते हैं
तो जरूरी नहीं कि आप
जन्मजात कवि हों
लेखक हों
आपके भावों, विचारों की
मौलिकता भी बेमानी है
अगर कुछ जरूरी है
तो वह है-
चक्रव्यूह का भेदन मंत्र
साम, दान, दण्ड, भेद कर नीति
मुखौटों की सही पहचान
गिरगिट की तरह
रंग बदलने की काबिलियत
उसके बाद
आप कवि, लेखक
कुछ हो या न हों
मंचों, रेडियो, टी.वी.
ब्लाॅग, फेसबुक पर
आप ही आप 
नजर आयेंगे
साहित्यिक गलियारों में आप
युगद्रष्टा के नाम से 
पुकारे जायेंगे
संकलन, पाकेट बुक
पाठ्य पुस्तकों में
आपका नाम
सूरज सा चमकेगा
आलोचक आपके
रूप, गुण, चातुर्य का 
ऊँचे से ऊँचा मूल्य आकेंगे
आपका स्वागत होगा
अभिनंदन होगा
सरकारी, गैर सरकारी
सारे ईनाम, इकरार, सम्मान
आपके कदमों पर होंगे।
इसीलिये कहता हूँ
व्यर्थ मगज़मारी छोड़ो
कबाड़ जमा करने में
रखा ही क्या है?
छोटे-मोटे किरानियों से
उनका कच्चा माल
कौड़ी के मोल खरीदो
झाड़-फटककर
आकर्षक लेबिल-पैकिंग में
वही कूड़ा
सोने के भाव बेचो
कोई बने या न बने
खुद मालामाल बनो
तब आपकी साख पर
कच्चा माल आप तक
दौड़कर आयेगा
औ' आपके ट्रेडमार्क पर
हाथों हाथ बिक जायेगा।
उठो!
सुप्त मसिजीवी उठो
और इस कीचड़ के खेल में 
कमर कसकर
कूछ पड़ो
हमारी रंगारंग शुभकामनायें
आपके साथ हैं..!!!