तुष्टिकरण



तुष्टिकरण ने कर दिया ऐसा बण्टाढार।
अमरनाथ में गोलियां हज को लाख-हजार।।
मातृभूमि डायन हुई, गंगा हुई चुड़ैल।
राजनीति वेश्या बनी, जनता बनी रखैल।।
वोटों की खातिर हुआ है रोजा इफ्रतार।
उपवासी की भूख की है किसको दरकार।।
लाशों पर लाशें गिरें, नेताओं की मौज।
मिलती नये चुनाव को मतदाता की पफौज।।
केशर की क्यारी बनी आज गले की पफाँस।
नेहरूजी की गल्तियां, भोगे देश-समाज।।
समझौते करते रहो, कटते रहें जवान।
बार-बार पिटते रहो, मेरा देश महान्।।
प्रान्त-प्रान्त में हज-भवन, कदम-कदम इफ्रतार।
केसर की क्यारी सहे नित प्रति नर संहार।।
बौ(-जैन-सिख-दलित सब, अब समाज से भिन्न।
वोटों के हित बहुल को किया अल्प-हित खिन्न।।
जामा मस्जिद बैठकर, रहा इमाम दहाड़।
शाही संरक्षण मिला, चूहा बना पहाड़।।
हिन्दू-हित की बात तो रही सदा ही त्याज्य।
जनता नित कटती रहे, काश्मीर अविभाज्य। ु