भारत में विदेशियों द्वारा कई अनाज , दालें , फल , फूल व खर पतवार कृषि या उद्यानीकरण शुरू किया गया और इन खाद्य पदार्थो व खर पतवारों ने उत्तराखंड ही नहीं भारत की सामजिक , सांस्कृतिक व आर्थिक स्थिति में आमूल चूल परिवर्तन किये। उत्तराखंड परिवेश संदर्भ में निम्न खाद्यान व खर पतवारों न कृषि क्रांति में लाये।
१ -मकई
मकई भारत में नहीं होती थी। मकई का जन्म स्थान लैटिन अमेरिका है जहां 3000 BC वर्ष पहले मकई की खेती शुतु हो गयी थी। मकई अमेरिका से कोलंबस स्पेन लाया व जहाँ से मकई फ़्रांस , इटली पुर्तगाल गयी व पुर्तगालियों द्वारा भारत में सत्तरहवीं सदी में परिचय कराया गया। मकई /मुंगरी का भारत में कब व कहाँ अवतरण हुआ पर अनिष्क मौन हैं बस यही मिलता है कि मकई सत्तरहवीं सदी में भारत लायी गयी व (महान अनाज ) के कारण मक्का से नाम संबंध हुआ। पुर्तग़ालिओं द्वारा शायद मकई केरल व गोवा में बोया गया होगा व यहां से भारत के अन्य भागों व चीन में मकई फैली। मुगल काल में मकई की खेती होने लगी थी।
उत्तराखंड में मकई शायद अठारहवीं सदी में शुरू हुआ होगा व ब्रिटिश काल में वृद्धि हो गयी होगी। ब्रिटिश शासकों ने मकई को महत्व अवश्य दिया किन्तु कमसल अनाज नाम देने से गेंहू को महत्व मिला।
आज उत्तराखंड में 17 हजार तन मकई की पैदावार होती है जो खपत के मामले में कम ही है। मकई ने खरीफ की फसल में क्रान्ति आयी और कोदा /मंडुआ /रागी व कोटु की फसल को पीछे धकेला। गाँवों के आस पास कोटु उगाना तो ब्रिटिश काल में बंद हो गया था। आस पास के खेतों में सर्वत्र मकई बोई जाने लगी। मकई ने रोटी , ही नहीं पकोड़ी , लगड़ी व दाने /बुखण में क्रान्ति ला दी। मकई ने चारा संस्कृति व आर्थिक परिश्थिति में भी बदलाव लाया।
२- आलू
आलू संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है जमीन के अंदर का। आलू भी दक्षिण अमेरिका का भोजन था व पेरू में 2500 BC पहले उगाया जाता था। कोलंबस की अमेरिकी यात्रा के बाद ही आलू यूरोप आया व यूरोप से भारत। याने सोलहवीं सदी के बाद ही आलू का प्रवेश भारत में हुआ। जहां तक उत्तराखंड का प्रश्न है कैप्टेन यंग ने मसूरी (1825 लगभग ) की पहाड़ियों में आलू की खेती शुरू की। उत्तराखंड में आलू की खेती ने सांस्कृतिक ही नहीं आर्थिक स्थिति को भी बदला वा आलू खेती के अतिरिक्त आलू का आयात एक सत्य है।
३- मिर्च
आज मिर्च के बगैर भारतीय भोजन सोचा नहीं जा सकता किन्तु मिर्च /चिलीज वास्तव में दक्षिण अमेरिका पेरू का वासी है और 7000 सालों से वहां प्रयोग में रहा है। कोलंबस बाद मिर्च यूरोप पंहुची व वास्कोडिगामा के भारत पंहुचने बाद मिर्च का परिचय भारत से हुआ। सोलहवीं सदी में मिर्च की खेती भारत में शुरू हुयी। उत्तराखंड में पता नहीं कब मिर्ची खेती शुरू हुयी किन्तु यह सत्य है कि ब्रिटिश काल शुरू होने से कुछ समय पहले अवश्य ही मिर्च उत्तराखंड आ चुकी थी।
मिर्च मसाले ने त्रिफला , पीपल , टिमुर , तेजपत्ता मसालों को सर्वथा भुला ही दिया। मिर्च ने भी सामाजिक , सांस्कृतिक व आर्थिक परिवर्तन लाने में कामयाब हुयी। आज मिर्च का आयात एक सत्य है। आलू ने पिंडालू सब्जी को पीछे धकेला।
४ - लोबिया /राजमा या किंडनी बीन्स
उत्तरी भारत में राजमा की दाल अधिक प्रचलित है और उत्तरी भारत में ढाबों रास्ते के चलते फिरते होटलों में राजमा की दाल व भात तो प्रचलित है ही। उत्तराखंड का लोबिया /राजमा प्रीमियम रेंज में आता है। किन्तु वास्तव में राजमा का मूल स्थान भी मध्य मैक्सिको व ग्वातिमाला है। लोबिया लोबिया ने सूंट आदि को पीछे धकेल कर कई सांस्कृतिक परिवर्तन किये। सोलहवीं सदी बाद ही राजमा पुर्तगाली व्यापारियों द्वारा भारत लाया गया। उत्तराखंड में शायद लोबिया का कृषि परिचय सत्रहवीं या अठारवी सदी में हुआ होगा और लोबिया ने कृषि में परिवर्तन किया।
५- कद्दू /खीरा
उत्तराखंड ही नहीं प्रवास में भी आज भी कद्दू को पारम्परिक भुज्जी माना जाता है. कई सांस्कृतिक कार्यक्रम (तेरहवीं , बारखी , श्राद्ध , भागवत अदि ) भोजन में कद्दू आवश्यक भोज्य पदार्थ माना जाता है। जबकि कद्दू /खीरा का मूल स्थान भी अमेरिका /मैक्सिको है जहां ५००० BC सालों से खाया जाता रहा है। कद्दू भी पुर्तगाली व्यापारियों द्वारा भारत आया और मुख्य भोज्य पदार्थ बन गया। उत्तराखंड में संभवतः कद्दू आठवीं या उन्नीसवीं सदी के प्रारम्भ में आया होगा। कद्दू ने कद्दू खरीफ का मुख्य भोज्य पदार्थ बना व बारह महीनों की सब्जी बनने से कद्दू ने सांस्कृतिक बदलाव तो किये ही आर्थिक स्थिति भी सुधारी ।
टमाटर
टमाटर का भी मूल स्थान दक्षिण अमेरिका है। कलमबस अमेरिका यात्रा के बाद टमाटर सोलहवीं सदी में यूरोप आया किन्तु विषैला फल गलत छवि के कारण बहुत वर्षों तक लोगों ने नहीं अपनाया। भारत में भी टमाटर का प्रचलन 1850 के बाद ही शुरू हुआ। पहले पहल टमाटर अंग्रेज अधिकारियों के लिए उगाया जाता था और संभवतया बीसवीं सदी में ही टमाटर की खेती पहाड़ों में शुरू हुयी और आश्चर्य है कि आज भी सामन्य परिवारों की टमाटर मुख्य खेती न बन पायी। टमाटर आयात होने से आर्थिक ष्टि पर असर डालने में सक्षम है।
सेव
सेव को ब्रिटिश पादरी ने सन १८ ६५ में हिमाचल , भारत लाये व ब्रिटिशरों ने १९१७ से सेव कृषि का विस्तार किया व इसी समय उत्तराखंड में भी सेव कृषि शुरू हुयी होगी। पिछली सदी तक सेव कई जगहों पर मुख्य फल व आर्थिक भोज्य पदार्थ था किन्तु अब तकरीबन कम ही उगाया जा रहा है। सेव के आयात ने कई परिवर्तन लाये हैं।
पपीता
पपीता भी भारत में पुर्तगाली लाये। संभवतः ब्रिटिश काल में पपीता की कृषि शुरू हो गयी होगी। पहाड़ी भागों में पपीता को वह महत्व न मिला जो मैदानी हिस्सों में मिला शायद ओस या बर्फ पपीता सहन नहीं कर सकता भी एक कारण हो।
पहाड़ी भागों में पपीता आयत होता आया है
अमरुद
दक्षिण अमेरिका का मूल अमरुद को भी पुर्तगाली व्यापारियों ने भारत से सत्रहवीं सदी में परिचय कराया। उत्तराखंड में छित पुट ब्रिटिश शासन काल में ही अमरुद खेती शुरू हुयी होगी। अमरुद ने जीवन शैली पर बदलाव लाया (आयत) . अमरुद की बागवानी मैदानों में अधिक प्रचलित रही।
चाय
चाय ने सारे जग को प्रभावित किया। वास्तव में चाय आसाम व चीन में पायी जाती थी किन्तु अंग्रेजों ने चाय को पेय रूप में दुनिया को दिया व चाय का विपणन १८०७ के लगभग से शुरू हुआ। ब्रिटिश काल में यूरोपीय व्यारियों ने उन्नीसवीं सदी मध्य या अंत में चाय बगीचे भी उत्तराखंड में लगाए किन्तु स्थानीय श्रमिक उपलब्ध न होने चाय के बगीचे विकसित न हो सके। फिर भी चाय कई सामजिक , सांस्कृतिक व आर्थिक परिवर्तन लायी और आज सभी अवयव दूध , चीनी, चाय आयत किये जाते हैं। जीवनशैली बदलने के अतिरिक्त चाय के कारण चीनी पर निर्भरता बढ़ी
मूंगफली
अफ़्रीकी मूल की मूंगफली भी पुर्तगाली लोगों द्वारा भारत लाया गया। उत्तराखंड में कम उगाई जाती है किन्तु आयात होती है व मूंगफली ने जीवन शैली भी बदली।
तम्बाकू
तम्बाकू भी भारत में पुर्तगाली व्यापारियों द्वारा पंहुचा व संस्कृति , गरूर का हिस्सा बन गया। तम्बाकू ने कई सामाजिक , सांस्कृतिक बदलाव उत्तराखंड में किये जैसे हुक्का पर सोड़ केवल सजातीय लोग ही मार सकते थे। हुक्का पानी बंद कहावत भी तम्बाकू की देंन है। तम्बाकू ने जीवन शैली बदली व कई बीमारियों को जन्म दिया।
अरंडी
अरंडी का भी पुर्तग़ालिओं ने भारत से परिचय कराया। बीसवीं सदी के अंत तक अरंडी जंगली पौधा माना जाता रहा है अब कुछ कुछ इसका व्यवसायिक प्रयोग होने लगा है
गेंदा /मेरीगोल्ड
आज ऐसा समझा जाता है कि गेंदा (संतराज ) भारत की सांस्कृतिक पहचान है किन्तु गेंदा को भी पुर्तगाली ही भारत लाये। शायद
रामबांस
राम बांस या घी कुँवार एक जंगली पौधा है जो बाड़ का काम करता है व पहले साबुन का भी काम करता था। रामबांस भी पुर्तगाली व्यापारी भारत में लाये
लैंटिना
लैटिना या कुर्री झाडी वास्तव में ब्रिटिश पादरी बागवानी हेतु फूल रूप में लाये थे जिसने उत्तराखंड में प्रकोप फैला डाला है। आज लैन्टीना के कारण कई जंगली पेड़ पौधे निपट रहे हैं व गाँव के नजदीक कई जानवरों के छूपने का माध्यम बन गया है।
कॉंग्रेस घास
कॉंग्रेस घास (पार्थेनियम ) जिसे कई नामों से पुकारा जाता है कुणज जैसा ही दिखता है। कॉंग्रेस शासन काल में अमरीका से गेंहू के साथ यह खर पतवार भारत में आ गया और आज सबसे अधिक हानिकारक खर पतवार बन बैठा।
वैसे पुर्तग़ालियों द्वारा पाइन एपल , काजू आदि भी लाया गया किन्तु ये वनस्पतियां उत्तराखंड में जगह नहीं बना आयी पाइन एपल या अनन्नास तो उगाया जा ही सकता था।
उत्तराखंड की नई कृषि में पुर्तगालियों द्वारा लाये गए खाद्यानों का योगदान महत्वपूर्ण है। इन खाद्यानों ने सामजिक , सांस्कृतिक व आर्थिक परिवर्तन किये।