उत्तराखंड में स्वास्थ्य पर्यटन

  उत्तराखंड ब्रिटिश काल शुरू होते ही पलायन से जूझता आया है। सम्पूर्ण उत्तराखंड की आर्थिक दशा कृषि पर आधारित थी , मैदानों की भांति पहाड़ों में सामन्य उद्यम लग नहीं सकते थे ; उत्तराखंडी कृषि में पारम्परिक शैली से चिपटे थे और जनसंख्या वृद्धि हो रही थी तो रोजगार हेतु पलायन विकल्प ही बचा रहा।  यह यथास्थिति स्वतंत्रता के उपरान्त भी बनी रही और पलायन में वृद्धि होती गयी कि ग्रामीण उत्तराखंड के सैकड़ों गाँव खाली होते गए।  उत्तराखंड आंदोलन का मुख्य ध्येय था कि उत्तराखंड  में उद्यम लगें व भरी मात्रा में पलायन विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन रुके।  किन्तु उत्तराखंड राज्य निर्मित होने के पश्चात भी स्थिति जस तस ही नहीं रही उल्टा पलायन बढ़ता गया।  मुख्य कारण हैं जनसंख्या वृद्धि , कृषि में आधुनिकता या वैकल्पिक कृषि का आभाव या यूं कहिये लाभकारी कृषि व संबंधित उद्यमों का सर्वथा आभाव , मंडियों में पहाड़ियों की न चलने की परेशानी , चिकित्सा , शिक्षा में शहरी व ग्रामीण  क्षेत्रों में भारी अंतर ने पलायन वृद्धि ही की। 


          ग्रामीण उत्तराखंड याने पहाड़ों में पारम्परिक प्राथमिक उद्योग लगना कठिन ही है।  पहाड़ों में पारम्परिक प्राथमिक उद्यमों के स्थान पर वैकल्पिक उद्यम  स्थापित होने से ही ऊद्योगीकरण होगा।  वैकल्पिक उद्यमों में पर्यटन उद्यम पहाड़ों हेतु सबसे कारगार उद्यम  महाभारत काल से पहले से ही मुख्य उद्यम रहा है  भी रहेगा।  इसके साथ साथ जड़ी बूटी निर्यात भी महाभारत काल से ही पर्यटन का संगी उयदं रहा है।   सदियों से ही उत्तराखंड  धार्मिक , प्रकृति आनंद हेतु पर्यटन हेतु प्रसिद्ध रहा है।  वाहनों में गति व यातायात माध्यमों में परिवर्तन से धार्मिक पर्यटन सही माने में पहाड़ों को रोजगार व लाभ देने में असमर्थ है कि धार्मिक पर्यटन विक्लप्तिक उदयोम का स्थान ले सके।  उत्तराखंड के योजनाकारों को उन उन वैकल्पिक उद्यमों विशेषतः वैकल्पिक पर्यटन उद्यमों को प्रश्रय देना चाहिए जो ग्रामीण रोजगार को संबल तो दे ही सके संग संग पर्यावरण को हानि न पंहुचाये व समाज को लाभ भी दिला सके।  

        चिकित्सा पर्यटन विकास ग्रामीण उत्तराखंड हेतु सर्वोत्तम उद्यम माना जा रहा है।  स्वास्थ्य या चिकित्सा पर्यटन का अर्थ है जब रोगी स्वास्थ्य लाभ हेतु दूसरे देश (स्थान ) में पर्यटन करते हैं।  भारत चिकित्सा पर्यटन में संसार में सम्मानजनक स्थान बनाये हुए है। अनुमान है कि संसार का चिकित्सा उद्यम  लगभग प्रतिवर्ष 22 % से वृद्धि होता जाएगा और सन 2026 तक 180 बिलियन $ डॉलर  का हो जायेगा।  याने चिकित्सा पर्यटन मे वृद्धि के अधिक अवसर हैं।  भारत में चिकित्सा पर्यटन उद्यम में 200 % वृद्धि के अवसर अनुमान किये गए हैं और 2020 तक 9 बिलियन $ डॉलर का अनुमान लगाया गया है।  इससे साफ़ है कि चिकित्सा पर्यटन उद्यम सारे जग में विकसित हो रहा है।  

      उत्तराखंड भारत में महाभारत काल से ही चिकित्सा पर्यटन हेतु सर्वोपरि नाम रहा है। ऐलोपैथिक चिकित्सा पर्यटन उद्यम विकास  हेतु हेतु उत्तराखंड को अन्य स्थलों जैसे दिल्ली , तामिलनाडु , मुंबई आदि से प्रतियोगिता करनी पड़ेगी और  ना तो भारतीय ग्राहकों ना ही विदेशी ग्राहकों के मन में  ऐलोपैथी चिकित्सा हेतु में उत्तराखंड प्राथमिकता में नहीं आता है।  हाँ !  वैकल्पिक चिकित्सा  हेतु उत्तराखंड सभी प्रकार के ग्राहकों   हेतु केरल के बाद  पहली पसंद  है। इसका सीधा अर्थ है उत्तराखंड को वैकल्पिक स्वास्थ्य पर्यटन विकास हेतु  कार्य करना आवश्यक है।   वैकल्पिक चिकित्सा पर्यटन शहरों व ग्रामीण दोनों स्थलोंमें रोजगार वा लाभ देने की स्थिति में होता है। 

 वैकल्पिक चिकत्सा के निम्न मुख्य अंग हैं -

 आयुर्वेद चिकत्सा 

योग चिकित्सा 

विज्ञानं भैरव आधारित चिकत्सा 

विपासना चिकित्सा 

भप्याण चिकित्सा या भाप चिकित्सा 

मृदा या मिटटी चिकित्सा 

मूत्र चिकित्सा 

चुभन , या अक्युपंचर और गुल्ल चिकित्सा 

मानसिक चिकित्सा 

धातु , रत्न स्पर्श या अन्य स्पर्श चिकित्सा 

वायु चिकत्सा 

जल चिकित्सा 

हंसी चिकित्सा 

जीवन शैली चिकित्सा 

 उत्तराखंड  आयुर्वेद व योग चिकित्सा पर्यटन व अन्य उपरोक्त पर्यटन विकास हेतु  सर्वोत्तम राज्य है।  प्राकृतिक , भौगोलिक स्थिति व सदियों से उत्तराखंड का प्राकृतिक चिकित्सा में नाम प्रसिद्ध होने से ये सभी चिकत्सा पर्यटन माध्यम पनपना सुगम है।

  योग पर्यटन में उत्तराखंड प्रथम स्थान पर है तो आयुर्वेद पर्यटन मामले में उत्तराखंड केरल राज्य के बाद है।  आयुर्वेद , योग व अन्य प्राकृतिक चिकित्सा मामले में उत्तराखंड की छवि देस विदेशों में बहुत ही सकारात्मक है।  

   आयुर्वेद , योग व अन्य प्राकृतिक चिकत्सा पर्यटन हेतु  पांच छः   प्रकार के इंफ्रास्ट्रक्चर (संसाधन ) की आवश्यकता पड़ती है।  चिकित्सालय , चिकत्स्क , चिकित्सा स्टाफ, दवा , दवाखाना , औषधि  निर्माणशालाएँ ,  औषधि हेतु कच्चा माल , कच्चे माल एकत्रिकरण  व प्राप्ति व्यवस्था व पर्यटन व्यवस्थाएं।  आशा की जाती है कि उत्तराखंड राज्य सरकार , समाज इन चिकित्सा पर्यटन हेतु संसधन जुटाएं , निवेश कराएं व कच्चे माल हेतु व्यवस्था उतपन करें।  

                 आयुर्वेद चिकित्स पर्यटन हेतु उत्तराखंड की धरती सर्वाधिक उपजाऊ धरती है।  आयुर्वेद चिकत्सा पर्यटन विकास हेतु  संसधन। , विश्विद्यालय , महाविद्यालय  , अन्वेषण केंद्र , जड़ी बूटी सग्फई , आयुर्वेद औषधि निर्माण शालाएं , औषधि हेतु जड़ी बूटी उपजाना आदि आवश्यक हैं।  जड़ी बूटी तो जंगल व कृषि से ही प्राप्त होंगे जिसके लिए  विक्लप्तिक कृषि को विकसित करना आवश्यक है।  आयुर्वेद व अन्य प्राकृतिक चिकित्सा पर्यटन रोजगार ही नहीं अपितु कृषि में क्रांति लाने में भी सक्षम है।  राज्य सरकार व समाज को  दिशा में  उठाने आवश्यक हैं जैसे  क्षेत्रों में जड़ी  हेतु कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग हेतु जन जागरण।  

इंफ्रास्ट्रक्चर या संसाधन हेतु निवेश आवश्यक है।  भारत में आयुर्वेद औषधि निर्माता , योग केंद्र व अन्य निवेशकों को प्रत्साहन आवश्यक है।  उत्तराखंड के प्रवासी   चिकित्सा पर्यटन   विकसित  योगदान  दे