उत्तराखंड परिपेक्ष में अमरुद (पेरू) का इतिहास 

उत्तराखंडी नाम - अमरुद 


संस्कृत नाम - कोई नहीं 

हिंदी नाम - अमरुद (कहीं कहीं महराष्ट्र आदि में पेरू भी कहा जाता है 

सामन्य अंग्रेजी नांम -Guava 

Botanical Name - Psidium  guajava 

जन्म मूल स्थान -        मैक्सिको      महाद्वीप   मध्य अमेरिका 

फल की यात्रा -   बहु स्वास्थ्यबर्धी , लाभकारी , उष्णकटबंधीय  अमरुद  का मूल जन्म स्थल मैक्सिको  से  मध्य अमेरिका  तक है।  सैकड़ों साल तक अमरुद  मूल स्थान से वेस्ट इंडीज टापुओं में प्रवेश कर फलता फूलता रहा।  पुरानी दुनिया से अमरुद का परिचय पुर्तगाली या स्पेनी   व्यापारियों ने कराया। 

   रिकॉर्ड अनुसार सबसे पहले किताबी परिचय स्पेनी घुमकड़ इतिहासकार ओवीडो ने कराया (1514 -1557  हैती की यात्रा ) हिस्ट्री ऑफ इंडीज  (1526 ) में  ओवीडो ने  अमरुद वनस्पति का वृत्तांत दिया और इस फल को गुआयाबो नाम दिया।     अधिकतर इतिहासकार व वनस्पति शास्त्री मानते हैं कि  अमरुद का पेड़ स्पेनिश द्वारा  सत्रहवीं सदी अंत में प्रशांत  महासागर  रस्ते से भारत लाया गया।  जब कि एक स्रोत्र बताते हैं कि स्पेनी प्रसांत महासगरीय द्वीपों में ले गए और पुर्तगाली भारत लाये।  यदि प्रशांत महासागरीय द्वीप से अमरुद पेड़ भारत लाया गया तो कोलकत्ता या बंगाल ही वः जगह होगी जहां अमरुद पेड़ आया या दक्षिण भारत।  वैसे  आईने अकबरी अनुवाद में भी अमरुद का नाम आता है किन्तु वह  फल गुआवा(अमरुद ) नहीं अपितु नासपाती रहा होगा।  अमरुद उत्पादन हेतु बहुत कम मेहनत लगती है जिसके कारण अमरुद को भारत के सभी क्षेत्रों में प्रसारित होने में समय नहीं लगा 

 अमरुद जल्दी फैलने वाला व सभी तरह की मिट्टी में उग जाता है और फलता फूलता है तो अमरुद को उगाने कोई दिक्क्त न आयी होगी और समाज ने स्वतः ही अपना लिया होगा।  उत्तराखंड के बारे में अमरुद प्रवेश पर कोई जानकारी नहीं मिलती।  अतः अंदाज लगाना ही पड़ेगा कि अमरुद को देहरादून , सहारनपुर, पीलीभीत  आदि स्थलों में पंहुचने में डेढ़ सौ साल लगे ही होंगे याने ब्रिटिश राज युग में ही अमरुद का अवतरण उत्तराखंड में हुआ होगा  अमरुद उत्पादन हेतु बहुत कम मेहनत लगती है जिसके कारण अमरुद को प्रसारित होने में समय नहीं लगा 

 

   सबसे पहले अमरुद का  उत्पादन भाबर , देहरादून ,  उधम सिंह नगर में ही  शुरू हुआ होगा  और शायद ब्रिटिश राज में प्रसार हुआ होगा।  किन्तु ब्रिटिश गजेटों में अमरुद का नाम मुझे पढ़ने को नहीं मिला।  हो सकता है ब्रिटिश काल में अमरुद फल का महत्व उत्तराखंड में जमा भी  नहीं रहा होगा (नगण्य ) . स्वतंत्रता उपरान्त भी देहरादून में जंगल में अमरुद अधिक उगते थे।  (जैसे कांवली गाँव में गुरुराम राय की बागवानी जो जंगल ही जैसा था  में अमरुद बहुतायत में उगते थे ) 

   पहाड़ों में गर्म जगहों में 3000 - 4500  फ़ीट तक भी अमरुद उगते हैं किन्तु उत्पादनशीलता कम ही होती है।  बारामासा फल देने वाला पेड़ अमरुद कच्चे पके फल , जाम , आइसक्रीम , अन्य बिवरेजेज में उपयोग होता और फलों का राजा कहलाने लायक है।