हिमाञ्जलि

उत्तराखण्ड उत्थान परिषद की वार्षिक बैठक में जाने का मौका मिला। सत्ताईस सालों से चल रहा यह संगठन इस पहाड़ी प्रदेश के समग्र विकास की रूपरेखा तैयार करने और ग्रामीण समाज से जुड़ी विभिन्न समस्याओं पर अपने कार्यक्रम केन्द्रित करता रहा है। परिषद की वार्षिक पत्रिका हिमांजलि के सम्पादक श्री पैन्यूली जी के आग्रह पर मैं भी पत्रिका जुड़ा और परिषद से मेरा परिचय हुआ है। विभिन्न कार्यक्रम और कौशल से जुड़े उन कर्मयोगियों, विशेषज्ञों के विचार भी सुनंे जो वर्षों से पहाड़ के ग्रामीण समाज से जुड़कर रचनात्मक कार्य करते रहे हैं। इस तरह मुझे ग्रामीण समाज के एक नये चेहरे को देखने का अवसर मिला...
गोष्ठी के मुख्य वक्ता के रूप में संघ के प्रान्त प्रचारक डा0 हरीश ने मूलभूत समस्याओं की ओर परिषद का ध्यान दिलाया और भविष्य की रूपरेखा तैयार कर विकास का एक खाका तैयार किया, जिसे सुनकर तो यही लगा कि यदि हमारी सरकारें ऐसे कार्यक्रम  चलायें तो उत्तराखण्ड सचमुच देवभूमि बन सकती है। परिषद की सत्ताईस सालों की उपलब्धि को लेकर डा0 हरीश के मन में गहरी नाराजगी थी। उन्होंने उक्त संगठन के पदाधिकारियों की खबर लेते हुये, बंधी-बंधाई लीक से हटकर संगठन को समाज के प्रति अधिक जवाबदेह होने और समय के साथ लय-ताल मिलाकर चलने का भी आग्रह किया। कुछ स्कूल, कुछ भवन, कुछ कार्यक्रम, कुछ सेमिनार...डा0 हरीश ने कहा कि यह सब एक संगठन होने के नाते तो ठीक है पर, इतना काफी नहीं है और इस तरह कोई संगठन किसी क्षेत्र की आवाज नहीं बन सकता। उन्होंने कहा कि इस नवोदित प्रदेश के विकास का ब्रान्ड बनने के लिये इस संगठन को जी-जान से जुटना होगा, अगर ऐसा हुआ होता तो उत्तराखण्ड उत्थान परिषद आज प्रदेश की जनता का प्रतिनिधि होता।
प्रदेश में किसानों की फसलों का विपणन कैसे हो, कैसे आम आदमी तक विज्ञान की जानकारी पहुंचे, विकासोन्मुखी रोजगार का कैसे सृजन हो, उन्होंने कहा कि संगठन को सरकार और जनता के बीच एक पुल की तरह कार्य करना होगा। डा0 हरीश ने खाली होते गांवों पर गहरी चिंता व्यक्त की, और आशा जताई कि यह पलायन पुनः गांवों की ओर हो सकता है यदि हम कुछ बिन्दुओं पर ध्यान देकर पहाड़ों में अपने कार्यक्रम चलायें। डा0 हरीश ने कहा कि रोजगार, प्राथमिक शिक्षा और स्वास्थ्य ही पलायन के मुख्य और आधारभूत कारण हैं, इसलिये संगठन को इन तीन क्षेत्रों पर अपना ध्यान फोकस करना होगा। क्या हम कुछ होमियोपैथिक चिकित्सकों की टोलियां तैयार नहीं कर सकते? क्या फौज में भर्ती होने से पूर्व दी जाने वाली तैयारी में हम ग्रामीण समाज के लिये  कुछ ट्रेनिंग सेंटर नहीं खोल सकते? या इस क्षेत्र के विशेषज्ञों को उनके लिये सुलभ नहीं करा सकते? बैंक कर्ज की पेचिदगियां सुलझाने और सरकारी कार्यक्रमों की सभी जानकारी   निरन्तर ग्रामीणों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी संगठन को लेनी होगी, तभी जन भागीदारी का हमारा स्वप्न पूरा हो सकता है। प्रत्येक जिले में समितियां बनाकर डा0 हरीश ने उन गुणी लोगों को भी संगठन से जोड़ने की अपील की जो भले ही संघ की पृष्ठभूमि से न हांे पर अपनी भूमि से जुड़े हांे। जिन लोगों ने पहाड़ी समाज के उत्थान के लिये कार्य किया हो, कृषि, वनीकरण, जड़ी-बूटी या सामाजिक बुराईयों से लड़ने वाले, वे लोग चाहे जिस क्षेत्र से हों, वे सभी परिषद से जुड़ें और संगठन को नये ऊर्जावान हाथ मिलें।
प्रान्त प्रचारक ने कहा कि उत्तराखण्ड के बड़े शहरों में क्यों कोई पहाड़ी व्यंजन परोसने वाला होटल नहीं है? इस तरह के होटल पहाड़ी किसानों के उत्पादों को खपाने के बड़े केन्द्र बन सकते हैं।
गोधन को लेकर वक्ता के मन गहरी पीड़ा थी, उन्होंने कहा कि डेरी उद्योग उत्तराखण्ड का सर्वाधिक कामाई वाला उद्योग बन सकता है यदि हम गायों की नस्ल सुधार कार्यक्रम के लिये सरकार और अन्य संगठनों को इसके लिये प्रेरित करें, क्योंकि पारम्परिक पहाड़ी गायों से लाभ नहीं लिया जा सकता।
भाषण के अन्त में संगठन के कार्यकर्ताओं को उत्साहित करते हुये डा0 हरीश ने  अपने क्षेत्र में अभूतपूर्व कार्य करने के लिये तीन पुरस्कारों की घोषणा की, जो भी कार्यकर्ता, जो भी व्यक्ति, पहाड़ के कल्याण के लिये प्रदेश में अपना विलक्षण योगदान देगा, उसे सम्मानित करना संगठन अपना गौरव समझेगा।