माटी-थाति अर प्रवासी


गौं मा पळया-खेलया अर बितांया दिनों बटि पढिलिखि भैर  गयां मनखि प्रवासी रैबासी बणीतै नौकरी दगडि तखि बसिगिन। यूंकै बीच कै प्रवासी त अपडि गौं माटी की खुशबू बिसरिगिन, तौंतै गौं घट्ट अर पाणी पंध्यारा बस गर्म्यूं भम्माण मा घूमण अर मनोरंजन से ज्यादा कुछ नि लगदू।
लगभग आज पहाड़ का हर गौं मा, अथाह पलायन जारी च, लोग शिक्षा- स्वास्थ्य अर सुख-सुविधों कि चाह मा यख द्वी-चार दिनों से ज्यादा पसंद नी कना!
 पर यौंई मदै कै प्रवासी मनखी छिन जौंकि जिकुडि उलार्या च, जौंमा पहाड़ अर गौं कि पिडा-बिपदा अर खुद ज्यूंदि च।
यि प्रवासी गौं बटि दूर जरूर छिन पर चौबीस घड़ी, बार मैना यि मयाळा मनखि सैर मा आपसी मीटिंग कना, गौं की समस्या खैरि बिपदा पर कछिडि लगौंणा। अर सामुहिक छुट्टी का दौर मा गौं मा नया नया कार्यक्रम उर्योणा, ईष्ट देवता भुम्याळ देवता का मठ मंदिरों मा देवपूजा कर्वेतै गौं मा बच्यां समाज दगडि अफुतै भी रळौणा-मिलोणा छिन, कै बार त यन बि देखण मा औंणू कि गौं का लोग आसानी से प्रवासी लोखू तै, अपनोण मा कतरांणा छिन, आपसी मतभेद भी स्थानीय समाज परकट कनू, पर पिकनिक अर घूमण से इतर यि भैर बस्यां प्रवासी अपणि नै छवाळि नै पीढ़ी तै अपडि माटी गौं कि थाति से जोडण चांणा छिन।
किलैकि पिकनिक का स्पोट का तौर पर गौं मा सुख- सुविधों अभाव च, जबकि ईं लोग पैसों मा खूब सुविधा खरीदणे हिकमत रखदा, अर कखि होर जगा, शिमला अर मसूरी भि त पिकनिक मनै सकदा?
पर अपडा गौं औंण अर अपडा बच्चों तै जोड़ण कु सांसू कन काबिलेतारीफ च, जैकु हम सबुतै स्वागत कर्यू चैंणू च।
त आपसी  मतभेद बिसरै हमुतै, दूर बस्यां प्रवासी लोखू, गौं कारिज, मठ-मंदिरों मा पूजा अर नवनिर्माण जन जोडण वौळा सकारात्मक कारिजों मा खुलीतै स्वागत कन चैंद।
अपडि प्रवासी मिटिंगों मा हर बार,  गौं का नया-नया मुद्दों पर चर्चा परिचर्चा कर्दा ईं मनखि भौत संवेदनशील छिन जु भागदि सैर कि जिंदगी मा भी पैथर मुडी, गौं कि तरफां देंखणा छिन, सोंचणा छिन, अर जमीन मा कुछ नयु भी कना छिन।
आज भौत सारा प्रवासी लोग अपडा गौं मा ऐतै अपडि कूडि पुंग्ण्यूं का रडदा ढुंग्गा पठ्ठालि सैंकणा संभळना भी दिखेंणा छिन।
नै पीढ़ी भी गौं का रंग मा, द्वी दिन ही सै रंगणि त छैईच।
जख क्वे बच्यां छज्जा- तिबार, ख्वोळि,धुर्पळि की मोबेलो मा तस्वीर खींचणा छिन त क्वे टूटदि-रडदि धुर्पळि अर सडदा म्वोर-संगांड की भी तस्वीर खींचीं, गौं का हालात पर चिंतन भी कना छिन।
अपडि बाप-दादो कि बचाईं, कूडि पर सिमेंट, लिपै-पुतै भी करौणा छिन।
गौं-गौं मा सड़क पौंछण से भी प्रवासी खूब चक्कर लगौंणा छिन गौं का, जून जन भम्माण मा दिल्ली बंबै देरादूण बटि दस बारह दिनों तक गौं मा रेतै, घुलणा- मिलणा छिन।
कै ज्वान प्रवासी गौं का बांजा पड्या तप्पडों सेरौं मा, मनै- मन मा कै परियोजना बणौणा, भगवान बद्री केदार सदबुद्दि द्योलू त पढया लिखया यि प्रवासी क्या पता भविष्य मा कै परियोजनों पर काम करुन, ये विषय मा अबि कुछ नि बुळै सकैंदु?
प्रवासी लोग गौं का माहोल मा धाण-धंधा अर खेतीबाडी से इतर पंडौ नृत्य, देवनृत्य, नाग नृत्य, अर रामलीला जन कार्यक्रम कनै बात जरूर कर्दा अर कै बार त यन कार्यक्रम निभै पुर्ये भी जंदन।
गौं का जंगल अर खेती का बारा मा परवासी नई सोच रखदा, पारम्परिक खेती बटि नई वैज्ञानिक खेती की तरफा गौं कु ध्यान खींचदा, नै ज्वान दगडयों दगडि टेक्नोलोजी बात रखदा।
कै जगा त भैर पढया लिख्या लोग, गौं मा बौडी तै उन्नत खेती करीतै ब्यवसाय करीतै, आदर्श काम कना छिन।
 अभी हाल हि मा, मैं जखोली भरदार का बैनोली गौं मा गयूं त, अनिल नौटियाल जु गौं बटि भैर रिषिकेश बसिगिन, तखि पढिन-लिखिन अर सेटल हवैगिन, पर आज गौं मा ही ऐंक, धूप बणोण कु ब्यवसाय दगडि पहाड़ी उत्पादों कु, अचार कु भी काम कना छिन, अर प्रोडक्ट अपडा गौं, बैनोली का ही नौ से प्रसारित कना छिन।
कै प्रवासी त भैर सैर मा ही, अपडा ब्यवसाय तै अपडा गौं-मुलक या ईष्ट देवता का ही नौं पर फैलास द्योंणा छिन।
यूंमा होटल दुकान अर जमीन ब्यवसाय का प्रवासी जन सामिल छिन।
डिजिटलाजेशन का समै मा, लगभग हर प्रवासी वटसअप अर फेसबुक का समूहों से भी अपडा-अपडा गौं से जुडयूं च, जख गौं की हर घटना छोटी-मोटी खबरों पर सु बरोबर नजर रखदु प्रतिक्रिया द्येंदु।
गौं की राजनीति मा भी, यूँ सोशल साइट का माध्यम से प्रवासी समूह हाजिरि द्योणू च, अर ये जुड़ाव का कारण अपडा पैतृक हक-हकूक अर राशनकार्ड मूलनिवास जन सरकारी कागजातो दगडि गौं से अपडेट भी च, अर रैबासी-प्रबास्यूं पछांण भी होंणी च।
त यन सुखिळा रैबार भी छिन, कि विदेश तक बस्यां प्रवासी, साल द्वी साल मा, एक-द्वी चक्कर गौं मा जरूर लगौंणा, जौंमा सेना प्रमुख विपिन रावत जी ह्वोन या अजीत डोभाल जी जन विख्यात शख्सियत, देश का बड़ा- बड़ा निर्णायक पदों पर पौछया, यन प्रवासी जब गौं- मुलक से जुडदन, त हमुतै स्वाभिमान अर गर्व मैसूस होंदु।
गौं का लोग भी, भैर बस्यां यूँ लोखू,भौत सम्मान कर्दा, अभि भी ग्येडु पर, घौरे दाळ- चौळ, जन समोंण का कुटयारा दी द्येंदा, अर फ्येर बोडी औंणकि कामना कर्दा।
गढकुमोंनी भाषा की ही बात कर्दा, त दिल्ली मुंबै जन सैरो मा बस्यां कै प्रवासी उदारण छिन जु घौर मु अपडि भाषा मा ही बात कर्दा, नै छवाळि तक अपडि भाषा सिखोंदा।
भीष्म कुकरेती जी जन लोग, मुंबै मा रैक भी गढवाली भाषा साहित्य तै सबसे ज्यादा फैलास द्योंणा। दिल्ली मा ही कै लोग गढकुमोंनी क्लास चलौणा निरंतर सोशल साइट पर अपडा गौं-मुलक, भाषा साहित्य कु प्रचार प्रसार कना।
वाकई दुनिया का कै भी हिस्सा मा रौंन, पर अपडि भाषा संस्कृति दगडि अपडि माटी दगडि जुडणा यन प्रवासी औंण वौळा समै मा बेहतर तस्वीर बणोला गौं कि, गढभाषा की।
पर यन प्रवासी जु बिल्कुल भी ह्यन्न-देखण नि चांदा बोडी गौं,  गौं का कारिज मा सामिल नि ह्वोण चांणा, एक खतरे घंटी की तरफ भी इसारा कना? अर उम्मीद कर्दा कि भविष्य मा सि भि मुडला अपडि माटि थाति अर भाषा संस्कृति की तरफा, ईं आशा अर उम्मीद का दगडि----