छत्रभंग (गढ़वाली नाटक )

यह गढ़वाली नाटक छत्रभंग केवल एक बार मंचित हुआ / गढ़वाली का रोना मत रोइये / गढ़वाली रंगमंच को सहारा दीजिये / इस दृश्य में नाटक के नायक सौन्या कौए की प्रशंसा सूत्रधार कर रहा है। ..काव्य नीचे दिया है... कृपया 'वाई' को गढ़वाली ळ  पढ़ें 


(ल्या सबसै पैली कागा, वे सौण्या कि जरा 'बडै़' सुणा)


गंगापार कू एक छौ कागा
नौ छौ तैकू सौण्या
मुन्डि ि ळ  छयि काÿि-कÿचुन्डि  
भारी छौ निरौण्या
  कड़कड़ा छा ठोंठ-टंगड़ा
  पंखर छा पैना-संगड़ा
  मोण टकटकी छै स्वाणि
  आंखि पर रीठै सि दाणि
बारा-बिसि-चैद्दा बनि
हर्क-फर्की उड़दि तू
टगंण्यौं न खोप्रि कन्यै
डिबलौं जुट्ठू करदि तू
  निरगणि छैं कधगा सौण्या
  थूक-खंकरु चटदि तू
  कंदुड़ि-पुछड़ि, नाक-आंखा
  खोज-खोजि कि खान्दि तू
बुलै-बुलै कि बि नि औन्दू
तित्तूं मा काग-रास
जेट-अषाड़ हांपि-टांपि
पे-पे, कि निं बुझदि प्यास
  पूस खाई मोटू-सोटू
  सब्बी हजम होई जांदू
  झिलसणौ का बाना सौण्या
  बसगलू का 'झै' मनौन्दू
  ठकरौं सन हिलै-हिलै
  कीड़ा-पेटगा खान्दि तू
  क्यांकू अभगि बार-त्यावारौ
  बोडि ऽ गालि, खान्दि तू
बसग्याल सू उजलपट्ट
पाणि मा लत्त-पत्त
ह्यूंद भिजै खालि मुन्डÿि
रुड़्यौं रै उतणपट्ट
  मेमानू कि खबर लौन्दि
  बन-बनि कि सान-बाच
  चंग-चंग चंगचोरि कि
  क्यापणि सि करकरांस
चुलखन्दा, रुसड़ौं सन
ढ़ेस-बेड़ करदि तू
'छौं' कैदे पकीं रुसै मा
मÿेटू फेर लिपौन्दि तू
  जयन्त तेरु पुरखा छयौ
  यान तू इन्द्रा ऽ वंशौ ह्ने
  राम जी न गुस्सा ह्नेकि
  तेरि जात काणि कै
संक्रान्त कु छोट्टा-नौना
'घुघत्या' मनै ठाट-बाट
ते पुल्यौंदा सरा 'कुमौ'
डरदू सरु राज-पाठ
  महाविद् चाणक्य जब
  तेरि महिमा गान्दू छौ
  पांच-गुण मनख्यौं सन
  अंगल्यौं मा गणौदू छौ
सब्बि तर्फ देखि-भालि
मैथुन अर हिटणु यखुलि
उटगिणी-पुटगिणी कट्ठा कन्ना
तू कबि नि खान्दि यखुलि
   ते अभगि ऽ रेट्ट कु तैं
   कागचेष्टा बोलदन
   बाज अर चिलंगा सब्बी
   त्वे देखी कि डरदन
तैं चकड़ैत बु(ि न
बेद-पुराणु मा जगा पै
यीं दुणियां न ज्ञान-ध्यान
कागभुसुण्डि बणी पै
  पितरुं कु प्राण बणि
  खीर-भात, मान ह्ने
  मोन्नू कु कैलाश जान्दि
  कैन तेरु पार पै
कÿचोणि मा मुण्ड डुबै
खोज-खोजि कि भिग्यां-रोठÿा
दोल्लां-टोमÿा, गिगड़ा-छिपड़ा 
बाराऽ गौंका बेडू-तिमला
  धुरपÿा मा नाचि-नाचि कि
  खान्दू छौ खडौण्या
  मुन्डÿि छयी काÿि-कÿचुण्डि
  भारि छौ निरौण्या....