एड्स से बचाव ही एड्स का बेहतर इलाज

(विश्व एड्स दिवस १ दिसंबर पर )



एड्स का मतलब है उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण (Acquired Immune Deficiency syndrome) एड्स HIV मानवीय प्रतिरक्षी अपूर्णता विषाणु (Human immunodeficiency virus) से होता है। जो कि मानव की प्राकृतिक प्रतिरोधी क्षमता को कमजोर करता है। एचआईवी शरीर की रोग प्रतिरोधी क्षमता पर आक्रमण करता है। जिसका काम शरीर को संक्रामक बीमारियों, जो कि जीवाणु और विषाणु से होती हैं से बचाना होता है। एच.आई.वी. रक्त में उपस्थित प्रतिरोधी पदार्थ लसीका-कोशो पर हमला करता है। ये पदार्थ मानव को जीवाणु और विषाणु जनित बीमारियों से बचाते हैं और शरीर की रक्षा करते हैं। जब एच.आई.वी. द्वारा आक्रमण करने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता क्षय होने लगती है तो इस सुरक्षा कवच के बिना एड्स पीड़ित लोग भयानक बीमारियों क्षय रोग और कैंसर आदि से पीड़ित हो जाते हैं और शरीर को कई अवसरवादी संक्रमण यानि आम सर्दी जुकाम, फुफ्फुस प्रदाह इत्यादि घेर लेते हैं। जब क्षय और कर्क रोग शरीर को घेर लेते हैं तो उनका इलाज करना कठिन हो जाता हैं और मरीज की मृत्यु भी हो सकती है।


एड्स कैसे फैलता है?


अगर एक सामान्य व्यक्ति एचआईवी संक्रमित व्यक्ति के वीर्य, योनि स्राव अथवा रक्त के संपर्क में आता है तो उसे एड्स हो सकता है। आमतौर पर लोग एच.आई.वी. पॉजिटिव होने को एड्स समझ लेते हैं, जो कि गलत है। बल्कि एचआईवी पॉजिटिव होने के 8-10 साल के अंदर जब संक्रमित व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता क्षीण हो जाती है। तब उसे घातक रोग घेर लेते हैं और इस स्थिति को एड्स कहते हैं। एड्स ज्यादातर चार माध्यमों से होता है। 


(1) पीड़ित व्यक्ति के साथ असुरक्षित योनि सम्बन्ध स्थापित करने से।


(2) दूषित रक्त से।


(3) संक्रमित सुई के उपयोग से।


(4) एड्स संक्रमित माँ से उसके होने वाली संतान को।


 


एड्स के लक्षण


एच.आई.वी से संक्रमित लोगों में लम्बे समय तक एड्स के कोई लक्षण दिखाई नहीं देते। लंबे समय तक (3, 6 महीने या अधिक) एच.आई.वी का भी औषधिक परीक्षण से पता नहीं लग पाता। अधिकतर एड्स के मरीजों को सर्दी, जुकाम या विषाणु बुखार हो जाता है पर इससे एड्स होने का पता नहीं लगाया जा सकता। एचआईवी वायरस का संक्रमण होने के बाद उसका शरीर में धीरे धीरे फैलना शुरु होता है। जब वायरस का संक्रमण शरीर में अधिक हो जाता है, उस समय बीमारी के लक्षण दिखाई देते हैं। एड्स के लक्षण दिखने में आठ से दस साल का समय भी लग सकता है। ऐसे व्यक्ति को, जिसके शरीर में एच.आई.वी वायरस हों पर एड्स के लक्षण प्रकट न हुए हों, एचआईवी पॉसिटिव कहा जाता है। ऐसे व्यक्ति भी एड्स फैला सकते हैं। एड्स के कुछ प्रारम्भिक लक्षण हैं:-


- वजन का काफी हद तक कम हो जाना


- लगातार खांसी बने रहना


- बार-बार जुकाम का होना


- बुखार


- सिरदर्द


- थकान


- शरीर पर निशान बनना (फंगल इन्फेक्शन के कारण)


- हैजा


- भोजन से अरुचि


- लसीकाओं में सूजन


ध्यान रहे कि ऊपर दिए गए लक्षण अन्य सामान्य रोगों के भी हो सकते हैं। अतः एड्स की निश्चित रूप से पहचान केवल और केवल, औषधीय परीक्षण से ही की जा सकती है व की जानी चाहिये। एच.आई.वी. की उपस्थिति का पता लगाने हेतु मुख्यतः एंजाइम लिंक्ड इम्यूनोएब्जॉर्बेंट एसेस यानि एलिसा टेस्ट किया जाता है।


 


एड्स के बारे में फैली हुई भ्रांतियां


बहुत सारे लोग समझते हैं कि एड्स पीड़ित व्यक्ति के साथ खाने, पीने, उठने, बैठने से हो जाता है जो कि गलत है। ये समाज में एड्स के बारे में फैली हुई भ्रांतियां हैं। सच तो यह है कि रोजमर्रा के सामाजिक संपर्कों से एच.आई.वी. नहीं फैलता जैसे किः-


(1) पीड़ित के साथ खाने-पीने से


(2) बर्तनों कि साझीदारी से


(3) हाथ मिलाने या गले मिलने से


(4) एक ही टॉयलेट का प्रयोग करने से


(5) मच्छर या अन्य कीड़ों के काटने से


(6) पशुओं के काटने से


(7) खांसी या छींकों से


 


एड्स का उपचार


एड्स के उपचार में एंटी रेट्रोवाईरल थेरपी दवाईयों का उपयोग किया जाता है। इन दवाइयों का मुख्य उद्देश्य एच.आई.वी. के प्रभाव को कम करना, शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करना और अवसरवादी रोगों को ठीक करना होता है। समय के साथ-साथ वैज्ञानिक एड्स की नई-नई दवाइयों की खोज कर रहे हैं। लेकिन सच कहा जाए तो एड्स से बचाव ही एड्स का बेहतर इलाज है।  


 


एड्स से बचाव


एड्स से बचाव के लिए सामान्य व्यक्ति को एच.आई.वी. संक्रमित व्यक्ति के वीर्य, योनि स्राव अथवा रक्त के संपर्क में आने से बचना चाहिए। साथ ही साथ एड्स से बचाव के लिए निम्नलिखित सावधानियां बरतनी चाहिए।


(1) पीड़ित साथी या व्यक्ति के साथ योनि सम्बन्ध स्थापित नहीं करना चाहिए, अगर कर रहे हों तो सावधानीपूर्वक कंडोम का प्रयोग करना चाहिए। लेकिन कंडोम इस्तेमाल करने में भी कंडोम के फटने का खतरा रहता है। और अपने जीवनसाथी के प्रति वफादार रहें, एक से अधिक व्यक्ति से यौनसंबंध ना रखें।


(2) खून को अच्छी तरह जांचकर ही उसे चढ़ाना चाहिए। कई बार बिना जांच के खून मरीज को चढ़ा दिया जाता है जो की गलत है। इसलिए डॉक्टर को खून चढाने से पहले पता करना चाहिए कि कहीं खून एच.आई.वी. दूषित तो नहीं है।


(3) उपयोग की हुई सुईओं या इंजेक्शन का प्रयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि ये एच.आई.वी. संक्रमित हो सकते हैं। 


(4) दाढ़ी बनवाते समय हमेशा नया ब्लेड उपयोग करने के लिए कहना चाहिये।


(5) एड्स से जुडी हुई भ्रांतियों पर ध्यान नहीं देना चाहिए। 


आज भी भारत देश में योनि शिक्षा के अभाव से अधिकतर लोगों को एड्स असुरक्षित योनि सम्बन्ध और एक से अधिक व्यक्तियों से यौनसंबंध बनाने से होता है। शिक्षा के अभाव में लोग कई बार संक्रमित सुई, ब्लेड का भी प्रयोग कर जाते हैं, यह भी एड्स फैलने का बहुत बड़ा कारण है। शिक्षा के अभाव में एच.आई.वी. दूषित रक्त का चढ़ाया जाना भी एड्स फैलने का मुख्य कारण है। इसके लिए जरूरत है सरकार को अधिक से अधिक एड्स से जुडी हुई शिक्षा लोगों तक पहुंचानी चाहिए और लोगों को एड्स के प्रति जागरूक करना चाहिए साथ ही साथ लोगों को विभिन्न माध्यमों से योनि शिक्षा के प्रति जागरूकता फैलानी चाहिए तभी एड्स से लड़ा जा सकता है।