जी एस टी का फंडा


परिवार की तरह देश का भी सालाना बजट यानि कि आय और खर्च का अनुमान लगाया जाता है। उदाहरणतः-वर्ष २0१६-१७ के संशोधित अनुमान के अनुसार केंद्र सरकार ने करीब २0.१४ लाख करोड़ का वार्षिक बजट तय किया था, जिसे हासिल करने के लिए १७.0३ लाख करोड़ का टैक्स राजस्व प्राप्त हुआ। यह राजस्व ८.६३ लाख करोड़ प्रत्यक्ष टैक्स एवं ८.४७ लाख करोड़ अप्रत्यक्ष टैक्स से प्राप्त किया गया। इसके अलावा सरकार को करीब ३.३४ लाख करोड़ का टैक्स भिन्न राजस्व-जैसे कि ब्याज प्राप्ति, लाभांश और विदेशी अनुदान आदि से भी प्राप्त होता है। अतः कुल मिलाकर केंद्र सरकार को करीब २0.३७ लाख करोड़ धनराशि सालाना प्राप्त होती है। इस कुल प्राप्त निधि से करीब ६.0८ लाख करोड़ राज्यों का हिस्सा निकल जाता है, तथा ;0.0६लाख करोड़द्धआकस्मिकताओं जैसे सूखा,बाढ़ और भूचाल आदि प्राकृतिक आपदाओं में खर्च होने के कारण केंद्र सरकार की आय से निकल जाता है। अब सरकार के पास सिर्फ १४.२३ लाख करोड़ शेष बचते हैं जबकि बजट राशि २0.१४ लाख करोड़ है। इस कमी को पूरा करने के लिए सरकार को विदेशी बैंकों से ५.९१ लाख करोड़ )ण भी लेना पड़ता है जिसका ब्याज हर साल चुकाना होता है। यह समझना अति आवश्यक है कि हमारा देश आज भी अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए देशी और विदेशी कर्ज पर निर्भर है। देश आज भी उस गरीब परिवार की तरह है जिसका खर्चा उसकी आमदनी से ज्यादा है। यह अति चिंताजनक सत्य है जिससे देशवासी अनभिज्ञ हैं। ३१-मार्च-२0१७ तक सार्वजनिक रूप से प्राप्त आकड़ों के अनुसार  देश के ऊपर घरेलू और विदेशी संस्थाओं से करीब ७४.३८ लाख करोड़ का कर्ज है जो कि एक डरावनी और भयानक तस्वीर है। इस राशि में करीब आधा )ण विदेशी है जिसका मूल और ब्याज डाॅलर में देना होता है। प्रति वर्ष देश करीब ४.0 लाख करोड़ ब्याज चुका रहा है अर्थात प्रति सेकंड ब्याज करीब १.२६ लाख दे रहें हैं। हम सभी जानते हैं कि देश की यह हालत सरकारों द्वारा वोट पाने के लालच में लोक लुभावनी नीतियां बनाने और भ्रष्टाचार को खुली छूट देने के कारण हुई है।
अब यह स्पष्ट हो पाया है कि सरकारी व्यवस्था को धन की कितनी आवश्यकता है। जीएसटी के बारे में विस्तार से चर्चा करने से पहले देश की टैक्स प्रणाली को समझना अति आवश्यक है। प्रत्यक्ष कर यानि इनकम टैक्स, कर्पोरेट टैक्स, वेल्थ टैक्स आदि में सरकारें पहले से ही अधिकतम कर वसूलने पर लगी रही हैं। नौकरी पेशे वाला जनमानस टैक्स के बोझ तले दबाया जाता रहा है क्योंकि यह सरकार के लिए सबसे आसान तरीका रहा है। काॅर्पोरेट जगत में भी भारतीय कंपनियां अपने लाभ का करीब ३0 प्र0 हिस्सा सरकार को टैक्स के रूप में देती हैं। इन जगहों पर टैक्स वृ(ि की कोई सम्भावना न होने के कारण, सरकार का ध्यान अप्रत्यक्ष करों जैसे सेल टैक्स, एक्साइज और कस्टम ड्यूटी, सर्विस टैक्स, वैट आदि की तरफ गया। जहां पर कर सुधार से अधिकतम राजस्व जमा किया जाना संभव है। यहाँ टैक्स चोरी के तरीके जैसे कम टैक्स लगाने के बदले में रिश्वत, बिना रसीद काटे व्यापार करना और अनेक सेवाओं को कम दिखाकर सरकार को करोड़ों का चूना लगाये जाने की असीम संभावनाएं भी रहीं हैं। इसीलिये समय-समय पर सरकारों का      ध्यान इस अप्रत्यक्ष कर सुधार की तरफ जाता रहा है। 
भारत का वर्तमान टैक्स ढांचा बहुत ही जटिल रहा है। भारतीय संविधान के अनुसार मुख्य रूप से वस्तुओं की बिक्री पर कर लगाने का अधिकार राज्य सरकार और वस्तुओं के उत्पादन व सेवाओं पर कर लगाने का अधिकार केंद्र सरकार के पास रहा है। इस कारण देश में अलग-अलग प्रकार के कर लागू रहे हैं। अतः कंपनियों और छोटे व्यवसायों के लिए विभिन्न प्रकार के कर कानूनों का पालन करना चुनौतीपूर्ण होता रहा है। वर्तमान सरकार ने अपनी दृदृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय देते हुए जीएसटी को हकीकत का रूप देने के लिए अथक प्रयास किये हैं। इस कदम से भारत की अर्थव्यवस्था को नया आयाम मिलेगा। हम जानते हैं कि जीएसटी बिल 0६ मई २0१५ को लोकसभा और 03 अगस्त २0१६ को राज्यसभा में पारित हो चुका है। केंद्र सरकार के अनुसार जीएसटी 0१ जुलाई २0१७ से लागू  कर दिया जाएगा। हम इस बिल का अवतरण सूचना तकनीक के विकास पर आधारित एक नए अवतार के रूप में देखते हैं क्योंकि आॅनलाइन सेवा के बिना यह होना संभव न होता। अब सरकारें आॅनलाइन सेवा से भरपूर कर संग्रह के साथ-साथ टैक्स चोरी का पता भी आसानी से लगा पायेंगी। 
गुड्स एंड सर्विस टैक्स देश की आजादी के बाद का सबसे बड़ा ‘टैक्स रिफार्म’ माना जा रहा है। अब वैट, एक्साइज-कस्टम ड्यूटी और सर्विस टैक्स जैसे अनेक करों की जगह जीएसटी द्वारा निर्धारित एक ही टैक्स लगेगा। जीएसटी भारत की सबसे महत्वाकांक्षी अप्रत्यक्ष कर सुधार योजना है, जिसका उद्देश्य राज्यों के बीच वित्तीय बाधाओं को दूर करके देश में ‘एक राष्ट्र एक बाजार एक टैक्स’ का सपना साकार करना है। इस रिफार्म को ट्रांसपोर्ट क्षेत्र में एक नयी क्रांति के रूप में भी देखा जा सकता हैं। चुंगी देने के लिए खड़े वाहनों की लम्बी कतारें खत्म होने के साथ-साथ इन जगहों पर व्याप्त भ्रष्टाचार भी खत्म हो जायेगा। जीएसटी लागू होने के बाद वस्तुओं एवं सेवाओं पर केवल तीन तरह के टैक्स वसूले जाएंगे। पहला सीजीएसटी, यानी सेंट्रल जीएसटी, जो केंद्र सरकार वसूलेगी। दूसरा एसजीएसटी, यानी स्टेट जीएसटी, जो राज्य सरकार अपने यहां होने वाले कारोबार पर वसूलेगी। कोई कारोबार अगर दो राज्यों के बीच होगा तो उस पर आईजीएसटी, यानी इंटीग्रेटेड ;एकीकृतद्ध जीएसटी वसूला जाएगा। इसे केंद्र सरकार वसूल करेगी और उसे दोनों राज्यों में समान अनुपात में बांट दिया जाएगा।
अखबारों में दिए गए विवरण के अनुसार, जीएसटी काउंसिल ने दूरसंचार, बीमा, होटल और रेस्तरां सहित विभिन्न सेवाओं के लिए चार स्लैब 5, 12, 18 और 28 प्रतिशत टैक्स लगाने का फैसला किया है। कुछ को छोड़कर, सभी वस्तुओं के लिए जीएसटी दरों को तय कर लिया गया है। काउंसिल ने दूरसंचार और वित्तीय सेवाओं पर 18 प्रतिशत और ट्रांसपोर्टेशन सर्विसेज पर 5प्र0 टैक्स निर्धारित किया है। सामान्य श्रेणी या नाॅन एसी रेल यात्रा को जीएसटी से छूट दी गई है, जबकि वातानुकूलित टिकटों पर 5 फीसदी शुल्क लगेगा। जीएसटी व्यवस्था में बिजनेस क्लास के लिए हवाई सफर महंगा हो जाएगा। इकाॅनमी क्लास में सफर करने वालों पर अब 6 की बजाय 5प्र0 टैक्स लगेगा, जबकि बिजनेस क्लास के यात्रियों को 12 प्र0 टैक्स देना होगा। जीएसटी के तहत मनोरंजन टैक्स को सर्विस टैक्स में मिला दिया जाएगा,  इससे  सिनेमा टिकटें सस्ती हो सकती हैं और उन पर शुल्क लगाने का अधिकार राज्यों के पास ही रहेगा। साबुन, शैम्पू, चाॅकलेट्स, कोल्ड ड्रिंक्स, बिस्कुट, आइसक्रीम, मेडिसिन, मसाला और मिठाई आदि पहले से सस्ती हो जाएँगी। परन्तु, बटर, पैकेज्ड चिकन, खाने का तेल आदि पहले से मंहगे हो जायेंगे। सरकार ने कम आय वर्ग को ध्यान में रखते हुए उनकी आवश्यकताओं की वस्तुओं पर कम टैक्स लगाने की कोशिश की है, जबकि उच्य आय वर्ग से सम्बंधित वस्तुओं एवं सेवाओं को महंगा कर दिया। वैसे तो जीएसटी  लागू होने के बाद कई रोजमर्रा की चीजों की कीमतें कम होने की संभावना है और यह फायदा ग्राहकों को मिलना चाहिए। मगर यह भी हो सकता है कि कम्पनियाँ अपने प्रोडक्ट की कीमतें बढ़ा दें। कीमतों में संभावित वृ(ि के बारे में वित्त मंत्रालय ने भारतीय उद्योग जगत को जीएसटी व्यवस्था में  मनमाने तरीकों से दाम बढ़ाने के प्रति आगाह तो किया है।  समझा जाता है कि इनकम टैक्स विभाग इस व्यवस्था के लागू होने के बाद मुनाफाखोरी      रोधक प्रावधान लागू कर सकता है। साथ ही कंपनियों को जीएसटी से होने वाले लाभ और उसका हस्तांतरण ग्राहकों को किया गया है या नहीं यह जानने के लिए उनके लेखे-जोखे की जांच कर सकता है। सभी को पूर्ण विश्वास है कि १ जुलाई २0१७ का दिन इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जायेगा। जब जीएसटी नाम से प्रचलित यह बिल देश में लागू हो जायेगा।  परन्तु, हमारा ध्यान जादा ‘टैक्स कलेक्शन’ के साथ-साथ अनावश्यक सरकारी खर्चों को कम करने की तरफ भी होना चाहिए। आर्थिक मामलों को अर्थशास्त्र के नजरिये से देखने की जरूरत है। इस उभरती हुई अर्थव्यवस्था को विदेशी कर्ज से मुक्ति दिलानी होगी ताकि हमारे टैक्स राजस्व का अधिकतम भाग ब्याज चुकाने के बजाय देश के चहुंमुखी विकास में लगे, ताकि हमारा देश एक पूर्ण आर्थिक शक्ति बनकर दुनिया में शीर्षस्थ स्थान पा सके। हमारा इतिहास हमें हमेशा से हमारी प्राचीन संस्कृति और देशप्रेम की कहानियां सुनाता रहा है। देशवासियों ने जब भी कोई कार्य पूर्ण करने का संकल्प लिया तो उसे निभाना भी अपना धर्म समझा है। आज, हमारे सामने देश को )णमुक्त करने की चुनौती है। जीएसटी इस लक्ष्य को पूरा करने में एक अहम् भूमिका निभाएगा। जय हिन्द।