उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रो से विलुप्त होती प्याज की स्थानीय उन्नत किस्में

प्याज ( Allium cipa) उत्तराखंड राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों की एक महत्व पूर्ण नगदी /व्यवसायिक फसल है, जिसका उत्पादन यहां परम्परागत रूप से कई पीडियों से होता आ रहा है। 

प्याज का बीज यहां का कृषक यहीं उत्पादित प्याज कि फसल से स्वस्थ एवं आकृषित प्याज के वल्वों/कन्दौ से उत्पादित करता आ रहा है, इस बीज उत्पादन में कृषक किसी भी रसायनिक खाद/ रसायनिक दवा प्रयोग भी नही करता है। यह बीज आनुंवाशिक रुप से शुद्द होता है। स्थानीय रुप से उत्पादित प्याज का बीज क्योंकि एक ही जलवायु में कई पीडियों से उगाया जा रहा है, इस प्रकार यह बीज जलवायु के अनुकूल Acclimatized होता है तथा यहां की भूमि में रचा बसा होता है ।स्थानीय रूप से उत्पादित प्याज बीज से प्याज का उत्पादन अच्छा होता है,  फसल पर  कीट व बीमारी का कम प्रकोप होता है, सूखा सहने की छमता अधिक होती है साथ ही उत्पादित प्याज़ फसल का भन्डारण कृषक वर्ष भर अपने घरों के ढैपरों (कमरे के अन्दर ऊपर बनी दुच्छत्ती) में करते आ रहे हैं।  विगत कुछ वर्षों से उद्यान विभाग/विभिन्न परियोजनाओं एवं स्वयंम सेवी संस्थाओं द्वारा उन्नतशील किस्मों के नाम पर कम कीमत पर या निशुल्क प्याज बीज का स्थानीय प्याज उत्पादको को वितरण किया जा रहा है। इन बीजौं से उत्पादित प्याज फसल मै प्याज़ बल्व/कन्द बनने से पहले ही bolting (फूल के डन्ठल) आने शुरु हो जाते है, जिससे उत्पादन काफी कम होता है , फसल पर कीट व्याधि का प्रकोप अधिक होता है, साथ ही फसल की भन्डारण छमता काफी कम समय के लिये होती है, जिस कारण उत्पादित प्याज़ के कन्द शीघ्र ही सडने लगते है।यदि इन उत्पादित कन्दौ से स्थानीय कृषक प्याज बीज बनाने का प्रयास करता है , तो क्षेत्र विशेष में उत्पादित प्याज बीज की आनुवांशिक शुद्दता समाप्त हो रही है तथा स्थानीय किस्म का पहाडी  प्याज बीज विलुप्त होता जा रहा है।

मेरे द्वारा खाल, विनगढ जनपद चमोली व नाला ,दानकोट जनपद रुद्रप्रयाग में प्याज उत्पादन क्षेत्रौ का भ्रमण किया गया , सभी कृषकों का कहना था कि विभागों द्वारा व संस्थाओं द्वारा दिया गया प्याज बीज में जल्दी फूलों के डंठल आ जाते हैं तथा इन बीजों से उत्पादित प्याज जल्दी सड जाता है। वर्तमान में स्थानीय पहाडी प्याज बीज उपलब्ध न होने के कारण पहाड़ी क्षेत्रों में प्याज उत्पादन काफी घटा है। *इसलिये आवश्यक है कि, स्थानीय कृषकों द्वारा परम्परागत रुप से उत्पादित प्याज बीज जो  अधिक उपज देने के साथ क्षेत्र विशेष की जलवायु के अनुकूल है, का उत्पादन बढ़ाया जाय , जिससे प्याज की इन स्थानीय किस्मों का संरक्षण भी किया जा सके*। उत्तराखंड में लगभग 4 हजार हैक्टेयर क्षेत्र में प्याज की खेती की जाती है इसके लिए लगभग 300 कुन्तल प्याज बीज की प्रति बर्ष आवश्यकता पड़ती है। पहाड़ी क्षेत्रों के लिए लम्बी प्रकाश अवधि वाली प्याज (पहाड़ी प्याज ) के बीज से ही अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है। प्याज  बीज का उत्पादन दो चरणों में किया जाता है, पहले चरण में प्याज बीज से प्याज कन्दो का उत्पादन तथा दूसरे चरण में प्याज कन्दों से प्याज बीज का उत्पादन।

*प्याज कन्दो का उत्पादन*-प्याज उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों की रबी  मौसम में उगाई जाने वाली एक मुख्य नगदी/ व्यवसायिक फसल है। 

जलवायु-

समुद्र तल से 1500 मीटर तक की ऊंचाई तक इस की खेती की जा सकती है। ज्यादा गर्म व ठंड का इसकी उपज पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।

भूमि का चयन -

प्याज की खेती बलुई दोमट से लेकर चिकनी दोमट मिट्टी में की जा सकती है, किन्तु जीवांश युक्त दोमट तथा बलुई दोमट भूमि जिसमें जल निकासी की उचित व्यवस्था हो उपयुक्त रहती है।  मिट्टी का पी. एच. मान 6 से 7 के बीच तथा जैविक कार्वन एक प्रतिशत से अधिक होना चाहिए। यदि भूमि का पी. एच. मान 6 से कम है तो खेत में 3 - 5 किलोग्राम चूना, खेत की तैयारी के समय मिट्टी में मिला लें। भूमि में जैविक कार्बन की मात्रा  1 प्रतिशत से कम होने पर 10 से 15 किलोग्राम जंगल/बड़े वृक्ष के नीचे की मिट्टी खुरच कर प्रति नाली की दर से खेत की तैयारी के समय  मिला दें। 

भूमि की तैयारी-

प्याज की अच्छी पैदावार के लिए खेत की तीन से चार बार अच्छी जुताई कर मिट्टी को भूरभूरी कर आवश्यकता अनुसार क्यारियां बना लें। क्यारियों में 5 से 6 कुंतल प्रति नाली की दर से सड़ी हुई गोबर की खाद को 20 से 30 दिन रोपाई से पहले देकर मिटटी में अच्छी तरह से मिला देना चाहिए| 

 मृदा शोधन- एक किलोग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर को 25 किलोग्राम कम्पोस्ट (गोबर की सड़ी खाद) में मिलाकर एक सप्ताह तक छायादार स्थान पर रखकर उसे गीले बोरे से ढँकें ताकि इसके बीजाणु अंकुरित हो जाएँ। इस कम्पोस्ट को एक एकड़ याने बीस नाली खेत में फैलाकर मिट्टी में मिला दें फिर बुवाई/रोपाई करें।

उन्नत किस्में -

वी. एल. प्याज - 3

क्षेत्र विशेष की प्रचलित और अधिक पैदावार देने वाली रोग रोधी किस्मों के बीज का चयन करना चाहिए । वी. एल. प्याज- 3 किस्म के बीज को प्राथमिकता दें।

बीज बुआई का समय- 

 मध्य अक्टूबर से नवम्बर ।

बीज की मात्रा-  200 ग्राम प्रति नाली।

पौध तैयार करना-

बीज को ऊँची उठी हुई क्यारियों में बोयें क्यारियों की चौड़ाई 1 से 1.25 मीटर और लम्बाई सुविधानुसार रखते हैं|

रोगों से बचाने के लिए  

 पौध तैयार करने वाली मिट्टी को बोआई से 15 से 20 दिन पहले पानी देकर सफेद पॉलिथीन से ढककर सौरियकरण’ करें तत्पश्चात

ट्राइकोडर्मा की 5  ग्राम मात्रा, प्रति लीटर पानी में मिलाकर प्रति वर्ग मीटर क्षेत्रफल की दर से इस प्रकार उपचारित करें कि ट्राइकोडर्मा का घोल 10-15 सेन्टीमीटर की गहराई तक पहुंच जाये ।यह उपचार नर्सरी में बीज की बुआई से 3-4 दिन पहले करें। 200 ग्राम ट्राइकोडर्मा को 100 किलोग्राम पूर्ण रूप से सड़ी एवं नम गोबर की खाद में भली भांति मिला लें तथा उसे 10-15 दिनों तक के लिए छाया में पौलीथीन से ढक कर रखें इससे ट्राइकोडर्मा का गोबर में पूर्ण रूप से विकास हो जाता है। अब ट्रायकोडर्मा में मिली गोबर की खाद को नर्सरी वेड़ में फैला कर 6 इंच मोटी पर्त बना लें तथा उस पर बीज की बुआई करें।इस विधि से पौध का विकास अच्छा होगा तथा उनमें आद्रगलन अथवा पौध गलन रोग का प्रकोप भी नहीं होगा।

 

नर्सरी में बीज की बुआई से पूर्व  10 ग्राम ट्राइकोडर्मा का हलका सा पानी मिलाकर पेस्ट बना लें तथा उस पेस्ट में एक किलो ग्राम बीज को अच्छी प्रकार मिला कर उपचारित करें। उपचारित बीज को छाया में सुखाकर कर नर्सरी में बुवाई करें। नर्सरी में बीज की बुआई से लगभग 24 घन्टे पूर्व बीज को उपचारित करें। इस उपचार से फसल को नुक्सान पहुंचाने वाली किसी भी बीमारी का प्रकोप नहीं होता है।

 

बीज की बोआई के बाद आधा सेंटीमीटर तक सड़ी व छनी हुई गोबर की खाद या मिट्टी से बीज पूर्णतया ढक देते हैं| इसके बाद फव्वारों से हल्की सिंचाई करके क्यारियों को सूखी घास से ढक देते हैं| जब बीज अच्छी तरह अंकुरित हो जाए तो घास को हटा देना चाहिए| रोज फव्वारे से हल्की सिंचाई करते रहना चाहिए| इस प्रकार   8 से 9 सप्ताह में पौध रोपाई के लिए तैयार हो जाती है| रोपाई का समय-  प्याज की रोपाई दिसम्बर से 15 जनवरी तक करते हैं|

रोपाई की दूरी- रोपाई करते समय कतारों की दूरी 15 सेंटीमीटर तथा कतार में पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर रखते हैं| पौध रोपण के समय खेत में नमी का होना आवश्यक है तथा रोपाई के तुरन्त बाद हल्की सिंचाई करें | पौध उपचार: पौध रोपण से पहले प्रति लीटर पानी में 10 ग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर का घोल बनाकर पौधों की जडौं को भिगोएँ।

रोपाई के बाद  फसल की निगरानी करते रहें रोपाई के  8-10 दिनों बाद निगरानी के समय कटुवा कीट और व्हाइट ग्रब या अन्य कारणो से  रोपित पौध के नष्ट होने पर उनके स्थान पर   नयी पौध रोपित करें। यदि खेत में कटुआ कीट ओर व्हाइट ग्रब की सूंडियों दिखाई दें तो उन्हें एकत्रित कर नष्ट करें। फसल की निगरानी के समय यदि पौधों पर रोग का प्रकोप दिखाई दे तो शुरू की अवस्था में ग्रसित पत्तियों/पौधों को नष्ट कर दें , इससे रोगौं का प्रकोप कम होगा।

सिचाई प्रबंधन-

सर्दी में सिंचाई लगभग 10 से 15 दिनों के अन्तर पर करते हैं तथा गर्मी में प्रति सप्ताह सिंचाई की आवश्यकता होती है| जिस समय कंद बढ़ रहे हों, उस समय सिंचाई जल्दी करते हैं| पानी की कमी के कारण कंद अच्छी तरह से नहीं बढ़ पाते है और इस तरह से पैदावार में कमी हो जाती है| 

पोषण प्रबंधन-

खडी फसल में 20 - 30  दिनों के अन्तराल पर 10 लीटर जीवामृत प्रति नाली की दर से डालते रहें।

निराई गुड़ाई -

प्याज के पौधे की जड़े अपेक्षाकृत कम गहराई तक जाती है| इसलिए अधिक गहराई तक गुडाई नहीं करनी चाहिए| अच्छी फसल के लिए 3 से 4 बार खरपतवार निकलना आवश्यक होता है|

मुख्य कीट-

थ्रिप्स , सफेद मक्खी,  ये कीट तापमान वृद्धि के साथ तेजी से बढ़ते है| इन कीटो के वयस्क तथा लार्वा  पत्तियों का रस चूसते हैं जिससे पत्तियों का रंग सफेद पड़ जाता है|

कीट नियंत्रण-

1.कीड़ों के अंडे, सूंडियों,प्यूपा तथा वयस्कों को इकट्ठा कर नष्ट करना।

2.प्रकाश प्रपंच की सहायता से रात को कीड़ों को आकर्षित कर तथा उन्हें नष्ट करते रहना चाहिए।

3.कीड़ों को आकर्षित करने के लिए फ्यूरामोन ट्रेप का प्रयोग करना व उन्हें नष्ट करना।

4.कट वर्म तथा फ्रुट फ्लाई से रोक थाम के लिए Bait trape चारा ट्रेप का प्रयोग करें।

5.हानिकारक कीट सफेद मक्खी तेला कीट के नियंत्रण लिए यलो स्टिकी ट्रेप का प्रयोग करे।

6. एक चम्मच डिटर्जेन्ट/  साबुन , प्रति दो लीटर पानी की दर से घोल बनाकर कर स्प्रे मशीन की तेज धार से ग्रसित भाग पर छिड़काव करें। तीन दिनों के अन्तराल पर दो तीन बार छिड़काव करें।ध्यान रहे , छिड़काव से पहले साबुन के घोल को किसी घास वाले पौधे पर छिड़काव करें यदि यह पौधा तीन चार घंटे बाद मुरझाने लगे तो घोल में कुछ पानी मिला कर घोल को हल्का कर लें।

7. एक लीटर , सात आठ दिन पुरानी छांच/ मट्ठा को छः लीटर पानी में घोल बनाकर तीन चार दिनों के अन्तराल पर दो तीन छिड़काव करें।

8.एक कीलो लकडी की राख में दस मिली लीटर मिट्टी का तेल मिलाएं। 500 ग्राम मिट्टी का तेल मिली हुई लकड़ी की राख प्रति नाली की दर से ग्रसित खड़ी फसल में बुरकें। पौधों पर राख बुरकने हेतु राख को मारकीन या धोती के कपड़े में बांध कर पोटली बना लें, एक हाथ से पोटली को कस्स कर पकड़े तथा दूसरे हाथ से डन्डे से पोटली को पीटें जिससे राख ग्रसित पौधों पर बराबर मात्रा में पढ़ती रहे। 

9. एक लीटर, आठ दस दिन पुराना गौ मूत्र का छः लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। गौमूत्र जितना पुराना होगा उतना ही फायदेमंद होगा। 10 दिनों के अन्तराल पर फसल पर गौमूत्र का छिड़काव करते रहें।

10.नीम आयल,  निम्बसिडीन का पांच मिली लीटर दवा का प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें। 10 दिनों के अन्तराल पर छिड़काव करते रहें।

मुख्य रोग-

कमर तोड रोग- पौधे अंकुरण के समय व बाद में मर जाते हैं प्रभावित पौधे जमीन पर गिर जाते हैं।

डाउनी मिल्ड्यू- प्रभावित भागों पर चकत्ते पढ जाते हैं।

रोक थाम-

1.फसल की बुआई अच्छी जल निकास वाली भूमि पर करें।

2.फसल चक्र अपनायें।

3.भूमि का उपचार ट्रायकोडर्मा से करें।

4.खडी फसल की समय समय पर निगरानी करते रहें रोग ग्रस्त पौधे को शीघ्र हटा कर नष्ट कर दें।

5. प्रति लीटर पानी में 5 ग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर का घोल बनाकर पौधों पर 10 - 15  दिनों के अंतराल पर तीन छिड़काव करें व जड़ क्षेत्र को भिगोएँ।

खुदाई और प्याज को सुखाना-

फसल पकने पर जब प्याज की पत्तियाँ सुखकर गिरने लगे तो सिंचाई बन्द कर देनी चाहिए तथा 15 दिन बाद खुदाई कर लें । आवश्यकता से अधिक सिंचाई करने पर प्याज के कंदों की भण्डारण क्षमता कम हो जाती है| यदि प्याज के कंदों को भंडारण में रखने से पहले सुखाने के लिए प्याज को छाया में जमीन पर फैला देते हैं, तो सुखाते समय कंदों को सीधी धूप और वर्षा से बचाना चाहिए| सुखाने की अवधि मौसम पर निर्भर करती है| पौधे अच्छी तरह सुखाने के लिए तीन दिन खेत में तथा एक सप्ताह छाये में सुखाने के बाद 2 से 2.5 सेंटीमीटर छोड़कर पत्तियाँ काटने से भण्डारण में हानि कम होती है|


उपज-

पौध रोपण के तीन से चार माह बाद याने 110 - 115 दिनों बाद फसल खुदाई योग्य हो जाती है। 

प्रति नाली 5 - 6 क्विंटल प्याज के कंदों की पैदावार हो जाती है।

 *कन्दों से बीज उत्पादन*

प्याज बीज उत्पादन हेतु वी.एल. प्याज -3 या स्थानीय प्याज बीज  से उत्पादित प्याज कन्दो को उनके रंग, आकार व रुप के आधार पर छांटते है। पुर्णत: पक्व, स्वस्थ

एक ही रंग रुप के, पतली ग़र्दन वाली ,दो फाड़ रहित एवं 4.5 – 6.5 से0मी0 व्यास तथा 60-70 ग्राम वजन के कन्दो को बीज उत्पादन हेतु रोपण के लिये चुनते है। पर्वतीय क्षेत्रौ मै प्याज की फसल अप्रेल/मई में तैयार हो जाती है जिसे बीज हेतु कृषक अक्टुबर/नवम्बर तक भन्डारित कर सुरक्षित रखता है।प्याज बीज उत्पादन हेतु ऐसे खेत का चुनाव करें जहां पर पिछले मौसम मै प्याज की कन्द या बीज की फसल नही उगाई गयी हो तथा खेत में पानी की निकासी की उचित व्यवस्था होनी चाहिये।

बीज उत्पादन हेतु चयनित प्याज कन्दों को अच्छी तरह तैयार किये गये खेतों मै अक्टुबर/नवम्बर माह में रोपण करें। 

खेत की तैयारी के समय खेत मै 5-6 कुन्तल खूब सडी ट्राइकोडर्मा कल्चर से मिली गोबर की खाद प्रति नाली की दर से मिट्टी में मिलायें। रोपण से पूर्व प्याज बल्वों को ट्राइकोडर्मा कल्चर से उपचारित करें। प्याज बल्वों को पानी से हल्का भिगो कर 10 ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति कीलो प्याज की दर से उपचारित करें।

कन्दों का रोपण समतल क्यारियों मै 60x30 से0मी0 (लाइन से लाइन 60 से0मी0 तथा लाइन में कन्द से कन्द की दुरी 30 से0मी0) पर करते है। कन्दो को 6 से0मी0 की गहराई पर रोपित करें। एक नाली याने 200 वर्ग मीटर खेत के लिये 50-60 कि0ग्रा0 कन्दो की आवश्यकता होती है। प्याज एक पर-परागित फसल है जिसमें मधु मक्खी या अन्य कीट परागण मै मदद करते है, इसलिये बीज  उत्पादन हेतु न्यूनतम 400 मीटर कि अलगाव दूरी ( Isolation distance ) याने प्याज की एक किस्म से दूसरी किस्म कि दुरी 400 मीटर होनी चाहिये।

 प्याज कन्दो को रोपण के बाद सिंचाई करें। समय समय पर आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहे ।

पौधौ को गिरने से बचाने के लिये बीज फसल में स्फुटन आरम्भ होने कि अवस्था में मिट्टी चढाते हैं।कन्दों की बुआई के एक सप्ताह बाद अंकुरण आरम्भ हो जाता है तथा लगभग 2½ माह बाद फूल वाले डंठल बनने शुरु हो जाते है‌ ।

खड़ी फसल की कम से कम तीन बार निगरानी करते हैं , यदि कोई पौधा लगाई गई किस्म के विपरीत लक्ष्णों वाला या रोग ग्रस्त हो तो निकाल कर नष्ट कर दें। अवांछित पौधे को , पौधे की बढ़वार, पत्तों व फूलों के रंग रूप, फूलों के खिलने का समय आदि के आधार पर निकालना चाहिए। पुष्प गुच्छ बनने के 6 सप्ताह के अन्दर ही बीज पक कर तैयार हो जाता है। बीज वृतों का रंग जब मटमैला हो जाय एवं उनमें 10-15 प्रतिशत कैप्सूल के बीज बाहर दिखाई देने लगे तो बीज वृन्तौ को कटाई योग्य समझना चाहिये सभी बीज वृन्तौ को काटना चाहिये, जिनमें 10-15 प्रतिशत काले बीज बाहर दिखाई देने लगे हों। 10-15 से0मी0 लम्बे डठंल के साथ पुष्प गुच्छौ को काटना चाहिये, कटाई के बाद बीज वृन्तौ को तिरपाल या पक्के फर्श पर फैला कर खुले या छायादार स्थान पर सुखाना चाहिये, अच्छी तरह सुखाये गये बीज वृन्तौ को डडों से पीट कर बीज को निकालते हैं, बीजौ से बीज वृन्तौ के अवशेष तिनकों डंठलौ आदि को अलग कर लेते है, सुखाने के बाद बीज को फफूदीं नाशक दवा या ट्राइकोडर्मा से उपचारित कर उचित भन्डारण करें। 

उपज - एक नाली कास्त करने पर 10-12 कि0ग्रा0 प्याज़ बीज प्राप्त होता है। प्याज़ की अधिक उपज लेने एवं जैविक खेती को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से स्थानीय रुप से उत्पादित चयनित प्याज कन्दौ से ही प्याज बीज का उत्पादन करने का प्रयास किया जाना चहिये इस दिशा में विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान अल्मोड़ा ने हिमोत्थान परियोजना के माध्यम से वी.एल. प्याज-3    का उत्तरकाशी एवं बागेश्वर जनपदों के कुछ कास्तकारौ के यहां प्याज बीज उत्पादन की पहल की है। 

इस बर्ष सेवा इंटरनेशनल संस्था सिमली , कर्णप्रयाग जनपद चमोली द्वारा भी प्याज बीज उत्पादन हेतु वी. एल. प्याज- 3 बीज से प्याज कन्दो का उत्पादन किया जा रहा है।

मोबाइल नंबर

7055505029