कांग्रेस से आतंकित है देश


क्या कांग्रेस कोई राजनीतिक दल है? सासंद स्वामी इस बात को नकारते हैं, उनका कहना है कि कांग्रेस एक आतंकवादी संगठन है। पाठकों को यह कथन पूर्वाग्रह से भरा लग सकता है, पर आप यदि गौर से कांग्रेस की कार्यशैली, उसके राजनीतिक ध्येय का अध्ययन करेंगे तो डा.स्वामी का कथन सच लगने लगता है। एक पवित्र परिवार की इच्छाओं, उसके स्वार्थों को पूर्ण करने के लिये न्यौछावर लाखों अतिवादियों का यह गिरोह सात दशकों से देश को चूना लगाता रहा है। इस कांग्रेसी गिरोह की कार्यप्रणाली इतनी सटीक और व्यवहारिक है कि कोई भी राजनेता या दल चाहे वह कितना ही समर्पित और ईमानदार हो, इस का सामना पांच साल से अधिक नहीं कर सकता। कांग्रेस का फंडा बड़ा सीधा है। व्यापारियों को टैक्स चोरी करने दो, लोकतंत्र के सभी संस्थानों में भ्रष्टाचार की क्यारी हमेशा हरी रहे, जनता को अपनी सरकार चलाने दो, सरकार मजा करती रहे। यानि जो पैसा टैक्स से या अन्य मदों से सरकार के पास आता है, उसे कांग्रेस विकास में लगाने के बजाय वापस अपने लाखों कार्यकर्ताओं में बांट देती है। माना जाता रहा है कि यदि कांग्रेसियों का विकास होगा, तो इसे देश का ही विकास मान लिया जाये, देश कांग्रेसी से जुड़ी जनता ही तो है। वामपंथियों को नेहरू ने अपने जमाने से ही इस गैंग में शामिल कर दिया था। इस कारण जब भी कांग्रेसी गैंग पर कोई शिकंजा कसता है, या कोई बड़ा चोर पकड़ा जाता है तो वामपंथी पत्थरबाजों की तरह देश भर में तोड़फोड़ शुरू कर देते हैं। शहरी नक्सली असहिष्णुता और मानवाधिकारों का विलाप लगाने लगते हैं। मीडिया में बैठे तोपची भौंक-भौंक कर संसद की नींद हराम कर देते हैं। इसी कारण पांच बरस तक तो कांग्रेस सत्ताहीन होने का सदमा सह सकती है, पर उससे अधिक का गैप हुआ तो भाड़े के ये कांग्रेसी आतंकी किसी का भी हाथ थाम सकते हैं। प्रियंका गांधी को गिरोह का चेहरा बनाने के पीछे अपने भांडों को यह दिलासा दी जा रही है कि देखो, हम तीन स्टेट में लौट आये हैं, हम फिर संसद को आंख मारने और राजनीति का मनोरंजन का केन्द्र बनाने वाले हैं। मध्यम वर्ग तो कांग्रेस के चेहरे से परिचित है...पर संकट उन भेड़ों का है जिन्हें मात्र चारा चाहिये और वे लाइन लगाकर कांग्रेसी गुंडों को सत्तारूढ़ करवा देते हैं। सोशल मीडिया पर राष्ट्रहित की बात करने वाले राजनीतिक दलों को इन भेड़ों तक पहुंचने की कला आनी चाहिये। एक दिहाड़ी मजदूर जो अंबानी के नेटपैक पर अपने लिये भाषा ढूंढ रहा है, वह मोदी के भजन गाने से राष्ट्र का अर्थ नहीं समझेगा। इन भेड़ों के लिये सोशल मीडिया पर नई राजनीतिक लिपि बनानी होगी...ताकि मुसलमान हो या हिन्दु, वे राष्ट्र के गौरव का अर्थ जान सकें। जो लोग मात्र पूजा प(ति बदल जाने के कारण स्वयं को बाबर से जोड़कर देखते हैं, उन्हें भारत से उनके रक्तसंबंध की याद दिलानी होगी। हिन्दुओं पर शासन करने की उनकी ललक को कांग्रेस हमेशा से हवा देकर अपना उल्लू सीधा करती रही है, इसमें वामपंथी इतिहासकारों ने बड़े सलीके से इस राजनीतिक जहर की खुराकें तैयार कर पाठ्यक्रमों के माध्यम से नई पीढ़ी के रक्त में पहुंचायी। इससे हिन्दु और मुसलमानों के बीच वैमनस्य और बढ़ा, दक्षिणपंथी सरकारें चाहे जितनी भी कल्याणकारी योजनायें बना लंे, दलित और मुसलमानों के मन में इस षडयंत्रपूर्ण इतिहास के कारण जो कडुवाहट है, उसे खत्म करने के लिये इतिहास का सही चेहरा सामने लाना होगा, पर उसके लिये कम से कम पन्द्रह साल का शासन चाहिये। कांग्रेस जानती है कि जिस दिन कोई सशक्त चेहरा या दल दिल्ली में पन्द्रह साल टिक गया, उसका साठ साल का खेल खत्म हो जायेगा। पर यह भी सच है कि भारत के चुनावों में सबसे निर्णयकारी मत उस तबके का है जिसके लियेे लोकतंत्र और राष्ट्र का अर्थ मात्र दाल-रोटी और प्याज की कीमत है। मोदी कुछ हद तक इस तबके की भाषा के नजदीक पहुंचने में सफल तो हुये हैं पर साठ सालों तक बने राजनीतिक रेगिस्तान को पांच साल में कोई भी हरा नहीं कर सकता। देश के मुसलमान मणिशंकर के पाकिस्तान जाने पर कांग्रेस से इतना प्रसन्न हो जाते हैं कि उन्हें मोदी का विकास भी साम्प्रदायिक लगता है। कांग्रेस के सारे रिमोट विदेशों में हैं, इसी कारण एक मंदबु(ि नेता को वैकल्पिक राजनीति का ब्राण्ड बनाकर भारत की पूरी चिंतन परंपरा की खिल्ली उड़ाई जा रही है। पर जिन्हें भारत को लूटना है, इस देश की प्रतिभाओं को पलायन के लिये बाध्य करना है, कांग्रेस उनके लिये एक आदर्श मंच है। भ्रष्टाचार, कांग्रेस के लिये समस्या कभी रही ही नहीं, अनेक दलाल, तस्कर, देशद्रोही, शहरी नक्सली, बंदूक वाले नक्सली..सब कांग्रेस के एक इशारे पर भारतीय राजनीति के प्रांगण में विस्फोट कर लोकतंत्र के परखचे उड़ाने को तैयार रहते हैं, आतंकवादियों की  शक्ल क्या कांग्रेसियों से नहीं मिलती? बकौल सुब्रह्मण्यम स्वामी...।