उत्तराखंड  परिपेक्ष में  ओगल/ओगळ   /कोटू /फाफड़ा का इतिहास              
 
Botanical Name- Fagopyrun esculentum) 

Common Name- Buckwheat 


 ओगळ  कभी उत्तराखंड की मुख्य  फसल  होती थी । 

ओगळ  से आटा बनता है।  ओगल पुरे हिमालय क्षेत्र में हरी सब्जी के काम आता है।

ओगल/ओगळ  घरेलु उपचार में औषधीय प्रयोग में भी आता है जैसे खून की कमी होने  पर लोहे की कढाई में पत्तों को उबालकर   रोगी को देना।  पुराने कब्ज दूर करने हेतु भी ओगल काम आती है।

ओगल /ओगळ में रूटीन पाए जाने  के कारण ओगळ  बहुत उपयोगी है।

ओगल /ओगळ के फूलों से नेक्टर मिलता है जिसे शहद की मक्खियाँ  पसंद करती हैं और एक विशेष लाभदायी शहद भी  प्राप्त किया जाता है। कभी ओगळ पर निर्भर मधुमखियोंका शाद सबसे मंहगा शहद होता था।  

ओगल /ओगळ की पत्तियों से खाद भी बनती है और बंजर भूमि के सुधारी करण  काम भी ओगल आती थी।

  ओगल /ओगळ के पत्तों से कपड़े भी रंगे जाते थे।   

 इस लेखक का अनुभव है कि उन्नीसवीं - बीसवीं सदी में ओगल /ओगळ को दरकिनार कर दिया गया था

 

ओगल/ओगळ या कोटू /फाफड़ा का कृषिकरण लगभग 6000 -5000 वर्ष पहले चीन के  दक्षिण यूनन या सिचुइन या पूर्वी तिब्बत में शुरू हुआ।  ओगल का चीनी नाम तिब्बती -वर्मी भाषा में  है . 

कुछ वैज्ञानिक पश्चमी तिब्बत को ओगल /ओगळ या कोटू /फाफड़ा के कृषिकरण  का  मानते हैं। भारत में ओगल/ओगळ ने या ओगल/ओगळ  पश्चिम तिब्बत से या पूर्वी तिब्बत से वर्मा , फिर उत्तर पूर्वी प्रदेश , नेपाल होती हुयी  उत्तराखंड , हिमाचल , कश्मीर पंहुची। 

शायद यह भी हो सकता है कि ओगल/ओगळ या कोटू /फाफड़ा पूर्वी तिब्बत -वर्मा सीमा से  आसाम -मेघालय -अरुणाचल प्रदेश -भूटान में फैला हो और ओगळ  या कोटू /फाफड़ा ने कश्मीर , हिमाचल, उत्तराखंड  में पश्चिम तिब्बत के रस्ते प्रवेश किया होगा .
महाभारत और अशोक काल में उत्तराखंड से यदि शहद निर्यात होता था और जिसकी बड़ी मांग थी तो मेरा अनुमान है कि उत्तराखंड में ओगल/ओगळ   /कोटू /फाफड़ा की खेती 3000 साल  चुकी होगी।  ओगल/ओगळ   /कोटू /फाफड़ा से मधुमक्खियों को रिझाया जाता है और वै  मधुमक्खियाँ ओगल/ओगळ   /कोटू /फाफड़ा के पराग चूस कर एक विशिष्ठ शहद बनाती हैं. 

 ब्रिटिश काल या उससे पहले उत्तराखंड में मकई /मुंगरी की खेती को जनता से अधिक प्रोत्साहन मिला. और शायद ओगल/ओगळ   /कोटू /फाफड़ा की खेती पीछे होती गयी। 

आज आवश्यकता है कि ओगल/ओगळ   /कोटू /फाफड़ाको सरकारी और सामजिक प्रोत्साहन मिले। ओगल/ओगळ   /कोटू /फाफड़ा में कार्बोहाइड्रेट , प्रोटीन , वसा , फाइबर और राख  मात्रा में मिलता है। 

कोटु  व्रत का आटा  है , सब्जी भी बनती है।  सब्जी वैसे ही बनाई जाती है जैसे पहाड़ी पालक या मार्सू की भुज्जी।  ओगळ आटा से  वे पदार्थ बन सकते हैं जो मकई , गेंहू , मंडुवे के आटे से बनते हैं।