'कमज़ोर विपक्ष देश का दुर्भाग्य'



सोचा था कि मज़बूत सरकार के आते ही देश मज़बूत हो जाएगा। लेकिन अब समझ में आया कि राजनैतिक शक्ति समुच्चय की स्थिति का औंसत भी मायने रखता है। इस नाते सक्षम विपक्ष कोरोना महामारी के इस दौर में महत्वपूर्ण हो गया है। यही है भारत की सियासी कच्ची कड़ी।
सोनिया गाँधी कहीं से भी भारत की नहीं दिखती..कामों, रुझानों से तो बिल्कुल भी भारत की नहीं। राहुल की तो बात छोड़िए। उस पर कुछ कहना बेमानी है।
किसी एक विषय, मुद्दे पर दृढ़ रहकर सतत बात करना और समाज के हित में बात करना विपक्ष को मजबूत बनाता है। लेकिन यही नहीं हो पा रहा। अपने ही केसों और घपलों का दबाव मन-मस्तिष्क पर छाया है। सोनिया गाँधी हिम्मत नहीं जुटा पाती, एक ही मुद्दे पर दृढ़ रहने की।
सोनिया विदेश जाती हैं। कहाँ, क्यों जाती है...यह विषय उनको सार्वजनिक करना आवश्यक नहीं लगता। यह ल्युटियन सियासत का डीएनए है।
सोनिया संसद में किसी गम्भीर विषय को रखती नहीं दिखती। किसी मुद्दे को स्थापित करती भी दिखाई नहीं देती। अगर विपक्ष बिखरा है तो सोनिया व काँग्रेस के कारण। उसकी आधी शक्ति तो जिहादी, रेडिकल, जमाती ताकतों को कवर फायर करने में खर्च हो जाती है।
कोरोना महामारी के इस दौर में मज़हबी विभाजन सम्बन्धी बयानों से बचना चाहिए था। सोनिया-राहुल ऐसा कर नहीं पाए।
जब आँधी आती है तो पेड़ का काम फल देना नहीं होता। पेड़ मज़बूती से अपनी जड़ें ज़मीन में दबकर अपने को बनाए रखने का प्रयास करता है। इसी सामान्य बात को घर चलाने वाली ग्रहणी और सरकार चलाने वाले अर्थशास्त्री भी समझते है। कोरोना से उपजे आपातकाल में 'मुफ्त का चन्दन' बाँटने के हालात नहीं है। लेकिन सोनिया गाँधी के बयान व हैंडलर द्वारा लिखे पत्र मुफ्तखोरी की लोकलुभावन बात करते नज़र आते है। भविष्य का आंकलन कौन करेगा ? इसीलिए जनता उनको गम्भीरता से नहीं ले रही है। इस प्रकार हाशिए पर खड़ा है देश का गैर जिम्मेदार विपक्ष।
इटली की पृष्ठभूमि की होने के कारण उनको विदेश नीति पर कुछ कहना आवश्यक नहीं लगता।
स्वास्थ्य पर सोनिया-राहुल बासी रोटी गर्म करते नज़र आ रहे होते हैं। अपने 70 के किए धरे का बोझ ढोते उनके बयानात दम तोड़ देते हैं।
इधर नये छत्रप केजरीवाल, नवीन पटनायक, स्टालिन, नीतीश, उद्धव, विजयन उभर आए हैं। उनकी समझ सोनिया-राहुल से बेहतर है। जनता उनको पसन्द करती है। पुराना स्क्रैप कोई खरीदने को तैयार नहीं है।
देश के सामान्य लोगों की चिंता है कि आजकल विपक्ष जीवन्त नहीं है। जनता विपक्ष में बदलाव चाहती है।