लोकतंत्र का भविष्य हैं मोदी


तमाम आशंकाओं और काल्पनिक भयों को दरकिनार करके श्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने भारत जैसे विशाल और असीम विविधता और विद्रूपता लिए देश के प्रधानमंत्री के रूप में अपना कार्यकाल सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है। मोदी ने इन पांच वर्षों में  नेता से जननेता और फिर राजनेता का दर्जा हासिल कर लिया है। उन्होंने निजी और सार्वजनिक जीवन में शुचिता, आचरण, अनुशासन और चरित्र की सराहनीय मिशाल ऐसे समय में पेश की है जब नेता और राजनीति शब्द सबसे बदनाम शब्दों में शुमार हैं। दुनिया में इतना चरित्र हनन, इतनी नफरत और इतना दुष्प्रचार अभियान शायद ही किसी नेता या पब्लिक फीगर के खिलाफ चलाया गया होगा जितना मोदी के खिलाफ चलाया गया और तमाम आरोपों को शांति, धैर्य और गरिमा के साथ सहा प्रधानमंत्री ने। इतना झेलना आसान बात नहीं। हम सब जानते हैं कि सितंबर 2013 से मई 2014 तक भारत के गैर भाजपा दलों, अकादमिक विभूतियों, मीडिया और इंटेलकटुअल्स की एक जमात ने जनता के मन में, खासकर मुस्लिम समुदाय के भीतर, इस बात को बैठाने की पुरजोर कोशिश की कि मोदी प्रधानमंत्री बन गए तो भारत के मुस्लिमों का एक दिन भी सुरक्षित रहना मुश्किल हो जायेगा। गिरने की हद तक गिरकर इस वर्ग ने इस काल्पनिक नफरत की थ्योरी को भुनाने की कोशिश की। लेकिन आज का भारत 1950 या 70 के दशक का भारत नहीं है। आज गांव-गांव तक सूचना और संचार की क्रांति का विस्तार है और सोशल मीडिया से जुड़ा हर आदमी पत्रकार और ओपिनियन मेकर है जिसे बरगलाना इतना आसान नहीं। नफरत के इस अभियान का भारत के विवेकशील मतदाता ने करारा जवाब दिया और ग्रैंड ओल्ड पार्टी को 44 सांसदों तक समेट लिया। क्षेत्रीय दल हों या जाॅर्ज ओरवेल के ‘सुगरकैंडी माउंटेन्स’ की तरह जनता तो क्रांति के सब्जबाग दिखाती भारत की कम्युनिस्ट पार्टीज़, सब के सब इस मोदी की आंधी में उड़ गए। गठबधंन की घुटन से निराश और ऊब चुके भारत ने 30 साल के बाद स्पष्ट बहुमत वाली सरकार चुनी।
मोदी बेहद सामान्य परिवार और परिस्थितियों से ऊपर उठे हैं इसलिए इस देश के किसान मजदूर, पिछड़े, वंचित और गांव गरीब ने उनमे अपना अक्स देखा, अपने सपनों की संभावनाएं देखी। दो-तीन प्रधानमंत्रियों को छोड़ दिया जाय तो प्रधानमंत्री की कुर्सी अमीर नवाबों के पास, अभिजन के पास रही है जो गरीबी शब्द को उच्चारित तो कर सकते थे पर उसका अर्थ और आभास नहीं जानते थे। मोदी आजाद भारत में पैदा होने वाले पहले प्रधानमंत्री भी हैं और लुट्येन्स की दिल्ली में अंग्रेज़ी जिस प्रकार राज करती है उस परिदृश्य में एक अच्छी हिंदी बोलने वाले को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठा देखकर ब्रिटिश अख़बार गार्डियन ने कहा कि ‘भारत असल में अब आज़ाद हुआ है।’ लेकिन सालों तक सत्ता के तलुवे चाटने वाली जमात निराश नहीं हुईई और ‘2015’ में ‘सम्मान वापसी’ का तमाशा चला ताकि दुनियां को बताया जा सके कि भारत की बेवकूफ जनता ;31प्रतिशत वोट शेयर को खूब उछाला गयाद्ध ने जिसे चुना है उसके राज में बु(िजीवी वर्ग कितना आतंकित है। इस अभियान में मीडिया का एक वर्ग पूरी स्वाननिष्ठा के साथ खड़ा रहा। हालाँकि यह भी सच है कि अति उत्साह और धार्मिक या जातीय कट्टरता के नाम पर जो छिटपुट हिंसा हुई, वह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है और सत्ताधारी दल का दायित्व इन मामलों में हर प्रकार से ज्यादा बढ़ जाता है। लेकिन इक्का-दुक्का घटनाओं को संगठित हिंसा का नैरेटिव बनाकर जिस पर परोसा गया उसने सवाल उठाने वालों को ही एक्सपोज़ कर दिया। मोदी जी ने ईमानदारी से काम किया है और थूकने मूतने की तमीज़ से लेकर नारी सुरक्षा और सम्मान के सराहनीय अभियान चलाए। उन्होंने किसी भी पूर्ववर्ती की तुलना में योग को वैश्विक मंच पर गरिमामय स्थान दिलाने में सफलता पाई है। राष्ट्रहित विदेश नीति का सबसे प्रमुख तत्व है और इस दिशा में दुनिया के तमाम बड़े देशों के साथ मोदी ने रिश्तों को मजबूती दी है जिसका उत्तर परिणाम देश ने विश्व समुदाय द्वारा हाल में पुलवामा घटना के आलोक में पाकिस्तान को अलग थलग किये जाने के रूप में देखा। अमेरिकी संसद में मोदी ने जब भाषण दिया तो उस भाषण में भारत के किसान और मजदूर की गूंज भी थी..वह भाषण एक दस्तावेज़ है कि सिर्फ अॅक्सफोड और हार्वर्ड वाले ही नहीं, भारत के देहात से निकला गंवार भी अपनी तरह की हैसियत और हनक रखता है। मोदी के संबंध में अमेरिका का रुख अड़ियल रहा है और हर स्टैंडिंग ओबेसन में उस अड़ियलपन के लिये माफ़ी का इज़हार भी साफ झलक रहा था। ब्रिटेन, जापान, फ्रांस, आॅस्ट्रेलिया, रूस, कनाडा और इज़राइल, लेटिन अमेरिकी देशों के साथ-साथ मध्य पूर्व व खाड़ी देशों के साथ भारत के रिश्ते इतने प्रगाढ़ कभी नहीं रहे। प्रधानमंत्री शानदार वक्ता हैं, जनता की नब्ज़ बखूबी जानते हैं और मन की बात जैसे लोकप्रिय कार्यक्रर्मों के जरिये उन्होंने सीधे आम आदमी से जुड़ने की कोशिश की है। देश में काले धन पर प्रहार के रूप में  की गयी उनकी सर्जिकल स्ट्राइक चर्चा में रही, उसके प्रभाव पर बहस होनी चाहिए लेकिन राजनीति में सिम्बोलिस्म का बड़ा मूल्य होता है और 86 प्रतिशत करेंसी को बंद करने की हिम्मत दिखाकर मोदी ने साहसिक फैसला इसी आलोक में लिया। कर सुधार की दिशा में जीएसटी को अब आथर््िाक विशेषज्ञ भी मील का पत्थर मान रहे हैं। वही वन रैंक वन पेंशन को मूर्तिमान कर मोदी सरकार ने सैनिकों की एक बड़ी माँग को पूरा कर ब्राॅउनिए पाॅइंट्स जीते। रक्षा मोर्चे पर रफाल पर कुछ डगमगाहट को छोड़ दिया जाय तो सरकार का कार्य सराहनीय रहा है। सर्जिकल और एयर स्ट्राइक्स ने भारत के भीतर और बाहर जो खलबली मचाईई वह काबिले गौर है। बालाकोट भारतीय विपक्ष के लिये ‘बलाकोट’ बन गया है। यद्यपि मेरा मानना है कि पाकिस्तान नीति को लेकर सरकार के पास कोई दिशा नहीं है और कश्मीर को लेकर हाल में उठाये कुछ सख्त क़दमों को और धार देनी चाहिए। गांव और गरीब, किसान और मजदूर या हाशिये पर तरक्की के क्षितिज को निहारते आम आदमी के विकास और कल्याण के लिए भी काफी योजनाएं चलायी गयी हालाँकि उनके प्रभाव और उपादेयता पर खुलकर बहस मुबाहिसा होना चाहिये। सरकार रोटी रोजगार के ज़मीनी मुद्दे पर भी उतनी सफल नहीं रही है। जिस देश में अभी भी तन ढकने को पूरे कपड़े और लाखों लोगों के लिए पेट भर खाना न हो, वहां प्रधानमंत्री 10 लाख का सूट पहने कभी प्रशंसा नहीं बटोर सकता।



इस कुछ बातों पर आने वाले समय में विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि जिन योजनाओं और कार्यों की शुरुआत प्रधानमंत्री के नेतृत्व में उनकी सरकार ने की है, उनका ज़मीनी स्तर पर भली प्रकार क्रियान्वयन होने के लिए वे यकीनन एक और कार्यकाल के पात्र हैं। समकालीन भारतीय राजनीति में विपक्ष के पास मोदी के कद का कोई नेता है भी नहीं। विपक्ष का पूरा अभियान अंध मोदी विरोध पर टिका हुआ है जो वोटर्स के गले कितना उतरेगा, ये समय ही बताएगा। अपने अस्तित्व को बचाने के उद्देश्य से साथ आये धुर वैचारिक विरोधी दल बिना ठोस नीति और नेता के जनता को कितना लुभा सकेंगे, यह देखना रुचिकर होगा। भारत के एक राज्य की राजनीति से निकला एक सम्मान कार्यकर्ता आज वैश्विक स्तर का नेता बन चुका है। एक ऐसा नेता जिसके स्वर को सुना जाता है, जिसके मौन की व्याख्याएं की जाती हैं, जिसके अंदाज़ को दीवानगी की हद तक पसंद किया जाता है। संस्कार की सामथ्र्य और चरित्र की जिस ऊर्जा से मोदी काम करते हैं उससे बहुत बार लगता है कि भारत और विश्व को लेकर उनके शुभ संकल्पों पर )षि-मुनियों के आशीष की मुहर लगी हुईई है। ईश्वर करे ऐसा ही हो।