मोदी के मास्टर स्ट्रोक से ड्रैगन पस्त


कोरोना को जन्म देने वाला और दुनिया का सुपर पॉवर का ख्वाब देखने वाला चीन की मंशा पर भारत ने पानी फेर दिया । एफडीआई के मामले में मोदी के मास्टर स्ट्रोक से चीन चारो खाने  चित्त हो गया । भारत सरकार ने चीन और अन्य पड़ोसी देशों से सीधे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश पर पाबंदी लगा दी । जिसके बाद चीन बौखला गया । भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बड़ा फैसला लेते हुए सबको चौकां दिया । भारत ने स्पष्ट रूप से कहा कि भारत की भौगोलिक सीमा के लगते देशों से विदेशी पूंजी निवेश से पहले केंद्र सरकार की मंजूरी लेनी होगी । भारत ने भले ही यह बात किसी का नाम लेकर न कही हो लेकिन इशारा चीन और पाकिस्तान पर ही था । इस फैसले के बाद अर्थव्यस्था के ज्ञानी कितना भी मोदी सरकार को किन्तु परन्तु से सवालों के घेरे में खड़े कर रहे हो लेकिन इसमे कोई संदेह नही है कि सरकार ने एक मजबूत व् दूरदर्शिता को भांपते हुए कदम उठाकर देश की आर्थिकता चीन जैसे चालाक और गलत मंशा रखकर बढ़ने वाले देश हस्तक्षेप की आशंका को निर्मूल करने का प्रयास किया है । 



अब भारत ने अपने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की नीति में बदलाव किया है. ताकि चीन की कंपनियां, भारत के कारोबारी संस्थानों में अपनी हिस्सेदारी न बढ़ा सकें । उधर चीन ने तुरंत अपनी प्रतिक्रिया देने में विलम्ब नही किया चीन  ने कहा कि  भारत के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की नीति में बदलाव करने के फ़ैसले को भेदभाव करने वाला क़दम क़रार दिया है. भारत में चीन के दूतावास ने कहा कि भारत में चीन के निवेश हमेशा, भारत के औद्योगिक विकास को प्रोत्साहन देते हैं । कुछ खास देशों से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए भारत के नियम डब्लूटीओ के गैर भेदभाव सिद्धान्त का उलंघन करते है जो  मुक्त व्यापार की  सामान्य प्रवत्ति के खिलाफ है  यह ठीक नही है । भारत सरकार से गुज़ारिश की कि वो 'व्यापार में भेदभाव भरे इस बर्ताव में परिवर्तन लाए और निष्पक्ष, पारदर्शी एवं समान अवसर वाले व्यापारिक माहौल को बढ़ावा देने का काम करे । भारत कोरोना वायरस के चलते तालाबंदी का सख्ती से पालन करने की अपील करते हुए नरेंद्र मोदी ने वयं राष्ट्र जाग्रयाम पुरोहिता के वेदवाक्य की घोषणा करते हुए देश को जागरूक होने की सलाह दी है परन्तु इस खतरे को देखते हुए सरकार को अभी भी अपने आँख कान नाक सब खोलकर रखने होंगे । क्योकि चीन की चाल , चरित्र और चालाकी से भारत अच्छी तरह वाकिफ है । यहाँ समझने वाली बात यह है कि भारत सरकार ने कोविड -19  जैसी महामारी  के बीच उन्मुलन को देखते हुए घरेलू कम्पनियों के अधिग्रहण की किसी कोशिश पर रोक लगाने के लिए भारत के साथ जमीनी सीमा से आने वाले  विदेशी निवेश को सरकारी मंजूरी अनिवार्य कर दी है । भारत के इस कड़े फैसले से चीन और अन्य पड़ोसी देशों से आने वाले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश( एफडीआई) अवरोध खड़ा होगा । उन देशों को भी देख लीजिए यह समस्या किसे होगी । चीन , बांग्लादेश , भूटान , अफगानिस्तान , पाकिस्तान , म्यामांर , नेपाल , शामिल है  इन सब की तुलना में चीन को इसलिए बड़ा झटका लगा है कि चीन की कम्पनियां  भारत में सबसे ज्यादा निवेश करती है । भारत में चीन का मौजूदा और प्रस्तावित निवेश 26 अरब डॉलर के आसपास है इसी को देखते हुए चीन तिलमिला गया । अब इन देशों को जब तक सरकार की मंजूरी नही मिलेगी यह निवेश नही कर सकेंगे । भारत में होने वाले किसी निवेश के लाभार्थी  भी यदि इन देशों से होंगे या  इन देशों के नागरिक होंगे । तो ऐसे निवेश के लिए सरकारी अनुमति जरूरी है । भारत सरकार ने  मीडिया ने ख़बर दी थी कि चीन के पीपल्स बैंक ऑफ़ चाइना ने भारत में घर का क़र्ज़ बांटने वाली सबसे बडी ग़ैर बैंकिंग संस्था, हाउसिंग डेवेलपमेंट फाइनेंस कॉरपोरेशन लिमिटेड (HDFC) में अपनी हिस्सेदारी 0.8 प्रतिशत से बढ़ा कर 1.01 फ़ीसदी कर ली है । 18 अप्रैल को भारत सरकार के उद्योग और आंतरिक व्यापार प्रोत्साहन विभाग ने प्रेस में एक बयान जारी किया था. 19 अप्रैल को अंग्रेज़ी के भारतीय अख़बार द हिंदू ने इस बयान के हवाले से ख़बर दी थी कि, 'प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की नीति में इस बदलाव का मक़सद स्पष्ट है. हम किसी भी विदेशी निवेशक द्वारा कोविड-19 की महामारी का फ़ायदा उठा कर किसी भारतीय कंपनी का अधिग्रहण करने या अपने क़ब्ज़े में लेने के प्रयासों को रोकना चाहते हैं । यहाँ एक बात और समझने योग्य है कि अगर भविष्य में भी भारत के पड़ोसी देशों द्वारा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के कारण किसी भारतीय कंपनी का स्वामित्व बदलता है, तो इसके लिए भी भारत सरकार की मंज़ूरी लेनी ज़रूरी होगी । अगर किसी कंपनी ने भारत में निवेश कर रखा है और उस कंपनी की विदेशी शाखा में कोई चीनी कंपनी या संस्था पैसे लगाती है, तो उस कंपनी की भारतीय सब्सिडियरी या मूल कंपनी को सरकार से इसकी इजाज़त लेनी होगी । मोदी  सरकार के इस क़दम का मक़सद यह है कि अपनी अर्थव्यवस्था में चीन के बढ़ते प्रभाव पर लगाम लगाना पहली प्राथमिकता है साथ ही साथ कमज़ोर भारतीय कंपनियों के स्वामित्व को चीन की संस्थाओं के हाथ में जाने से रोकना है ।  क्योंकि दुनिया भर में फैली कोविड-19 महामारी के कारण भारत ने वायरस का संक्रमण रोकने के लिए जो लॉकडाउन लगाया है उससे भारत की कई कंपनियों की स्थिति कमज़ोर हुई है । अर्थव्यवस्था को परखने वाले जानकारों का मानना है कि विदेशी निवेश के नियमों में इस बदलाव का भारत और चीन के संबंधों पर बुरा असर पड़ सकता है. आशंका इस बात की भी है कि भारत के इस क़दम भविष्य में चीन की कंपनियों के भारत में निवेश पर भी बुरा प्रभाव पड़े. ख़ास तौर से जब चीन ये दावा कर रहा है कि उसके निवेश के कारण भारत में कई उद्योगों का तेज़ी से विकास हुआ है. जैसे कि मोबाइल फ़ोन, बिजली के घरेलू सामान, बुनियादी ढांचे और ऑटोमोबाइल उद्योग शामिल है । चीनी  केंद्रीय बैंक ने एचडीएफसी के 1.75 करोड़ शेयर खरीदे है । लॉकडाउन के बाद इन शेयरों में 32.29 फीसदी की गिरावट आ गयी है । जनवरी में यह शेयर का आंकड़ा 2500 था जो अब 1600 रह गया है इसी का फायदा उठाते हुए चीन ने एचडीएफसी के बहुत सारे शेयर खरीदे थे । कोरोना की ऐसी तबाही आई की दुनियाभर की अर्थव्यवस्था 50 से 60 फीसदी गिर गयी है । जो भी हो भारत सरकार के इस फैसले ने सबसे ज्यादा चीन प्रभावित होगा । मोदी सरकार ने ड्रैगन की चतुराई वाली चाल को नेस्तनाबूत कर दिया ।