नमक यात्रा


कहते हैं नमक मसालों की माँ होता है। अगर किसी भी मसाले वाले खाने में नमक नहीं तो पकवान बेस्वाद हो जाता है। नमक ही है जो इंसान के अंदर के जहर को कम करती है वरना कोबरे से भी भयानक जहर इंसान में होता है। अगर कोईई व्यक्ति जीवनभर नमक न खाए तो उस की औसत आयु 20 साल हो जाएगी और वह इंसानी प्रवृत्ति में नहीं रहेगा। कुल मिला कर हमारी कोशिकाओं को आयोडीन की सख्त जरूरत है और वो हमें नमक से प्राप्त होता है। नमक हममें से हर किसी के जीवन का अभिन्न हिस्सा है। हमारे देश की अर्थव्यवस्था में नमक बहुत बड़ा हिस्सा रखता है। बात अगर भारत की करें तो भारतीय नमक उद्योग ने पिछले 7 दशकों में तेजी से विकास किया है। देश की आजादी के समय जहां हम नमक का आयात करते थे, वहीं आज 120 नमक उत्पादक देशों में से सालाना 3.4 करोड़ टन औसतन वाषर््िाक उत्पादन के साथ भारत तीसरे स्थान पर है। भारतीय नमक उद्योग घरेलू 1.27 करोड़ टन की आवश्यकता को पूरा करने के बाद 20 देशों को करीब 50 लाख टन नमक का निर्यात करता है।
देश में बनने वाले कुल नमक का 70 प्रतिशत समुद्री पानी और 28 प्रतिशत भूमिगत समुद्री पानी से और शेष 2 प्रतिशत झीलों के जल / नमक की चट्टानों से बनता है। भारत में सेंधा नमक का एकमात्र स्रोत हिमाचल प्रदेश में स्थिति मंडी है। कुछ ही लोगों को मालूम होगा कि हिमाचल के मंडी शहर नमक की मंडी के कारण मंडी नाम से पुकारा जाता है। देश के कुल नमक उत्पादन में गुजरात, तमिलनाडु और राजस्थान की 96 प्रतिशत भागीदारी है। गुजरात कुल उत्पादन में 75 प्रतिशत, तमिलनाडु 11 प्रतिशत और राजस्थान 10 प्रतिशत का योगदान करते हैं। इसके अलावा अन्य राज्य जैसे-आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, गोवा, हिमाचल प्रदेश और दीव और दमन में भी नमक का उत्पादन होता है। कुल उत्पादन का 62 प्रतिशत बड़े नमक निर्माताओं, 28 प्रतिशत लघु निर्माताओं और शेष मध्यम स्तर के निर्माताओं द्वारा किया जाता है। ज्यादातर नमक का उत्पादन सिर्फ निजी क्षेत्र द्वारा किया जा रहा है। भारतीय नमक उद्योग आॅस्ट्रेलिया, कनाडा, फ्रांस और अमेरिका आदि के अधिक मशीनीकरण की तुलना में अधिक श्रमसाध्य तकनीकों का प्रयोग करता है। भारत आवश्यकता से अधिक उत्पादित औसतन 35 लाख टन नमक का निर्यात करता है। भारत से जापान, बांग्लादेश, इंडोनेशिया, दक्षिण कोरिया, उत्तरी कोरिया, मलेशिया, संयुक्त अरब अमीरात, वियतनाम और कतर आदि नमक का आयात करते हैं। कुल नमक उत्पादन का लगभग 30 प्रतिशत मानव और पशुओं द्वारा उपयोग किया जाता है और यह विभिन्न बीमारियों से लड़ने के लिए जरूरी सूक्ष्म पोषक तत्वों का वाहक है। नमक कई रासायनिक उद्योगों में मूल तत्व के रूप में भी आवश्यक है। विश्व स्तर पर कुल उत्पादित नमक का 60 प्रतिशत रासायनिक उद्योग द्वारा कच्चे माल के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। मुख्य तौर पर इसका इस्तेमाल क्लोरिन, कास्टिक सोडा और सोडा ऐश में किया जाता है, जहां इसका उपयोग विभिन्न प्रक्रियाओं जैसे आॅर्गेनिक सिंथेसिस, पोलीमर, पेट्रो केमिकल्स और पेट्रोलियम रिफाइनिंग आदि में किया जाता है। इसके साथ ही इसका उपयोग डी-आक्ंिसग, पानी के शु(िकरण और कूलेंट जैसे प्रयोगों के लिए भी किया जाता है। बात करूं नमक के कारीगरों की तो आज आप को विश्वास नहीं होगा कि उन की क्या स्थिति है। देश में सब से ज्यादा नमक गुजरात में बनता है, जी हां, वह गुजरात जिस को माॅडल आॅफ सिटी का तमगा मिला है भारत में अगर कोई विकसित प्रदेश है तो वह है गुजरात। यहां के 90 प्र0 नमक कारीगर किसी न किसी भयानक रोग से ग्रस्त होते हंै। एक रिपोर्ट के मुताबिक नमक का काम करने वाले छोटे किसान 50 से 60 साल की उम्र में भयानक बीमार से मर जाते हैं। जब कि अपंगता के मामले 35 प्र0 तक है। अधिकतर के हाथ-पांव सड़ जाते हैं, उस की वजह है यहाँ मजदूरों को सुविधा का न मिलना। सुरक्षा उपकरणों के बिना कार्य करना। वर्ष 2013 में मेरा जाना हुआ गुजरात के जामनगर, सूरत, कछ, भुज। मैंने राजस्थान, पश्चिम बंगाल, आंध्रप्रदेश की तरह यहां भी कारीगरों का वही हाल देखा। हां उड़ीसा से कुछ ठीक था। तमिलनाडु, राजस्थान का हाल न पूछिये कैसा है। यहां गुजरात में मैं अपने मित्र छजु भाई  ‘बेंजु’ के कहने पर आया था क्यों कि उस के घर के 4 सदस्य नमक का काम करते हुए चल बसे। यह काम कितना कठिन है यह जानने के लिए काफी है कि हर दूसरा नागरिक व हर बच्चा यहां कुपोषित है। यह हाल उस के घर का ही नहीं समूचे देश के हर मंडी के कारीगरों का है। बेंजु साहित्यकार है जो मैथली और गुजराती भाषा में लिखता है। बेंजु एक वाद्य यन्त्र का नाम होता है और हम सभी मित्र उसे इसी नाम से पुकारते है। क्यों बेंजु गुजराती लोकभाषा का गायक भी है।  जिस किसी ने नमक की खेती देख लिया वो शायद नमक खाना छोड़ देगा। इस लिए कहा है किसी ने जो घर न देखा वो घर अच्छा।