सनातन दर्शनशास्त्र


“दृश्यते यथार्थ तत्वमनेन” | अर्थात् जिसके द्वारा यथार्थ तत्व की अनुभूति हो वही दर्शन  है |  इस कोरोना काल में मानव को जिन भयावह परिस्थितियों से गुजरना पड रहा है उससे जीवन जीने का एक नया दृष्टिकोण उत्पन हो गया है | पूरे विश्व में जिन लोगों ने असामयिक अमूल्य जीवन खोया है उसकी क्षति तो कभी पूरी नहीं हो सकती है | इस महामारी के कारण प्रभावित होने वाली वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं को यथास्थिति में आने में संभवत कुछ वक्त जरूर लग सकता है | परन्तु, इन असाधारण परिस्थितियों के दौरान ‘रामायण और महाभारत’ जैसे  महाकाव्यों के ‘दर्शन’ ने हम भारतवासियों की मंद पड़ी धार्मिक चेतना एवं नैतिक मूल्यों को जागृत करने का शुभारम्भ अवश्य कर दिया है |  मनुष्य के जीवन में जटिल समस्याएं बाहर से कम और स्वयं के अन्दर से अधिक पैदा होती हैं | जो समस्याएं बाहर से आती हैं उनकी उत्पत्ति का मार्ग भी कहीं न कही हमारे अन्दर से ही निकलता है | जीवन और प्रकृति की इन जटिल समस्याओं के निवारण करने में दोनों ‘दर्शनशास्त्र’ रामायण और महाभारत पूर्णतया सक्षम हैं | इन महाकाव्यों में सिद्ध हुए जीवन के सनातन सिधान्तों को भिन्न भिन्न पात्रों के  जीवन चरित्र के माध्यम से जनमानस को शिक्षित किया गया है, अर्थात् जनमानस ये समझ सकता है कि अहंकार और दुराचरण उसे कभी सद्मार्ग पर नहीं ले जा सकते | जबकि धर्म, सत्य, सदाचार और आत्मसंयम का अनुचरण करने से एक साधारण प्राणी को भी सम्मानित मूल्यवान जीवन एवं सद्गति प्राप्त हो सकती है | 


जहां रामायण के मुख्य पात्र धर्म, न्याय और उच्य नैतिक मूल्यों के सिधान्तों पर चलकर रामराज्य कायम करने में सफल हो जाते हैं तो वहीँ महाभारत के मुख्य पात्र अपने द्वारा खीची हुई लक्ष्मण रेखा से बाहर आने में विफल रहते हैं जिसके फलस्वरूप महाभारत का महाविध्वंसक युद्ध कौरवों को वंश विहीन कर देता है  | रामायण ‘धर्म’ प्रधान है यानि ‘कर्तव्य’ सर्वश्रेष्ठ है | श्रीराम धर्म-सम्मत आचरण करते हुए महाबलशाली राक्षसों का नाश करके समस्त भूखंड में शांति और सुखसमृद्धि की स्थापना करते हैं | महाभारत ‘कर्म’ प्रधान है अर्थात हर एक किरदार अपने किये कर्मों का फल भोगने को विविश हो जाता है | भीष्म अपनी प्रतिज्ञा पालन को ही अपना धर्म मानते हैं तो गुरु द्रोणाचार्य राज परिवार से मिलने वाली सुख सुविधाओं से उऋण नहीं हो पाते हैं तथा कर्ण जैसा महारथी हींन भावना से उभरने के लिए दुष्ट दुर्योधन की मित्रता का ऋणी होकर रह जाता है | रामभक्त विभीषण का स्थान भीष्म, द्रोणाचार्य, कर्ण और अश्वत्थामा जैसे महावीरों से कई अधिक ऊँचा और सम्मानित लगता है क्योंकि विभीषण जी परिस्थितियों को समय से पहले समझने और उनके निदान हेतु समय पर निर्णय लेने में समर्थ हैं | जबकि महाभारत के भीष्म, द्रोंण जैसे महान योद्धा अपने ही सभागार में महारानी द्रोपदी का चीर हरण मूक बनकर देखते रह जाते हैं | व्यक्ति की महानता का आंकलन उसकी सोच, उसकी दूरदर्शिता और समय के अनुकूल निर्णय लेने की क्षमता से किया जाता है | ये वीर पुरुष अपने दिव्य शस्त्रों ने भी वह काम नहीं कर सके जिसे विभीषण ने बिना शस्त्र उठाये ही पूर्ण किया | लंका को अहंकारी रावण की अन्यायपूर्ण राजनीति से मुक्त करना विभीषण का धर्म था और उन्होंने वही किया | अत: महापुरुषों का धर्म भला जग कल्याण से बढ़कर और क्या हो सकता है ? जब अशोक वाटिका में रावण महादेव से प्राप्त चंद्रहास तलवार दिखाकर सीताजी को डराता है तब देवी सीता चंद्रहास खड़ग से निवेदन करती हैं कि उनका सर काटकर भोलेनाथ की गोद में डाल देना, आखिर भगवान शिव को भी तो पता चले की अयोग्य याचक को क्या इसलिए शक्तियां दी जानी चाहिए क्योंकि आप उस पर प्रसन्न हैं? कुपात्र को दिया दान हमेशा ही विनाश का कारण बनता है |


 अकसर हम ये भूल जाते हैं कि दोनों ही महाकाव्यों का आधारभूत स्वरुप निति और राजनीति है जिसका एक मात्र लक्ष्य धर्म और राष्ट्र कल्याण है | अनैतिक, अधर्मियों की सत्ता भोगवाद को जीवन का लक्ष्य समझती हैं इसीलिए प्रभु श्रीराम और भगवान श्रीकृष्ण को धर्मपरायण जनमानस की रक्षा हेतु अत्याचारियों की सत्ता का नाश करना पड़ता है | आज प्रजातन्त्र के दौर में प्रजा ही नर है और नारायण भी | ‘धर्म’ भारतीय ‘दर्शन’ की आत्मा है इसलिए राष्ट्रकल्याण के लिए सत् एवं असत् का तत्वज्ञान अनिवार्य माना गया है | रामायण और महाभारत युग की नारी शक्ति की विरासत को हमारी नयी पीढ़ी को जानने की जरूरत है | देश की व्यवस्थाओं में व्याप्त व्यक्तिगत वफ़ादारी के लिए देशधर्म के खिलाफ षडयंत्र रचने वाली मंथाराओं और शकुनियों से प्रजा को सदैव सजग रहने की जरूरत है | मानव धर्म-संस्कृति की इस महान धरोहर को सजीव रूप में जनमानस के सम्मुख रखने के लिए रामानंदसागर जी और बी.आर चोपड़ा जी को शत शत नमन | जय श्रीराम || जय श्रीकृष्ण ||