प्रेम (वक्रतुण्डोपनिषद )


प्रेम, देह की धर्मयात्रा है ,


भ्रमित-भाव का भ्रमण है...


ऐन्द्रिक सुख है, मन सुविधा है ,


कामसिक्त आकर्षण है...


नैन-तटों पर भारी फिसलन,


संबल मर्यादाओं के


स्मित डसते मर्मस्थल को,


विश्राम-स्थल बाँहों के....


मूक पुष्प-पशु कैसे पढ़ते,


प्रेम पत्र वाग्देवी का


पूज्य गजानन हस्त लिखित, वह /


विषद व्याकरण वाणी का