भारत विरोधी लाल शोर


चीन के पास समय है। हालात भी मददगार हैं। वह अपने षड्यंत्रों में लगा है। हड्डी और कलम ??? कल तक शायद ऐसा न होता हो। आज क्रिप्टो वामपंथी, नेहरूवादी, लाल या दलाल पत्रकार जुटे हैं विदेशी मीडिया में काला पोतने। 'मोदी हिटलर है', 'हकूमत भारतीय मुसलमानों की कातिल है', 'लॉक डाउन में अव्यवस्था', 'कश्मीर में अत्याचार' ....।
वर्तमान दौर में, वाशिंगटन पोस्ट, न्यूयॉर्क टाइम्स जैसे अमेरिकी प्रकाशन या बीबीसी जैसे पश्चिमी देशों के प्रसारण संस्थान भारत के मीडिया को सत्ता की कठपुतली और लोकतान्त्रिक सरकार द्वारा कोरोना संकट में गरीबों के पलायन में अव्यवस्था, स्वास्थ्य सेवाओं में कमियों गड़बड़ियों, कभी सत्तारूढ़ हिन्दू पार्टी द्वारा मुस्लिमों के साथ ज्यादतियों, जम्मू कश्मीर में 370 हटाने और कुछ नेताओं के नजरबन्द रखने की खबरों और टिप्पणियों को अधिकाधिक उछाल रहे हैं। सबसे मजेदार बात यह है कि यह सामग्री भी वह यहीं सरकार से असंतुष्ट अथवा नक्सल और अतिवादी संगठनों से संपर्क सहानुभूति रखने वाले कुछ कथित पत्रकारों-अभियानकर्ताओं से जुटाते हैं। फिर वही लोग उन विदेशी मीडिया को उद्धृत करके भारत में उछालते हैं। लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सर्वाधिक दुरुपयोग स्वार्थी एवं विदेशी तत्व ही उठाते हैं। भारत में यही लोग कभी यह नहीं देखते कि कोरोना में ब्रिटिश, इटली और अमेरकी सरकार के निकम्मेपन और स्वास्थ्य सेवाओं की बुरी हालत पर बीबीसी टेलिविजन की वर्ल्ड सर्विस या अमेरिकी मीडिया में कितनी खबरें और प्रतिपक्ष के नेताओं-समाज के ठेकेदारों की कितनी टिप्पणियां आ रही हैं। ये पत्रकार दिल्ली के चीनी दूतावास के कितने सम्पर्क में है ... यह गम्भीर प्रश्न है। चीनी कम्पनियों के भारी भरकम बजट, जेएनयू के हिंसक व पृथकतावादी प्रदर्शन का चीनी मॉड ऑफ पेमेंट ....और इन सबसे जुड़ा पत्रकारों का एक विशिष्ट चीन प्रेमी जमावड़ा। पंजीकृत, सूचीबद्ध, प्रतिबद्ध 'लाल शोर' करते पत्रकार अब विदेशी सरजमीं पर भारत को बदनाम करने उतरे है। ... सेक्सोफोन संग लाल गीत गाए जा रहे हैं।
प्रतिपक्ष अतिवादी संगठनों के लोग ही नहीं मीडिया का एक वर्ग भी भारतीय मीडिया को सत्ता से आतंकित या भक्त होने का आरोप लगाते हैं। इसके लिए भी ‘महान’ न्यूयॉर्क टाइम्स का हवाला ऐसे दिया जाता है मानो वही देव वाणी है। 'वाशिंगटन पोस्ट' लगातार ऐसे पत्रकारिता करते हैं, मानो कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो लिख रहे हों। चीन या पाकिस्तान में भारत विरोधी प्रचार को भी महत्व देने में संकोच नहीं किया जाता। कश्मीर को आजाद करने या नक्सलियों को सही ठहराने वाली लेखिका या पत्रकार को गद्दार न सही ..... गलत कहने में भी मीडिया के एक प्रबुद्ध वर्ग को कष्ट होता है।
अहम प्रश्न यह है कि क्या दिल्ली का अंग्रेजी मीडिया ही असली भारत की छवि दे सकता है। क्या दैनिक जागरण, दैनिक अमर उजाला, इंडियन एक्सप्रेस, लोकमत, मलयाला मनोरमा, सन्देश, इनाडु, कन्नड़ प्रभा, पंजाब केसरी, भास्कर, असम का पूर्वोदय, आनंद बाजार पत्रिका जैसे अखबार क्या ज़िम्मेदार पत्रकारिता नहीं करते ? या भारतीय भाषाओँ के टीवी चैनल गंभीरता से जन समस्याओं को उठाकर केंद्र और राज्य सरकारों पर तीखी टिप्पणियां नहीं देते ? यदि कोई गहराई से तथ्यों का अध्ययन करे, तो यह साबित होगा कि उन्होंने अधिक धारदार, खोजपूर्ण एवं निर्भीक पत्रकारिता की है। जबकि पश्चिम मीडिया को लाल फंड वाला लाल सलाम।
अरुंधति से बरखा दत्त तक चीनी गैंग के पत्रकार सक्रिय हैं। 'फिफ्थ कॉलम' का टैग लेकर भारत तोड़ने की कोशिश में लगे चीनी गैंग सूचीबद्ध पत्रकार, जिहादियों को कवर फायर देते बेशर्म कलम-नवीस खतरनाक स्थितियों की निर्माण कर रहे हैं।
चीन का षड्यंत्र चल रहा है।..