सन सत्तावन में जन्मी चवन्नी दिवंगत हो गई है। चवन्नी चार ‘आने’ के बराबर थी। एक आना छः पैसे के बराबर हुआ करता था, और रूपया सोलह आने का...उस हिसाब से चवन्नी में चैबीस पैसे होने थे, लम्बी गणित है...बहरकैफ़...चवन्नी को विशिष्ट पद दिया गया था। पुराने ‘आने’ की स्मृति और नये सौ पैसे वाली संस्कृति का संगम थी-चवन्नी परन्तु दस, पांच, बीस पैसे के नये सिक्कों के चलन से चवन्नी को सत्ताच्युत कर दिया गया..बिना सत्ता के कैसा जीवन! अब हर कोई अमर सिंह तो हो नहीं सकता...तो...घोटालों के इस खरब सागर में बेचारी चवन्नी वैसे तो बहुत पहले मर चुकी थी, भिखारी भी लेने से मना करते थे...यह धन्धे का युग है, आपका अतीत कितना भी वैभवशाली रहा हो, यदि आप उपयोगी नहीं हैं, तो दिवंगत ही समझें...बचपन में ताऊजी मेले-त्योहारों पर चवन्नी जेब-खर्च देते थे, पजामें की जेब में मुट्ठी में कसकर भींची गई कीमती चवन्नी, चिड़िया की देह की तरह गरमागरम रहती...दो नारंगी या पाव भर चने या पाव जलेबी या एक बांसुरी, एक चश्मा, एक बाजा...चवन्नी की एक हैसियत थी। इसी चवन्नी पर कभी फिल्मी गणिकाओं के पैर थिरकते थे, क्लर्कों के पेन भागते थे, चपरासियों-चैकीदारों की कमर झुकती थी...तो अब..जिस चवन्नी से कुछ या कोई खरीदा भी नहीं हो सकता था, उसके जीवित रहने से क्या लाभ? बचपन में कभी जेब के छेद से चवन्नी का निकल जाना कितना दुःख देता था...आज देश की निष्ठा में छेद करके भाई लोग अरबों निकाल ले जा रहे हैं...किसी को दुःख नहीं होता, मीडिया उन्हें धन-बहादुरों की तरह प्रस्तुत करता है। तिहाड़ को डीलक्स होटल बना दिया गया है...कुछ दिनों बाद हमें इनकी विजय-यात्रा निकालनी पड़ेगी शायद। अच्छा हुआ चवन्नी तू निकल गई, कुछ दिन मन मौन सिंह के राज में और रहती तो परलोक में मुंह दिखाना मुश्किल हो जाता, जिस सोनिया राज में अरबों डकारने वाले, अन्ना-रामदेव पर लाठियां भांजते हों, तुझे कौन पूछता चवन्नी? जिस चवन्नी में एक माचिस की डिबिया तक न आ सकती हो तो ऐसे ठन्डे समय में तुझ ठन्डी चवन्नी का जाना ही अच्छा...जिस चवन्नी से कोई भ्रष्टाचार तक नहीें हो सकता, उसका आज के संसार में क्या जीवित रहना...धिक्क सिंह से भी पूछना चाहिये कि चवन्नी की इस रहस्यमय मृत्यु में कहीं हिन्दु संगठनों का हाथ तो नहीं? किसी और प्रज्ञा ठाकुर को तलाश लो...चवन्नी जाते-जाते क्या पता कांग्रेसियों को मुसलमानों के वोट दिलवा दे...वो क्या गाना था...चवन्नी उछाल के...
चली गयी चवन्नी