झोले वाला कामरेडी

 

फेफड़ों की फुँकनी बना डाली हो, दिन में बेतहाशा सिगरेट फूंकता रहा हो .... ऐसा स्थायी किरदार कामरेडियों के यहाँ आसानी से झोला लटकाए मिल जाता है। ये है कामरेडी एक्टिविस्ट। अपने को महान दार्शनिक सा दिखने वाला ये चांडाल विश्व मे बड़े इंकलाबी परिवर्तन की बात करता है। जहाँ कम्युनिस्ट, वहाँ सिगरेट-झोला।

 

बात चीन की है। हाल ही में, मुस्लिम उलेमाओं के सामने सिगरेट नहीं पीने के कारण चीन के एक अधिकारी को डिमोट कर दिया गया। घटना शिनजियांग प्रांत की है। चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स में छपी खबर के मुताबिक अधिकारी का डिमोशन करते हुए कहा गया कि उसका यह कदम राजनैतिक रूप से अस्थिरता पैदा करता है। 

 

अधिकारी पर आरोप है कि उसका यह कदम धर्मनिरपेक्षता के मुताबिक नहीं था और उसने सिगरेट ना पीकर मुस्लिम समुदाय की कट्टरपंथी विचारधारा को सांकेतिक समर्थन दिया। होतान जिला की स्थानीय सरकार ने सत्तारूढ़ कम्यूनिस्ट पार्टी के ग्राम स्तरीय सचिव जलिल मतनियाज को एक नोटिस भेजकर उनके खिलाफ की गई कार्रवाई की जानकारी दी। जिला प्रशासन का आरोप है कि मुस्लिम उलेमाओं की मौजूदगी में सिगरेट नहीं पीना दिखाता है कि जलिल डर गए थे। एक स्थानीय अधिकारी ने ग्लोबल टाइम्स को बताया कि जलिल द्वारा सिगरेट नहीं पीने का फैसला शिनजियांग के मुसलमानों की सोच के मुताबिक है। 

 

जलिल को धर्मनिरपेक्षता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाने और कम्यूनिस्ट पार्टी के निष्ठावान कार्यकर्ता होने की हैसियत से मुस्लिम उलेमाओं की मान्यताओं के खिलाफ उनके सामने सिगरेट पीनी चाहिए थी। अधिकारी के मुताबिक जलिल द्वारा ऐसा नहीं किए जाने पर प्रशासन ने माना कि धार्मिक कट्टरपंथ से लडऩे की जगह वह ऐसे कट्टरपंथी विचार के सामने झुक गए। जलिल से पार्टी सचिव की जिम्मेदारी वापस ले ली गई और उन्हें वरिष्ठ स्टाफ मेंबर पद से डिमोट कर स्टाफ मेंबर बना दिया गया। साथ ही उन्हें भविष्य में इस तरह की हरकत दोबारा कभी न करने को लेकर सख्त चेतावनी दी गई है। 

 

शिनजियांग प्रांत में अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय उइगर बड़ी संख्या में रहते हैं। पिछले लंबे समय से यहां हिंसा और सांप्रदायिक तनाव की घटनाएं हो रही है। आरोप है कि चीन की दमनकारी नीतियों के कारण पिछले कुछ सालों में यहां काफी उइगर मुस्लिम मारे गए हैं। इस्लामिक कट्टरपंथ को दबाने के नाम पर चीन ने यहां लोगों के दाढ़ी बढ़ाने,बुर्का पहनने और रमजान के दौरान रोजा रखने पर भी पाबंदी लगा दी है। 

कम्युनिस्ट सिगरेट, शराब, शारिरिक संबन्ध, फ़िल्म, नाटक, टीवी को हथियार के रूप इस्तेमाल करते रहे हैं।

पँजाब में कामरेड हरचरण सिँह सुरजीत और उसके साथियों ने स्थायी रणनीति के तौर पर सिगरेट और शराब को सामाजिक परिवर्तन के हथियार के रूप में  महत्व देना शुरू किया। 

पंजाबी के वामपंथी कवि पाश की रचना है-'आज का दिन'। कविता कुछ यूँ है-

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ਅੱਜ ਦਾ ਦਿਨ ਕਿਸੇ ਜ਼ਾਲਮ ਵਜ਼ੀਰ ਦਾ

ਅਣਚਾਹਿਆ ਦਫਤਰੀ ਮਾਤਮ ਹੈ

ਜਾਂ ਕਿਸੇ ਬੋ ਮਾਰਦੇ ਬੋਝੇ ਅੰਦਰ

ਬੁਝਾ ਕੇ ਰੱਖਿਆ ਬੀੜੀ ਦਾ ਟੋਟਾ ਹੈ

ਜਾਂ ਸ਼ਾਇਦ

ਸੱਤਵੀਂ ਚੋਂ ਫੇਹਲ ਹੋਈ ਜਵਾਕੜੀ ਦੀ

ਚੁੰਨੀ ਵਿਚ ਸੁੱਕਿਆ ਅੱਖਾਂ ਦਾ ਨੀਰ ਹੈ

ਅੱਜ ਦਾ ਦਿਨ ਧਾਰਮਕ ਮਾਨਤਾ ਦਾ ਦਿਨ ਨਹੀਂ ਹੈ।

इसका हिंदी में काव्य-रुपांतरण इस प्रकार है-

'आज का दिन किसी जालिम वज़ीर का

अनचाहा दफ्तरी मातम है

या किसी दुर्गंधित करते थैले अंदर

बुझाकर रखा बीड़ी का टोटा है

जा शायद

सातवीं में फेल हुई बालिका की

चुनरी में सूखी आँखों के आँसू हैं

आज का दिन धार्मिक मान्यता का नहीं है।'

व्यक्ति जिस परिवेश में रहता है, उसी से सम्बंधित मुहावरे, प्रतीक, चिन्ह, छाया-शब्दों का अपनी लेखनी में प्रयोग करता है। कामरेडी कवि पाश यानी अवतार सिँह संधू को भी अपने पूर्वजों का अनुशासित जीवन कम्युनिज़्म प्रसार में बाधा पैदा करता नजर आता है। शराब, बीड़ी, सिगरेट वाला पँजाब उसका लक्ष्य जो ठहरा। तो यहाँ शब्द परिवेश से नहीं आए। पाश की शब्दावली 'बीड़ी का टोटा' वामपंथी पौध के रूप में हुआ है। बीड़ी के टोटे सरीखे पँजाब को बनाने में वे काफी हद तक सफल हुए हैं।

1978-79 में श्री हरिमन्दिर साहिब जी (स्वर्ण मंदिर) के पावन सरोवर में बीड़ी-सिगरेट डालने की घटनाएँ खूब हुआ करती थी। ऐसी घटनाओं से अक्सर साम्प्रदायिक द्वंद्व की स्थितियाँ बनती थी। प्रथम दृष्टया लगता था कि यह सनातनी हिन्दू ही करते होंगे। आजकल ढूंढ रहा हूँ कि शायद कोई बीड़ी-सिगरेट वाली हिंदुओं, मुसलमानों, यहूदियों, जैनियों, बौद्धों की कोई कविता मिल जाए।

फिल्मी संसार पर वामपंथियों की हमेशा नज़र थी। वामपंथी विचार के  निर्देशकों ने सिगरेट के धुएं का ग्लेमर वाला पक्ष पर्दे पर युवाओं को गुमराह करने के लिए उकेरा था। सिगरेट कम्पनियों के ज्यादातर विज्ञापन वामपंथियों द्वारा निर्देशित थे।

वो गाना है न.....

' हर फिक्र को धुँए

में उठता

चला गया ... '

यह गीत फ़िल्म 'हम दोनों' का है। इसके गीतकार वामपंथी विचारधारा वाले साहिर लुधियानवी थे। लुधियानवी यानी लुधियाना वाले। यानी पँजाब के। लगभग पचपन वर्ष पुराने गीत से स्पष्ट है कि पँजाब को बीड़ी, सिगरेट, शराब में धकेलने की नीयत थी वामपंथियों की। .... अब तो ड्रग।

न चाहते हुए भी सार्वजनिक स्थानों में दूसरे की बीड़ी, सिगरेट .... बाद में शराब ... बर्दाश्त करने में हम जैसों की एक मुद्दत गुज़र गई।

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय को कृत्रिम रूप से वामपंथियों का गढ़ बनाया गया था। हर छात्र को सिगरेट, शराब में धकेलने में वामपंथी लगे हैं। क्योंकि ऐसा यूएसएसआर के पूर्व राष्ट्रपति ब्रेजनेव ने चाहा था। जेएनयू में हर रोज़ 1650 पैकेट सिगरेट, 650 बोतल शराब, 400 कॉन्डम की खपत है। यह सभी वामपंथी छात्र नेताओं एक्टिविस्टों की बदौलत हो रहा है। यदाकदा अर्ध-नक्सली केजरीवाल भी पनवाड़ी के पास पाए जाते है। कोई आश्चर्य नहीं।

एक वामपंथी चैनल के एंकर ने कभी दक्षिणपंथियों पर तंज कसते कहा था कि इनके पास वैज्ञानिक दृष्टि नहीं है। ये एंकर महोदय ही बताएं कि वैज्ञानिक रूप से सिगरेट-बीड़ी पीना कहाँ तक सही है? शराब या अल्कोहल पचाने के लिए मानव शरीर में कौन सा एंजाइम होता है, ये भी एंकर महोदय बताएं। अगर कोई एंजाइम नहीं होता, तो इसको तिलिस्मी अंदाज़ में हर प्रकार के मीडिया में क्यों परोसा जाता है ? असल में एंकर साहब  वामपंथियों के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए ऐसा करते हैं। 

यूपी के दिनों में,  गोबिंद सिँह नेगी कम्युनिस्ट पार्टी के चकराता क्षेत्र से विधायक थे। सीधे सादे क्षेत्रवासियों को शराब, सिगरेट, सुल्फा को धकेलने वाले कम्युनिस्ट ही थे। 'सूर्य अस्त, कम्युनिस्ट मस्त'।

नेपाल की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल के 46 सांसद गांजे की खेती को देश में वैध कराने का प्रस्ताव लेकर आए हैं. https://www.dw.com/hi/nepal-lawmakers-seek-to-legalize-growing-and-using-marijuana/a-52326586

सेंट्रल अमरीका के देशों में कम्युनिस्ट मर्जुआना, कोकीन, अफीम, ब्राउन शूगर, हीरोइन की खरीद फरोख्त को शस्त्र की खरीदारी से जोड़ा, सशस्त्र विद्रोह से जोड़ा। कम्युनिस्ट देश क्यूबा में फ़ीडल कास्त्रो के दौर से ही क्यूबन सिगार को बेचा गया। कम्युनिज़्म का रास्ता धुँए वाला है। ये तय है।

यूपी के शहर मिर्जापुर में कभी बीड़ी में प्रयोग लाए जाने वाला तेंदू पत्ता और वामपंथी हिंसा में गहरा सम्बन्ध था। काफी नक्सली इसी तेंदू पत्ता की तिजारत से उपजे हैं।

कैनाबिस एक खतरनाक नशा होता है।  वामपंथ पूरी दुनिया में प्रचार कर रही है कि कैनाबिस को लीगल होना चाहिए। इसके पीछे उनका तर्क है कि जब सिगरेट और शराब लीगल है, तो कैनाबिस को भी लीगल होना चाहिए। इसके पीछे उनकी यही नियत है कि समाज में ज्यादा से ज्यादा लोग नशे की लत में आ जाए। जिससे ज्यादा नशेड़ी होंगे। उतने से ज्यादा बेरोजगार,लाचार होंगे और उतने ज्यादा लोगों के वामपंथियों के चुंगल में फंसेंगे। 

वैसे ही वामपंथी कहते है कि कैनाबिस को कानूनी स्वीकृति देने के बहुत अच्छे इफेक्ट होंगे ।जैसे कि आप इस पर टैक्स ले सकेंगे और आप इसे लीगली नियंत्रित कर सकते हैं। आप इसकी क्वालिटी कंट्रोल कर सकते हैं।

यही नशा वामपंथियों का प्रिय प्रयोग है।

जिस प्रकार फ्लू का वायरस म्यूटेशन से अपना रूप बदलता रहता है। उसी प्रकार वामपंथ भी नित नए रूप बदलता रहता है। फ्लू और वामपंथ में भी बहुत सी समानताएं है।

दुनिया को रूसी क्रांति और माओवाद जैसी घटनाएं याद हैं, जिसमें करोड़ों लोग मारे गए। वामपंथ के खूनी इतिहास में वे सर्दी जुकाम जैसे गिने जाते। ऐसा केवल नशे के साये में ही हो सकता है। नशे की टोली सक्रिय है। माओ ने 79 मिलियन का नरसंहार किया। नशेड़ी समर्थक चुप.... स्टॅलिन ने 38 मिलियन, लेनिन ने 29 मिलियन लोग मार डाले। नशे में किसे फुर्सत।

वामपंथ वैचारिक फ्लू है। पर इसका सीजन सदाबहार होता है ।किसी को इसका आर्थिक पक्ष आकर्षित करता है,किसी को सामाजिक पक्ष, तो किसी को बौद्धिक पक्ष, किसी को परोसा गया नशा।

वामपंथी विचार हमारे आसपास बड़ी ही मासूम शक्लों में घूमता रहता है और हम अनजाने ही उनसे संक्रमित होकर छीकने लगते हैं। पिछले कुछ दशकों में फ़्लू के कई नए स्ट्रेन पनप रहे हैं । फिर आमजन अल्कोहल वाला सिरप ढूंढते हैं। जिसका इलाज से कोई सम्बन्ध नहीं। वामपंथ यही उपलब्ध कराता है।

नशे की उत्तेजना को शांति करता है वामपंथ का नारीवाद। नारीवाद ऐसा ही एक खतरनाक स्ट्रेन है जो आता तो स्त्री के अधिकारों की मासूम सी शक्ल में है। लेकिन लाखों परिवारों को तबाह करके चला जाता है ।क्योंकि इसकी शक्ल इतनी मासूम है कि हम इसे सर्दी जुकाम से ज्यादा कुछ नहीं समझते।

बच्चों और किशोरों में इसने यौन शिक्षा के रूप में हमला किया और समाज की नैतिकता और मर्यादा को बर्बाद कर दिया ।नशेड़ी रीति को स्थापित किया गया है। उनके संस्कार को, सभ्यता को, आत्मसम्मान को भी यह नष्ट कर गया।

 

वामपंथ एक थाट-वायरस है।कंप्यूटर के संदर्भ में सोचे तो यह एक वायरस है। जो लोगों की पुरी फॉर्मेटिंग बिगाड़ देता है। यह सब उसकी प्रोग्रामिंग के वायरस ही तो है….फॉर्मेटिंग बिगड़ गई है ।यही वामपंथ म्यूटेट वायरस है।

यह वामपंथ का नशा है।