....... चित्र (सीमेंट )-अरुण ढौंडियाल। ....
गीत ग़ज़ल,कविता के सारे
मुखड़े,मकते,बन्द लिखूँ,
तू जिसमें बँध पायेगी
ऐसा कुछ निर्द्वंद्व लिखूँ।
गीत के सातों सुर लिख दूँ
या ईश्वर का गुणगान लिखूँ,
कवि कलम साधना लिख दूँ
या व्यथित हृदय का द्वंद्व लिखूँ।
घर की नींव का पत्थर लिख दूँ
या सुंदर महल,मीनार लिखूँ,
कस्तूरी मृग की लिख दूँ
या माटी की सुगन्ध लिखूँ।
भँवरे की गुनगुन लिख दूँ
या चंचल तितली रंगीन लिखूँ,
कली,फूल,डाली लिख दूँ
या मधुर मधु,मकरन्द लिखूँ।
निर्झर झरता झरना लिख दूँ
या शान्त सरोवर,ताल लिखूँ,
उठती गिरती लहरें लिख दूँ
या अल्हड़ नदी स्वछन्द लिखूँ।
पर्वत सी अडिग लिख दूँ
या मेघों सी गतिमान लिखूँ,
जीवन मृगतृष्णा लिख दूँ
या क्षुधा मिटाता कन्द लिखूँ।
प्रखर प्रवर सूरज लिख दूँ
या शीतल निर्मल चाँद लिखूँ,
धैर्य धरित धरिणी लिख दूँ
या मलय समीर सी मन्द लिखूँ।
अरुणोदय की उषा लिख दूँ
या सुवर्ण सुनहरी शाम लिखूँ,
तारों भरा गगन लिख दूँ
या कारी रात सी बन्द लिखूँ।
आकुल व्याकुल ग्रीष्म लिख दूँ
या ठिठुर ठिठुरता शीत लिखूँ,
रिमझिम सा पावस लिख दूँ
या ऋतुराज आनन्द लिखूँ।
'माँ' है तू और 'धुरी' है घर की
कैसे तुझको व्यक्त करूँ,
गागर में सागर है समाया
यही पंक्तियाँ चन्द लिखूँ।
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