शेख निम्र से सऊदी शासक वर्ग  क्यों घबराता था ?
 


 कोई भी स्वतंत्रता प्रेमी, मानवाधिकार की बात करने वाला सऊदी अरब में होता तो वह भी 56 वर्षीय शिया धर्मगुरू शेख निम्र अल निम्र की तरह मौत की सजा प्राप्त करता।..... उनका गुनाह क्या था? शिया सऊदी अरब में अल्पसंख्यक हैं। उन पर सऊदी की वहाबी हकूमत अत्याचार कर रही थी। शियाओं पर हो रहे जुल्मों के खिलाफ के शेख निम्र ने आवाज उठाई, वह भी अहिंसक तरीके से। सऊदी शासकों से उसे मिली ... फाँसी।

पूरे अरब प्रायद्वीप में गुस्से की लहर थी। वहाबी जमात के पाँव उखड़ने से लगे थे। शेख निम्र अल-निम्र को फाँसी दिए जाने के बाद सऊदी अरब के खिलाफ 15% शिया समुदाय का गुस्सा भड़क उठा। ईरान की राजधानी तेहरान में उग्र भीड़ ने सऊदी अरब के दूतावास में दूतावास और वाणिज्यिक दूतावास में आगजनी की, जिससे नाराज सऊदी अरब के ईरान से राजनयिक संबंध तोड़ लिए। सऊदी अरब ने ईरान के साथ हवाई संपर्क भी समाप्त कर दिया।

वहाबी सऊदी अरब के फैसले का समर्थन करते हुए उसके पुराने साथियों बहरीन और सूडान ने भी ईरान के साथ राजनयिक रिश्ते खत्म कर दिया और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) ने भी ईरान से अपने राजनयिकों को वापस बुलाया लिया था। यद्यपि सऊदी अरब और उसके समर्थक देशों के कड़े रुख के बाद भी शेख अल ‌निम्र के समर्थन में उठ रही आवाजें ‌थमीं नहीं है। यह निम्र का तिलिस्म था।

यह हुसैनवादी विचारधारा है। जिस पर शेख निम्र ने सतत पहरा दिया। जिससे वहाबियों की चुहलें हिल गई। निम्र बाकिर अल‌‌ निम्र या शेख निम्र अल निम्र अरब के उसी क्रांतिकारी  'बसंती झोंके' की देन ‌थे, जिसे दुनिया भर में 'अरब स्प्रिंग' के नाम से जाना जाता है। हाशिये पर रह गए अरब तबकों ने कुछ करने की ठानी थी। 2010 की सर्दियों में अरब लीग और उत्तरी अफ्रीका के देशों में चला इंकलाब मंज़र विश्व ने देखा। उग्र जन-प्रदर्शनों की लहर ने मिस्‍त्र, लिबिया, यमन और ट्यूनिशिया में तख्तापलट कर दिया। वहाबी सुन्नी हैरान थे। कट्टरवाद हारने लगा था।

सऊदी और उसके साथियों ने हिंसक दमन का रास्ता चुना। हज़ारों-हज़ार मार डाले गए।  

2012 के मध्य तक वहाबी विरोधी लहर कमजोर पड़ी ‌थी । सी‌रिया गृहयुद्घ की लपटों में घिर गया। बहरीन, अल्जीरिया, जार्डन, सऊदी अरब और ओमान में सत्ता के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुए थे। सऊदी अरब में प्रत्यक्ष विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व शेख निम्र अल निम्र ने ही किया था।

शिया नेता शेख अल निम्र युवा तबके में लोकप्रिय ‌थे, जबकि सऊदी अरब के शासकों के कड़े आलोचक ‌‌थे। वे सच्चे डेमोक्रेट थे। उन्होंने सऊदी अरब में स्वतंत्र चुनाव की वकालत ‌की। सऊदी सरकार ने उन्हें 2006 में गिरफ्तार कर लिया। निम्र ने उस समय कहा था कि सऊदी अरब की गुप्त पुलिस 'मबाहिथ' ने उन्हें थर्ड डिग्री की यातनाएं दी थी।

2009 में सऊदी सरकार की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा था‌ कि अगर ‌शियाओं व अन्य पिछड़े तबकों  के अधिकारों का सम्मान नहीं किया जाता, तो पूर्वी प्रांत का सऊदी अरब से अलग हो जाना चाहिए। जिसके बाद उन्हें और उनके 35 सहयोगियों को गिरफ्तार कर लिया गया।

2011-12 में 'अरब स्प्रिंग' के दौरान सऊदी शासकों के खिलाफ उन्होंने विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व किया। वे अहिंसक आंदोलन के समर्थक ‌थे। उस समय उन्होंने कहा था कि सऊदी पुलिस की गोलियां के शोर का जवाब 'नारों की गूंज' से दो। उन्होंने घोषणा की थी कि अगर विरोध प्रदर्शन जारी रहे तो सऊदी सरकार धराशायी हो जाएगी। हालांकि 8 जुलाई, 2012 को पु‌लिस ने शेख अल निम्र को गोली मारकर घायल किया और फिर उन्हें गिरफ्तार कर लिया।

जेल में प्रताड़ना दिए जाने के विरोध में अल निम्र ने भूख हड़ताल कर दी थी, जिसपर अशरक सेंटर फॉर ह्यूमन राइट्स ने भी चिंता जताई थी। 15 अक्‍टूबर, 2014 को सऊदी अरब की विशेष आपरा‌धिक अदालत ने अल निम्र को फांसी की सजा सुना दी। उन पर आरोप लगा था कि उन्होंने सऊदी अरब में विदेशी हस्तक्षेप का प्रयास किया, शासकों की अवज्ञा की और सुरक्षा बलों के खिलाफ हथियार उठाया।

शेख निम्र अल निम्र के भाई मोहम्मद अल निम्र ने ट्वीट कर सजा की जानकारी दी थी, जिसके बाद उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया। शेख अल निम्र को 2 जनवरी 2016 को फांसी दी गई। 

...... भारत में मौलाना साद और जमातियों ने पटाखे चलाए, आतिशबाजियाँ की।