स्व,बृंदाबन ध्यानी --एक विलक्षण धरोहर

 

मित्रों वैसे तो देवप्रयाग गढ़वाल का एक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक केंद्र रहा है परन्तु यह भी सत्य है कि मनीऑर्डर इकोनॉमी के अलावा गढ़वाल के अर्थ तँत्र में इस नगर का प्रारम्भ से आज तक महत्व पूर्ण योगदान  अविस्मरणीय है ।इस नगर के तीर्थ पुरोहितों की देश भर में फैली लंबी चौड़ी यजमानी के काऱण जहाँ इन लोगों के देश के कोने कोने तक संपर्क हैँऔर उसी कारण यहां के लोग संपन्न रहे है।और ये लोग सांस्कृति के आदान प्रदानके वाहक भी रहे हैं।यजमानी के कारण यहां शुरू में संस्कृत शिक्षा पर जोर रहा और यही बजह हैकि इस नगर ने एक से एक उद्भट विद्वान वेद ,वेदांत, ज्योतिष ,आयुर्वेद दर्शन ,साहित्य,और कर्म कांड के क्षेत्र में दिए है। इतना ही नही बल्कि यह स्थान सामाजिक और राजनीतिक जन जागरण का भी केंद्र रहा है  यहाँ के लोग अपने यजमानी क्षेत्र की भाषा के अलावा अनेक भाषाओं के जानकार होते है।

मुख्य विषय पर  आने से पहले या जान लें कि

यहां के पँ रामकृष्ण पण्डित ने बूंदी दरवार में जगह 2 से आये विद्वानों को शास्त्रार्थ में परास्त किया ,लक्ष्मीधर जोशी और लक्ष्मण पण्डित ज्योतिष के प्रकांड विद्वान थे इनके अलावा भगवानदास ध्यानी ने बाणभट्ट की कादम्बरी का हिंदी पद्यों में अनुवाद किया था।चंडी प्रसाद वैद्य जहां आयुर्वेद पर अधिकार रखते थे वहीं तँत्र और ज्योतिष के भी ज्ञाता थे तँत्र के क्षेत्र में नरसिंह भट्ट चुरथू वाले आचार्य जितेंद्र भारती,हुए। इस नगर ने नरहरि शास्त्री और कुशलानन्द ध्यानी जैसे संस्कृत व्याकरणा चार्य, कैलाश चन्द्र ध्यानी और ड़ा,शशिधर शर्मा बाबुलाकर सत्यनारायण बाबुलकर मुरलीधर शास्त्री आदि दिए हैं। वही ज्योतिष औऱ साधना के लिए आचार्य चक्रधर जोशी सर्व विदित हैं। समाज सेवा में चंदा प्रसाद कोटियालराधाकृष्ण मेरठवाल का नाम आता है वही14 प्रांतीय भाषओं के अलावा संस्कृत अंग्रेजी और उर्दू के कवि शायर और नाटककार के रूप में मुरलीधर शास्त्री याद किये जाते हैं । राजनीति में स्व, बृंदाबन ध्यानी जो आज की चर्चा के केंद्रीय भाग हैं, के अलावा सुंदरलाल शास्त्री(1942के आंदोलन में पौड़ी जेल अस्पताल में मृत्य)श्रीलाल थपलियाल प्यारेलाल जोशी, श्रीनारायण पलियाल गंगेश ध्यानी प्रेमलाल वैद्य  भगवती  चरण शर्मा निर्मोही कैलाश नारायण भट्ट,,सेठ गयाप्रसाद पँचभैया, कृष्णकांत टोडरियादूसरी पीढ़ी में मनोहरकान्त ध्यानीआदि उल्लेखनीय है। पत्रकारिता के क्षेत्र में बृंदाबन ध्यानी ,विद्यधर डंगवाल सुंदर सिह ध्यानी भगवती प्रसाद तरल, हीरालाल बडोला   हजारीलाल जोशी आदि के नाम लिए जाते हैं।संगीत के क्षेत्र मेंबांकेलाल टोडरिया गोविंदप्रसाद अलखनिया प्रेमलाल ध्यानी,धूड़ी लाल कोटियाल ,सुंदरलाल बाबुलकरऔर आर पी रमेश को याद किया जाता है।कुल मिलाकर यह कहना अतिश्योक्ति नही होगी कि देवप्रयाग सुर देवप्रयागियो का विभिन्न क्षेत्रों में दखल रहा है।इस पारिचयात्मकअंश को यहीँ पर विश्राम देक़र मुख्य विषय पर आते हैं।याने स्व, बृंदाबन ध्यानी पर।:-----

स्व, बृंदाबन ध्यानी रणाकोट(सबधार खाल) पट्टी कँड वालस्यूं पौड़ी गढ़वाल  कार्तिक 4 गते1902 मेंजन्मे देवप्रयागी पंडा समाज के उन विलक्षण और बहुमुखी प्रतिभा के धनी  विद्वानों में एक थे जिन्होंने "गढ़केसरी"पँ अनुसूया प्रसाद बहुगुणा और मुकुन्दीलाल  बैरिस्टर के साथ मिलकर सन 1920 में गढ़वाल कांग्रेस की स्थापना की थीऔर स्थापना सम्मेलन आयोजित कर कोंग्रेस अध्यक्ष राजर्षि पुरुषोत्तम दास टण्डन को अध्यक्ष और  गौरीशंकर मिश्र को मुख्य अतिथि के रूप मेंआमंत्रित कर सम्मेलन सम्पन्न करवाया  । गढ़वाल भर से कांग्रेस के गया अधिवेशन(1922,) के लिये जो डेलीगेट चुने गए थे उनमें  अनुसूया प्रसाद बहुगुणा और बृंदावन ध्यानी,दो ही व्यक्ति थे।यह वही अधिवेशन था जिसमे सिंगार वेलु चेट्टियार ने पूर्ण आजादी का प्रस्ताव पेश किया था जबकि इससे पहले 1920 के अहमदाबाद अधिवेशन में मौलाना हसरत मोहानी ने भी पेश किया था।हालांकि दोनों बार ये प्रस्ताव अस्वीकार कर दिए गए।

जैसाकि उल्लेख किया गया कि ध्यानी का जन्म देवप्रयागी पंडा परिवार में 4 गते  कार्तिक902में हुआ था। परंतु28 जनवरी1969की प्रातः 10 बजे से पूर्व तक अर्थात् अंतिम सांस लेने तक वे अपने पीछे अपार साहित्यिक ,सामाजिक,राजनीतिक तथा आध्यात्मिक  विरासत छोड़कर विदा हुए थे।जो स्वयं में एक अभिलेखागार है।और स्वयम व्यक्ति के रूप में एक संस्था।

 बावजूद विभिन्न क्षेत्रों में अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान के, इसे एक विडम्बना ही कहेंगे कि इस महान विभूति  और इसके कार्यों को इतिहास के पन्नों में समुचित स्थान मिलने के बजाय इसे इतिहास के कुहासे से कहीं ढक  दिया गया क्योंकि इन्हें चाटुकारिता और आत्म प्रशंशा की चाह ही नही रही।बल्कि समाज और राष्ट्र सेवा को ही प्राथमिकता देने वालों में एक थे। देवप्रयागी और समग्र पर्वतीय समाज स्व, मोहनलाल बाबुलकर का सदा ऋणी रहेगा जिन्होंने अथक प्रयास कर स्व,ध्यानी के इतस्ततःअस्तव्यस्तआर्काइव(अभिलेखागार)को खंगालकर इस कुहासे हो हटाया जिसके आवरण से इस बहुमुखी प्रतिभा के धनी ,सरल स्वभाव वाले साहित्यकार,   राज नेेता ,समाजसेवीका नई पीढी से परिचय कवाया। 

    स्व, ध्यानी बनारस क्वीन्स कॉलेज के उन छत्रो के बहुत करीबी थे जिन्हें डॉ, पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल,भोलादत्त चन्दोला,जगदीश प्रसाद घिल्डियाल और भैरव दत्त धूलिया नसम से जाना जाता है। स्व, बृंदावन ध्यानी उन अभिमान रहित,सरल,सादगी प्रिय और पद लालसा से परे रहने वाले व्यक्तियों में से  थे जिन्हें हमेशा नई प्रतिभा की तलाश रहती थी जिसे तरास कर वे समाज मे उसे उचित स्थान दिलाना चाहते थे।इसी लिए हर युवक को उसकी अभिरुचि के अनुसार ही वे उसे उसी क्षेत्र में आगे बढ़ने की प्रेरणा देते थे।याने उनका प्रतिभाओं को निखारने के तरीका मनोवैज्ञानिक था ।इस सँवँध में मुझे आज 75 पतझड़ बीतने के बाद भी बखूबी याद है कि:--

    स्वप्रसिद्धू से दूर रहने वाले स्व,ध्यानी युवकों के लिये स्वयं मेहनत के लिखते थे और फिर उसे उनके नाम से प्रकाशित भी करवाते थे। या घटना उस समय की है जब डॉ,सम्पूर्णानन्द उत्तरप्रदेश के मुख्य मंत्री थेजो विद्वानों का बहुत सम्मान करते थे।ऐसे समय में  स्व, ध्यानी ने अपने गांव के एक नवयुवक  को आगे कर उज़के नाम से " कण्वाश्रम"पर् एक अलग ही लाइन पर् अत्यंत शोधपूर्ण श्रृंखला समाचार पत्रों में शुरू करवाई।(सत्यपथ कर्म भूमि-में से एक में) इस श्रृंखला में ध्यानी जी ने तार्किक और पौराणिक ढंग से या स्थापित करवाने का प्रयास किया कि असली पुराणसम्मत कण्वाश्रम वह नही जिसे आज कण्वाश्रम (कलाल घाटी क्षेत्र) कहा जाता है बल्कि वह कर्णप्रयाग और नंदप्रयाग के मध्य अलकनन्दा के बायें तट पर नागनाथ पोखरी से आने वाली नदी के सामने स्थित है।इसी नदी को उन्होंने मालिनी नदी बताया। इस लंबी श्रृंखला से  डॉ, संपूर्णानंद बहुत प्रभावित हुए थे और उन्होंने लेखक से मिलने की इच्छा तक जांहिर की थी। यह नवयुवक था शशिकांत ध्यानी जो आगे चलकर एक मंझे लेखक बने। उल्लेखनीय हैकि जब यह "कण्वाश्रम"श्रृंखला चली तो सत्ता पक्षया अन्य किसी विद्वान को इसे चुनती देने की हिम्मत नही हुई थी ।सत्ताके लोग नही चाहते थे कि जिस कण्वाश्रम में उनकी दिलचस्वी हस इतर कहीं कण्वाश्रम माना जाय।

स्व बृंदावन ध्यानी  उन् दृड़ संकल्प और सिद्धान्त वादी व्यक्तियों में से थे  जो हमेशा देश और समाज हित के लिए प्रतिवद्ध रहे।राजनीति और राजनीयिक चिंतन के साथ साथ वे समाज सुधार और सामाजिक परिवर्तन के भी पक्षधर थे।वे अपने सिद्धांतों और विचारो कोवास्तविकता के धरातल पर उतारने कृत संकल्प रहते थे। वे बहु अयामी पुरुष थे सामाजिक कुरीतियों और रूढ़ियों केखिलाफ रहते ठे थे उन्होने हमेशा छुआछूत  आदि के उन्मूलन का पक्ष लिया।(क्रमशः शेष अगले अंक में)(स्रोत  - मोहलाल बाबुलकर द्वारा सम्पादित -बृंदावन ध्यानी स्मृति ग्रंथ)