पंय्यां के फायदे


पंय्यां आदि काल से ही महत्वपूर्ण जड़ी-बूटियों व अन्य उपयोगी वनस्पतियों के भण्डार के रूप में विख्यात है

पंय्यां के फल ऐसट्रिन्जैंन्ट होते हैं। 

 

पय्यां के फलों का सेवन पेट की कई समस्याओं को दूर करने में फाइदेमन्द बतलाया गया है।


पय्यां पके फलों का सेवन पाचन तंन्त्र को ठीक रखने में मददगार माना गया है।


पंय्यां के पेड़ की छाल का रस बैकपेन (कमरदर्द) के लिये लाभकारी माना गया है।


पंय्यां के फलों में एमिगडालिन, प्रुनासिन पाया जाता है। इसका सेवन सांस लेने की तकलीफ में राहत प्रदान करने वाला बतलाया गया है।


पंय्यां के फूले बृक्ष लीन पीरियड में मधुमख्खी पालन वालों के लिये लाभकारी माने गये हैं। इसके फूलों के परांगण का सेवन मधुमख्खियों द्वारा शुद्व एवं गुणकारी कार्तिक शहद के रूप में हमें उपलब्ध कराया जाता है।


पय्यां के पेड़ की छाल से टेनिन तथा पत्तियों से ग्रीन डाई तैयार की जाती है।
पय्यां के बीजों से प्राप्त किये गये तेल को फार्मास्यूटिकल परपज में इस्तेमाल किया जाता है।


पय्यां के सूखे बीजों का इस्तेमाल बीड्स, नैकलेस बनाने में किया जाता है।।


स्थानीय लोगों द्वारा पंय्यां की डाल की लकडी़ को राजमा के पौधों की बढ़वार, ककडी़, लौकी इत्यादि की बेल बढ़वार के लिये इस्तेमाल किया जाता है।


धार्मिक दृष्टि से पंय्यां की पत्तियों वाली डाल को पवित्र मानकर उपयोग किया जाता है। 

 

जिस तरह शहर में लोग आम की पत्तियों की माला घर के द्वार पर गृह प्रवेश या हवन इत्यादि के बाद लगाये जाते है ठीक उसी तरह उत्तराखंड मे इस पेड़ की पत्तियों का इस्तेमाल होता है।

 

पंय्यां के पेड की छाल को दवा के साथ ही रंग बनाने मे भी प्रयोग किया जाता है।


पंय्यां की लकडी को भी चन्दन के सम्मान पवित्र माना गया है। हवन मे पंया की लकडी का इस्तेमाल करना पवित्र माना जाता है।


पंया के पेड़ की लकडी़ को विशेष रूप से ढोल ढमाऊं बजाने के काम में भी लाया जाता है। 

 

पंय्यां के पेड़ की लकडी़ से वाद्ययंत्र (डोल दमाऊँ) बजाने से दासों द्वारा अलग ही राग पैदा किया जाता है।


पय्यां की पत्तियों का इस्तेमाल गाय, बकरियों के सुखे विछोने के रूप में भी किया जाता है, जो आगे चलकर उर्वरा शक्तिदायक खाद का काम करती है।


पंय्यां के पेड का सांस्कृतिक महत्व भला कौन नहीं मानता होगा।


रीति रीवाजों के अनुसार, शादी में प्रवेश द्वार पर पंय्यां की शाखाऐं लगाकर निर्माण किया जाता है। साथ ही शादी का मंडप भी पंय्यां की शाखाओं के बगैर अधूरा माना जाता है।


पय्यां की लकडी़ मजबूत होती हैं, जिस कारण इसका इस्तेमाल सिर्फ जलाने तक ही सीमित नहीं होता, बल्कि इससे गेहूं कूटने वाला डंडा, गाय, भैंस बांधने के कीले, कृषि उपकरणों के हत्थे भी बनाये जाते हैं।


पंय्यां का पर्णपाती बृक्ष बहुत ही खूबसरत होने के कारण शोंन्द्रीकरण के लिये भी काफी उपयुक्त माना गया है।