आत्म संयम

बादलों की ओट से झाँकते हुए चन्द्रमा की सुंदरता तो देखते ही बन रही थी।कुछ पल केलिए मौली के हृदय की सारी पीड़ा छू मंतर हो गई।उमड़ते घुमड़ते बादल ने बाँहे फैलाकर चन्द्रमा को अपने आगोश में ऐसे भर लिया मानो बहुत दिनों से बिछड़े हुए प्रियतम को अपनी प्रेयसी मिल गई हो।मोली स्वयं चन्द्रमा में विलीन हो बादल रूपी प्रिय की बाहों में आलिंगनबद्ध हो सीने में ज़ब्त हुए बर्फ़ की सिल्ली रूपी दर्द को प्रिय के प्यार से मिलती ऊष्मा से पिघलाकर अपनी हिरणी जैसी अँखियों से ऐसे बहाने लगी मानो आज सब कुछ प्रिय को सौंप स्वयं को इतना हल्का कर रही हो कि जब चाहे उड़ कर प्रिय से एकाकार हो जाए ।इस मधुर मिलन में उसे यह होश ही न रहा कि बदरा रूपी उसका प्रिय भी अपनी शीतल बूँदों से उसकी ऊष्ण अश्रुधारा में शामिल हो उसे सिर से पाँव तक तरबतर कर चुका है।

" बहू.... बहू... कहाँ चली गई...?मुन्ना जाग गया है... भूख से रो रहा है... "सासू माँ की कड़क आवाज़ ने छत पर प्रिय की बाँहों में समाई मौली के परमानन्द को क्षण भर में खण्ड खण्ड कर दिया। होश आते ही महसूस हुआ कि वह बारिश में पूरी तरह से भीग चुकी है। स्वयं को हक़ीक़त की दुनिया में लौटाकर मौली जल्दी -जल्दी छत से नीचे उतर आई।सासू माँ के ताने सातवें आसमान पर थे।"पहले तो मेरे बेटे को निगल गई ...अब उसकी निशानी भी मिटाना चाहती हो...।"सासू माँ के तानों ने मौली के हृदय पर लगे घावों पर नमक छिड़क तड़पने के लिए मज़बूर कर दिया लेकिन व्यथित वीरांगना माँ के हृदय की पीड़ा को भली -भांति समझती थी। वह जानती थी कि सासू माँ अपने बहादुर बेटे जिसका इन्तज़ार वह पोता होने की ख़ुशी में त्यौहार मनाने के लिए कर रही थी उसकी जगह पर बेटा आया तो अवश्य लेकिन तिरंगे में लिपट कभी न उठने के लिए... माँ की आशाओं पर हुए बज्रपात ने सासू माँ के धैर्य के बाँध को तहसनहस कर डाला था।दो दिन बाद जब होश आया तो बहू को ही अभागिन मान बेटे का क़ातिल समझने लगी। अभागिन और मनहूस शब्द सासू माँ के दिलोदिमाग में समा चुके थे। मुन्ना को गोद को लिए मौली अमृतपान कराते समय उसके सिर को सहलाते हुए कहती ..."मेरा राजा बेटा जल्दी जल्दी बड़ा हो जाएगा...बन हृष्टपुष्ट एकदिन भारत माँ की सेवा करने जाएगा... छोड़ गए पिता जो अधूरा कार्य सरहद पर,मुन्ना राजा पूरा कर दिखलायेगा।होंगे ख़्वाब पिता के पूरे ,माँ का दिल हर्षाएगा। स्तनपान करते हुए घुट घुट की आवाज़ में मानो मुन्ना माँ को सहमति दे अपने नन्हें पैरों को उछाल कर उत्साह प्रकट कर रहा हो....यह देख कर भावविभोर हो मौली सासू माँ की वाणी से मिले घावों को भरने लगती।

एक ओर भरी जवानी में प्रिय के विरह की वेदना और दूसरी ओर सासू माँ की वाणी से निरन्तर मिलते घाव...कई बार मौली व्याकुल हो इहलीला समाप्त कर प्रिय के सङ्ग विलीन हो जाने के लिए तत्पर हो जाती लेकिन दूसरे ही क्षण नन्हे बालक और वृद्ध सासू माँ का ख़्याल उसे वीरांगना बना देता।पड़ोस की नीता मौली की स्थिति देख उस पर तरस खा कहती "अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है?तुम जवान हो ...इतनी खूबसूरत हो,कोई भी नवयुवक तुम्हारा हाथ थामने में स्वयं को भाग्यशाली समझेगा। इतने कड़वे बोल सुन सुन कर क्यों अपनी भरी जवानी बर्बाद कर रही हो....?"।मौली एक कान से सुन दूसरे से निकाल देती..।नीता उसकी अच्छी सहेली थी इसलिए वह उसे कुछ नहीं कह चुप्पी साध लेती थी।

दिन बीतते देर नहीं लगती.....मुन्ना अब बड़ा हो चला था। मौली के सेवाभाव ने सासू माँ का हृदय परिवर्तित कर दिया था ।अब वह कडुवे बोल की जगह मीठे बोल बोलने लगी थी।बहू के आत्मसंयम और प्यार ने माँ के हृदय पर हुए वज्रपात के घाव को भर दिया था। मुन्ना आर्मी ऑफिसर बन गया था।आज दो साल बाद घर आने वाला था।ऊपर वाले की लीला भी विचित्र है।आज फिर वही दृश्य...मौली छत में उमड़ते घुमड़ते बादल में प्रिय की छवि निहारते निहारते न जाने कब चंदा बन प्रिय की बाँहों में समा दिल की बात सुनाने लगी..."देखो अब हमारा मुन्ना आर्मी ऑफिसर बन गया है।तुम्हारा अधूरा कार्य अब पूरा हो जाएगा..."।प्रिय रूपी बादल की शीतल बून्दें और मौली की अश्रुधारा मिलकर एकाकार हो ही रही थी कि आवाज़ आई...."बहू... बहू ...देखो कौन आया! मौली हड़बड़ा कर सीढ़ियों से नीचे उतरती है सामने से बाँहें फैलाए मुन्ना आकर माँ और दादी माँ दोनों को ही अपने सीने से लगाकर असीमित स्नेहशीर्वाद से भीगने लगता है।