ग़ज़ल


तसव्वर में जो देखा सब अलग था
तुम्हारे प्यार का मतलब अलग था


लहू के रंग से पहचान करते
अगर हर शख्स का मज़हब अलग था


हमें मज़मा लगाने की है आदत
मदारी का कहाँ करतब अलग था


फ़क़त इक रात में बदलाव कैसे
तुम्हारा लहज़ा गुज़री शब अलग था



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