कोरोना और कामगार


कोरोना लॉकडाउन की वजह से देश में बेरोजगारी की दर में बेतहाशा वृद्धि हुई है। देश में फैली महामारी के दौरान अधिकतर लोग बेरोजगार हो गए। नौकरिया नहीं है। यह त्रासदी तो है, मगर इससे भी बड़ी त्रासदी यह है कि रोजगार मुद्दा नहीं है। जो लोग नौकरियों में थे उनकी तो नौकरी ही चली गई, इसके बाद भी रोजगार मुद्दा नहीं है। राजनीति का ऐसा समय, जब बेरोजगारी चरम पर हो और मुद्दा न हो तो वह नेता बनने के लिए कमाल का समय होता है। क्योंकि वह आसान होता है। राजनीति अब जनता के नियंत्रण में नहीं रही। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सी.एम.आई.ई.) ने अपनी सर्वे रिपोर्ट में कहा कि कोविड-19 संकट के चलते देश में बेरोजगारी की दर तीन मई को समाप्त हुए सप्ताह के दौरान बढ़कर 27.11 प्रतिशत हो गई थी। अंग्रेजी समाचारपत्र द इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार सीएमआईई द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार भारत की बेरोजगारी दर 15 मार्च को खत्म हुए हफ्ते में 6.74 प्रतिशत थी, जो 3 मई को समाप्त हुए सप्ताह में बढ़कर 27.11 प्रतिशत हो गई थी। मुम्बई स्थित थिंक टैंक ने कहा कि बेरोजगारी की दर शहरी क्षेत्रों में सबसे अधिक 29.22 प्रतिशत रही, जहां कोविड-19 संक्रमण के सबसे आधिक प्रभावित इलाकों ‘रेड जोन’ की संख्या सबसे अधिक है। ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी की दर 26.69 प्रतिशत थी। वहीं 26 अप्रैल को समाप्त सप्ताह में शहरी बेरोजगारी दर 21.45 प्रतिशत और ग्रामीण बेरोजगारी दर 20.88 प्रतिशत थी। सीएमआईई के आंकड़ों के अनुसार अप्रैल में मासिक बेरोजगारी दर में 23.52 प्रतिशत दर्ज की गई जबकि यह मार्च महीने में 8.74 प्रतिशत थी। रिपोर्ट में कहा गया कि शहरी इलाकों में बेरोजगारी दर ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अधिक है।


देश में लॉकडाउन से दिहाड़ी मजदूरों और छोटे व्यवसायों से जुड़े लोगों को भारी झटका लगा है। इनमें फेरीवाले, सड़क किनारे दुकान लगाने वाले विक्रेता, निर्माण उद्योग में काम करने वाले श्रमिक और रिक्शा चलाकर पेट भरने वाले लोग शामिल हैं। राज्यवार देखा जाए, तो अप्रैल में सबसे अधिक बेरोजगारी दर पुडुचेरी में 75.8 फीसदी रही। इसके बाद तमिलनाडु में 49.8 फीसदी, झारखण्ड में 47.1 फीसदी, बिहार में 46.6 फीसदी, हरियाणा में 43.2 फीसदी, कर्नाटक में 29.8 फीसदी, उत्तर प्रदेश में 21.5 फीसदी और महाराष्ट्र में  20.9 फीसदी दर्ज हुई है। पर्वतीय राज्यों में बेरोजगारी दर बाकी राज्यों की तुलना में कम रही। उत्तराखण्ड में बेरोजगारी की दर 6.5 फीसदी, सिक्किम में 2.3 फीसदी और हिमाचल प्रदेश में 2.2 फीसदी रही है।


कोरोना वायरस के प्रसार के साथ ही लगभग हर हफ्ते किसी न किसी क्षेत्र से हजारों कर्मचारियों को बिना वेतन के छुट्टी देने, नौकरियों से निकालने, वेतन में भारी कटौती के समाचार आते रहे। जिन लोगों की नौकरियां अचानक चली गई हैं या लॉकडाउन के कारण रोजगार अचानक बंद हो गया है, उन्हें आर्थिक परेशानी के साथ-साथ मनोवैज्ञानिक चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है। सरकारें, स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा आर्थिक मदद दी जा रही है, लेकिन महत्वपूर्ण प्रश्न यह भी है कि नौकरी जाने या रोजगार का जरिया बंद होने पर अपनी भावनाओं को कैसे संभालें? कैसे नकारात्मक भावनाओं को खुद पर हावी न होने दें? रोजगार न रहने पर भावनात्मक रूप से टूटना बेहद स्वाभाविक है, लेकिन आजकल के बेहद अनिश्चित माहौल में नौकरी जाना और भी अधिक तनावपूर्ण हो सकता है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसर रोजगार जाने का दुःख किसी अपने को खोने के दुःख के बराबर ही होता है और व्यक्ति रोजगार जाने की स्थिति में भी दुःख को महसूस करने और उससे निपटने के किसी भी चरण यानि सदमा लगना और परिस्थिति को स्वीकार न करना, फिर गुस्सा और अंत में स्वीकार भाव और आगे की उम्मीद से गुजर सकता है। लेकिन कई लोग अपनी भावनाओं को स्वीकार नहीं करना चाहते। जैसे इस माहौल में नौकरी जाने पर वे खुद को कहेंगे कि जब महामारी के कारण सभी के साथ यही स्थिति है तो मैं ही क्यों इतना दुखी महसूस कर रहा हंू। मुझे इतना दुखी नहीं होना चाहिए। लेकिन किसी भी दुःख से उबरने के लिए जरूरी है कि पहले हम स्वीकार करें कि हम दुखी हैं और हमारा दुःख स्वाभाविक है। इसलिए जब हम यह महसूस करते हैं कि हमने निजी तौर पर कुछ खोया है, उम्मीद, अवसर या कोई रिश्ता खोया है, तब हम खुद को दुखी होने की अनुमति देते हैं और आगे बढ़ना शुरू कर पाते हैं। अध्ययनों से पता चलता है कि महामंदी के दौरान जिन लोगों को वित्तीय या नौकरी संबंधी समस्याओं या आवास की समस्या का सामना करना पड़ा, उन्हें मानसिक बीमारियों का खतरा अधिक था। अब ऐसे में प्रश्न यह है कि इस अभूतपूर्व परिस्थिति की मार झेल रहे लोग अपना संतुलन कैसे बनाए रखें? आज की बेरोजगारी की स्थिति बाकी दिनों से अलग है क्योंकि सभी मानते हैं कि यह अस्थायी है और जब स्थिति नियंत्रण में आ जाएगी तो लोग पुनः काम पर लौटेंगे।