उम्मीद की मद्धिम लौ

 

यह भी बात सत्य है कि जीवन कहीं ठहरता नहीं है और सब कुछ कभी खत्म नहीं होता। वर्तमान समय में कोरोना वायरस से उत्पन्न संकट से जीवन में ऐसा भी महसूस हो रहा है,कभी कभी ऐसा  लग रहा है मानो सब खत्म हो रहा है। अगर गहराई से जान सके कि जीवन कितना भी निरर्थक क्यों न लगे, उसमें अंतर्निहित अर्थ को खोज कर मनुष्य सारे कष्टों को सहन कर बाहर निकल सकता है। विपरीत परिस्थितियों में यह जानना महत्वपूर्ण नहीं है कि हमें जीवन से क्या अपेक्षा है, बल्कि यह जानना महत्वपूर्ण है कि इस समय जीवन को हमसे क्या अपेक्षा है। जो समस्या हमें मिली है,उसका सही जवाब पाने की जिम्मेदारी हमारी ही है। मानवता ने बड़े-बड़े जीवन अस्तित्व के संकटों के बीच उजालों को खोजा है, यही मानव इतिहास की विलक्षणता भी है।

जब संकट बड़ा हो तो संघर्ष भी बड़ा अपेक्षित होता है। इस संघर्ष में जन-जन की मुट्ठियां तन जाने का अर्थ है कि आपके अंदर किसी लक्ष्य को हासिल करने का पूरा विश्वास मौजूद है। जीवन को नयी दिशा देने एवं संकट से मुक्ति के लिये कांटों की ही नहीं, फूलों की गणना जरूरी होती है। अगर हम कांटे-ही-कांटे देखते रहें तो फूल भी कांटे लगने लगते हैं।  'उम्मीद की मद्धिम लौ,

   नाउम्मीदी से कहीं बेहतर है।’ 

अगर हम अन्तर्मन की हकीकत जाने तो हंसी और आंसू दोनों अपने ही भीतर हैं। अगर हम जीवन की सोच को नई आशा के रुप में देखें तो जीवन रसमय बन जाता है। 

कोरोना वायरस के कारण जीवन में अनेक कष्ट अनुभव हो रहे हैं,जिसके कारण से अनेक विसंगतियों को जीवन में घुसपैठ करने का मौका मिल रहा है। हमें मात्र उन छेदों को रोकते हुए एक जिम्मेदार नागरिक की भांति जागरूक रहना होगा। यदि ऐसा होता है तो एक ऐसी जीवन संभावना, नाउम्मीदी में उम्मीदी बढ़ सकती है, जो न केवल सुरक्षित जीवन का आश्वासन दे जाए,बल्कि जीवन के संकट से मुक्ति का रास्ता दे पाये। इस तरह इंसान का कद ऐसे उठे कि आदमी-आदमी को पहचान सकें, जिससे जीवन सार्थक हो जाए। निरन्तर प्रयत्न अवश्य परिणाम देता है, जरूरत कदम उठाकर चलने की होती है, विश्वास की शक्ति को जागृत करने की होती है। विलियम जेम्स ने कहा भी है कि विश्वास उन शक्तियों में से एक है जो मनुष्य को जीवित रखती है, विश्वास का पूर्ण अभाव ही जीवन का अवसान है।

आज संकट एवं आशंकाओं के रेगिस्तान में आदमी तड़प रहा है। संकल्प एवं संयम एक ऐसी निर्मल गंगा है, जो तड़पते हुए आदमी के संकट पर शीतल बूंदें डालकर उसकी तड़प-शंकाओं को मिटा सकती है। 

 मनुष्य जीवन में गैर-जिम्मेदारी एवं लापरवाही की इतनी बड़ी-बड़ी चट्टानें पड़ी हुई हैं, जो मनुष्य-मनुष्य के बीच व्यवधान पैदा करती हैं। संकल्प,संयम एवं समर्पण के हाथ इतने मजबूत हैं कि उन चट्टानों को हटाकर आदमी को आदमी से मिला सकता है, जीवन की संभावनाओं को पंख लगा सकता है। इसके लिये जरूरी है कि आदमी के अन्दर का खुद पर विश्वास जागे। स्वेट मार्डेन ने कहा भी है कि मनुष्य उसी काम को ठीक तरह से कर सकता है,और सफलता भ प्राप्त कर सकता है जिसकी सिद्धि में उसका सच्चा विश्वास हो।

 

मनुष्य के जीवन को सही रास्ते पर चलाने के लिए कुछ माइल स्टोन हैं- आत्मविश्वास, संकल्प,संयम,समर्पण,समता और सहिष्णुता। संभवतः इन्हीं मूल्यों की सुरक्षा के लिए मनुष्य ने उन्नत जीवन की कामना की थी। इसी उन्नत जीवन के खुले आसमान के नीचे ही एक स्वस्थ एवं सुरक्षित व्यक्ति का जीवन संभव है। बिस्मार्क ने कहा है कि अभिप्राय में उदारता, कार्य संपादन में मानवता, सफलता में संयम- इन्हीं तीन चिन्हों से महान व्यक्ति बना जा सकता है। इसी में जीवन की सफलता निहित है। आदमी की तलाश में अक्सर यह सुनने को मिलता है,कि आज आदमी आदमी नहीं रहा। ईश्वर का पहला चिन्तन था- फरिश्ता और ईश्वर का ही पहला शब्द भी था मनुष्य। ईश्वर के प्रारंभिक दोनों ही चिन्तन आज लुप्तप्राय है। उसके बाद हमने सुना कि आदमी की जात बड़ी बदजात होती है। खरबूजों को देखकर जैसे खरबूजा रंग बदलता है वैसे ही आदमी-आदमी को देखकर रंग बदलता है। वर्तमान संदर्भों में मनुष्य का यह रंग बदलना कोरोना संकट से उबरने के लिए सकारात्मक दिशा में होना चाहिए।

 

आदमी की तलाश क्यों जरूरी है ? यह प्रश्न क्यों, इस सन्दर्भ में महान् दार्शनिक डॉ. राधाकृष्णन की इन पंक्तियों का स्मरण हो आया- ‘हमने पक्षियों की तरह उड़ना और मछलियों की तरह तैरना तो सीख लिया है किन्तु मनुष्य की तरह पृथ्वी पर चलना एवं जीना नहीं सीखा है।’ लेकिन इस भीड़ में कुछ-एक होते हैं जो रंग नहीं बदलते उन्हें खोजना मुश्किल भी है तो बहुत आसान,जो आदमी होते हैं। पता नहीं कब हम उनसे रू-ब-रू हो जाएं। सिर्फ समझ का दरवाजा खोलने की जरूरत है। अगर समझपूर्वक जीना आ गया तो जीवन के प्रत्येक धरातल पर इंसान की इंसान से मुलाकात होने लगेगी और बड़े-से-बड़े संकटों से मुक्ति के रास्ते भी उद्घाटित होंगे। आनंद का दरिया लहराने लगेगा। जिंदगी का हर एक लम्हा नया अंदाज देकर जाएगा।

जिंदगी के सफर में नैतिक एवं मानवीय उद्देश्यों के प्रति मन में अटूट विश्वास होना जरूरी है। कहा जाता है- आदमी नहीं चलता, उसका विश्वास चलता है। आत्मविश्वास सभी गुणों को एक जगह बांध देता है यानी कि विश्वास की रोशनी में मनुष्य का संपूर्ण व्यक्तित्व और आदर्श उजागर होता है। गेटे की प्रसिद्ध उक्ति है कि जब कोई आदमी ठीक काम करता है तो उसे पता तक नहीं चलता कि वह क्या कर रहा है पर गलत काम करते समय उसे हर क्षण यह ख्याल रहता है कि वह जो कर रहा है, वह गलत है। 

 

गलत को गलत मानते हुए भी इंसान गलत किये जा रहा है, इसी कारण समस्याओं एवं अंधेरों के अम्बार बढ़ रहे हैं। लेकिन ऐसा ही नहीं है, कुछ अच्छे लोग भी है, शायद उनकी अच्छाइयों के कारण ही जीवन बचा हुआ है। ऐसी अनेक जिंदगियों को मैंने नजदीक से देखा है। वे सारे फरिश्ते थे, ऐसा मैं नहीं मानता। वे आदमी थे, केवल आदमी। आदमी की सारी अच्छाइयां और कमियां उनमें भी थीं। फिर भी मुझे उनमें आदमियत नजर आई। ऐसे लोगों ने नैतिकता एवं चरित्र का खिताब ओढ़ा नहीं, उसे जीकर दिखाया। जो भाग्य और नियति के हाथों के खिलौना बनकर नहीं बैठे, स्वयं के पसीने से अपना भाग्य लिखा।

 

गलत सोच एवं विचारों का असंतुलित प्रवाह टब के समान है, जो इस पर अनुशासन करना सीख लेता है, उसके लिये यह वरदान है और जो इसके वशीभूत होकर अपनी विवेक चेतना खो देता है, वह स्वयं भी और सम्पूर्ण मानवता को विनाश की ओर अग्रसर कर देता है। डब्ल्यू. सोमरसेट मोघम ने कहा कि जीवन के बारे में एक मजेदार बात यह है कि यदि आप सर्वश्रेष्ठ वस्तु से कुछ भी कम स्वीकार करने से इंकार करते हैं तो अकसर आप उसको प्राप्त कर ही लेते हैं। महात्मा गांधी ने इसीलिये कहा कि हमें वह परिवर्तन खुद में करना चाहिए जिसे हम संसार में देखना चाहते हैं। जरूरत है हम दर्पण जैसा जीवन जीने की। उन सभी वातायनों एवं खिड़कियों को बन्द कर दें जिनसे आने वाली गन्दी हवा इंसान को इंसान नहीं रहने देती। उन अर्थहीन चाहों को लक्ष्मणरेखा बना दें, जिनके अतिक्रमण ने इंसान की सूरत को ही नहीं, सीरत को भी बिगाड़ा है, उसके जीवन को संकट में डाला है। इसीलिये इंसान के व्यवहार में इंसान की तरह देखा जा सके। यही आदमी की तलाश है और इसी तलाश की वर्तमान कोरोना संक्रमण के संकटकालीन दौर में सबसे ज्यादा जरूरत है।