किसान विधेयक का विरोध क्यों?

 

कृषि से जुड़े इन तीन विधेयकों का सबसे अधिक विरोध उन राज्यों में खास तौर पर हो रहा है जहां आढ़तियों का वर्चस्व है।.....

विपक्ष के दुष्प्रचार और संकीर्ण स्वार्थो की राजनीति कैसे-कैसे गुल खिलाती है, इसका ताजा उदाहरण कृषि और किसानों की  बेहतरी के लिए कृषि से जुड़े तीन महत्वपूर्ण विधेयकों के विरोध से देखा जा सकता है। पूर्व में  जब इन विधेयकों को संसद में अध्यादेश के रूप में लाया गया था तो आम तौर पर उनका स्वागत किया गया था, लेकिन जब इन तीन विधेयकों को केन्द्र सरकार द्वारा एक प्रकार से कानून का रूप देने की कोशिश की जा रही है तो विपक्षी दलों द्वारा अपनी राजनीति चमकाने के लिए संसद के भीतर और बाहर इन विधेयकों के विरोध में खड़े होना पसंद कर रहे हैं। चूंकि इन विधेयकों को नई व्यवस्था में आढ़तियों और बिचौलियों के वर्चस्व को चुनौती मिलने जा रही है, इसलिए यह मानने के अच्छे-भले कारण यह भी हैं कि इन विधेयकों के विरोध के पीछे वे और उन्हें संरक्षण-समर्थन देने वाले अपनी राजनीति चमकाने वाले नेता ही हैं।

कृषि से जुड़े इन तीन विधेयकों का खास तौर पर सबसे अधिक विरोध उन राज्यों में खास तौर पर हो रहा है जहां आढ़तियों का वर्चस्व है। जो राजनीतिक दल किसान हितैषी होने का दिखावा करने के लिए किस तरह एक-दूसरे से होड़ कर रहे हैं, इसका सटीक ताजा उदाहरण केंद्रीय मंत्रिमंडल से

 हरसिमरत कौर का मंत्री पद से इस्तीफा देना है। इसमें संदेह नहीं कि हरसिमरत कौर का इस्तीफा केवल इसीलिए दिया गया है,ताकि पंजाब में शिरोमणि अकाली दल किसान हितों में स्वयं को कांग्रेस से आगे दिखा सके।

 

आज से पहले इस बात का रोना रोया जाता था कि देश का किसान अपनी उपज कहां और किसे बेचे, लेकिन अब जब किसानों को अपनी उपज कहीं भी बेचने की छूट दी जा रही है तो यह हल्ला मचाया जा रहा है कि ऐसा क्यों किया जा रहा है? क्या कथित किसान हितैषी दल और संगठन यह चाह रहे हैं कि देश का किसान पहले की तरह दशकों पुराने और कालबाह्य साबित हो रहे मंडी कानूनों और साथ ही आढ़तियों की जकड़न में फंसा रहे? यदि नहीं तो फिर किसानों को अपनी उपज कहीं पर भी बेचने की सुविधा देने की पहल का कुछ राजनैतिक दलों एवं विरोध क्यों हो रहा है?

सरकार के किसान हितैषी कदम को किसान विरोधी साबित करने के लिए जिस तरह यह अफवाह फैलाने से तो यही स्पष्ट हो रहा है कि छल-कपट की राजनीति की कोई सीमा नहीं होती है। इससे कोई इन्कार नहीं कर सकता कि जिस उद्देश्य के लिए मंडियों की स्थापना की गई थी, वे उद्देश्य पूरे नहीं हो रहे हैं।

इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि मंडियों में किसानों के बजाय आढ़तियों की चलती है। इसके चलते किसान औने-पौने दाम में अपनी उपज बेचने को मजबूर होते हैं। यह हैरानी की बात है कि इस मजबूरी की अनदेखी कर उन विधेयकों का विरोध किया जा रहा है, जिनका उद्देश्य कृषि और किसानों की बेहतरी है।