!!सृजन और निर्माण के देवता  विश्वकर्मा!!




 

भारतीय सनातन हिन्दू धर्म में भगवान विश्वकर्मा को सृजन एवं निर्माण का देवता एवं तकनीकी और विज्ञान के जनक माना जाता है। वे वास्तुदेव के पुत्र  तथा माता अंगिरसी के पुत्र थे। पौराणिक काल में विशाल भवनों का निर्माण भगवान विश्वकर्मा करते थे। उनके द्वारा ही लंका,इन्द्रपुरी,खाण्डव प्रस्थ, यमपुरी, वरुणपुरी, द्वारिकापुरी, पांडवपुरी, कुबेरपुरी, शिवमंडलपुरी तथा सुदामापुरी आदि स्मरणीय स्थलों का निर्माण किया था।  सोने की लंका के अलावा उन्होंने ऐसे कहीं भवनों का निर्माण किया,जो उस समय के स्थापत्य और सुंदरता में अद्वितीय होने के साथ-साथ वास्तु के हिसाब से भी महत्वपूर्ण थे।भगवान विश्‍वकर्मा के बारे में कहा जाता है कि उनको वास्तुकला के बारे में इतना अनुभव था कि वे अपनी कार्यशक्ति से पानी में चलने वाला  खड़ाऊ भी बना सकते थे।

सोने की लंका के निर्माण के संबंध में विशेष रुप से मैं एक कहानी का उल्लेख कर रहा हूं। भगवान शिव की मनवांछित आराधना से रावण का त्रिलोक विजेता बनने के बाद उसके मन में अपने सुख,वैभव, ऐश्र्वर्य, प्रतिष्ठा के अनुकूल ऐसे नगर के निर्माण का विचार आया जिसके आगे देवताओं  की अलकापुरी भी फीकी नजर आए। जिस कारण रावण ने भगवान शिव की आराधना कर उनसे सोने की लंका बनाने में देवशिल्पी,

सृजन एवं निर्माण का देवता विश्वकर्मा का सहयोग मांगा। 

भगवान शिव के कहने पर देवशिल्पी विश्वकर्मा ने सोने की लंका का ऐसा प्रारूप तैयार किया जिसे देखते ही रावण की बांछें खिल गईं। उसी आधार पर बनी सोने की लंका की सुंदरता देखते ही बनती थी। रावण  लंका में आने वाले हर महत्वपूर्ण अतिथि को वहां के दर्शनीय स्थलों को बड़े गर्व के साथ  दिखाता। 

एक बार रावण ऋषि-मुनियों को लंका का भ्रमण करा रहा था। ऋषि-मुनी लंका के सौंदर्य को देखकर अचंभित हुए। ऋषि-मुनियों को लंका का भ्रमण में रास्ते में रावण को साथ देखकर मिलने वाले लंकावासी भय से नतमस्तक हो जाते,लेकिन  ऋषि-मुनियों

का कोई अभिवादन नहीं करता था। लंका में ऐसा ही व्यवहार रावण के मंत्रियों, सैनिकों और कर्मचारियों का ऋषि-मुनियों ने देखा भी। 

 भ्रमण के पश्चात रावण ने ऋषि-मुनियों से पूछा- 'आपको हमारी लंका कैसी लगी?'एक महर्षि बोले-'लंका तो अद्भुत है लंकेश लेकिन यह शीघ्र ही नष्ट हो जाएगी, क्योंकि आपने  लंका के सौंदर्य और सुरक्षा के लिए तो बहुत कुछ किया है, लेकिन इसके स्थायित्व के लिए कुछ  नहीं हुआ। निश्चित रुप से जहां के निवासियों के मुख पर प्रसन्नता की जगह भय के भाव हों और जिनमें सदाचार का अभाव हो, वहां का नगर एक पत्रकार से समय के साथ नष्ट हो जाता है।' 

कलयुग में भगवान विश्‍वकर्मा की पूजा हर व्‍यक्ति के लिए इसलिए भी जरूरी है क्योंकि कलयुग का संबंध तकनीकी और विज्ञान के युग में कलपुर्जों से माना जाता है जो  आज के युग में कलपुर्जे का प्रयोग हर शख्‍स कर रहा है। लैपटॉप, मोबाइल फोन और टैबलेट भी एक प्रकार की मशीनी कलपुर्जे हैं जिनके बिना आज के युग में हर व्यक्ति का रह पाना बहुत मुश्किल है। 

भारतीय परंपरा में तकनीकी और विज्ञान के क्षेत्र में कार्य करने वाले शिल्पियों को 'विश्वकर्मा की संतान' कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार उन्हीं के प्रारूप पर स्वर्ग, देवताओं के अस्त्र-शस्त्र, पुष्पक विमान,द्वारिका, इन्द्रप्रस्थ आदि का निर्माण हुआ। इस प्रकार वे बहुमुखी कलाकार और शिल्पकार हैं। 

       














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