चाँद की रोशनी रात के तन बदन
जैसे उबटन लगा कर मली जा रही
लाजमी है कि रंगत बदलने लगी
इत्र में रात रानी ढली जा रही
चाँद-------
ऐसे हालात बनते नजर आ रहे
क्षीरसागर मे हिमनद उतर आ रहे
जैसे देवों का शर्बत बनेगा अभी
मीठी मिश्री की घुलने डली जा रही
चाँद -------
हो न हो तेरे आने का संदेश है
इस धरा ने धरा स्वर्ग का भेष है
दायरा वक़्त अपना है फैला रहा
बीतने से ये घड़ियां टली जा रही
चाँद------
पूरा वातावरण सुरमयी हो गया
और सूरज गहन नींद में सो गया
ये अगर सच है वो ही घड़ी आ गयी
प्रार्थना मेरी कोई फली जा रही
चाँद--------
अब नियंत्रण में साँसों की डोरी नही
चाँद हो तुम मगर मैं चकोरी नही
एक शंका है मुझको कि ऐसा न हो
तेरे हाथों मैं फिर से छली जा रही