पुरुष


पुरुष इस सृष्टि पर ईश्वर की है ऐसी अद्भुत रचना,
बिन पुरुष के भला कैसे हो सकती है जीवन की कल्पना!


पुरुष नारी के जीवन का श्रृंगार है, पिता है, भाई है,
पति है,मित्र है , जीवन साथी है,जीवन का आधार है।


बिन पुरुष के अकेली नारी का अस्तित्व कहाँ,
नर -नारी मिलकर ही रचते एक नया जहान।


पुरुष तो सदा से ही रहा एक वट वृक्ष की जड़ों के समान,
जिसकी बाँहों के झूले में झूले कभी बहना,कभी बिटिया यहाँ।


नर- नारी पूरक एक दूजे के, दोनों में सामंजस्य ज़रूरी है,
बिन पुरुष के नारी भी अधूरी है,बिन पानी के जैसे नदिया सूखी है


गर बन भी जाए ईंट-गारे से सुसज्जित भव्य महल भले ही,
परन्तु बिन नर -नारी के प्यार से सिंचितमहल, घर बन पाता नहीं


समझ आपसी भावों को,करना है हमें सदा एक दूजे का सम्मान,
ईश्वर की इस अनुपम रचना का तभी रख सकते हैं हम मान।