सुन री आली,आई दिवाली


दीवाली आती है,मन उल्लास से सरोबार हो उठता है।इसका कारण है अयोध्यावासियों की वह उमंग जो भगवान श्रीराम के चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात अयोध्या आगमन पर उमडी थी।जैसे ही पता चला कि भगवान श्रीराम आने वाले हैं,भरतजी के नेतृत्व में अयोध्यावासियों का हुजूम मंगल गायन करते, बाजे बजाते नन्दिग्राम से चला। सारी प्रजा पुष्प वर्षा करती हुई आनन्द से नाचने लगी। सब जगह आनन्दोत्सव छा गया।श्रीमद्भागवत के (9/10/42)श्लोक में शुकदेवजी इस प्रसन्नता का वर्णन कर रहे हैं:-            


"धुन्वन्त उत्तरासड्गान् पतिं वीक्ष्य चिरागतम्।


उत्तरा: कोसला माल्यै किरन्तो ननृतुर्मुदा।।                     सर्वाधिक आनन्दित तपस्वी जीवन बीता रहे भरतजी हैं।वे भगवान को देखकर गदगद हो कर उनके चरणों में गिर पड़े।दोनों भाई गले मिले और दोनों के प्रेमाश्रु बहने लगे।भगवान के नेत्र जल से भरतजी का स्नान हो गया।इसके बाद सीताजी और लक्ष्मण सहित भगवान ने ब्राह्मण और पूजनीय गुरूजनो को नमस्कार किया।भरतजी ने भगवान की पादुकाएं ली, विभीषण ने श्रेष्ठ चंवर,सुग्रीव ने पंखा और हनुमानजी ने श्वेत छत्र ग्रहण किया।शत्रुघ्नजी ने धनुष और तरकस,सीताजी ने तीर्थों के जल से भरा कमण्डल, अंगद ने सोने का खडग और जामबन्त ने ढाल ले ली।इन सबके साथ भगवान पुष्पक विमान पर विराजमान हो गए, चारों ओर यथास्थान पूज्य माताएँ बैठ गयी,बंदीजन स्तुति करने लगे।श्रीमद्भागवत (9/10/45)में शुकदेवजी कह रहे हैं:-                      "पुष्पकोस्थोन्वित: स्त्रीभि: स्तूयमानश्च वन्दिभि: ।
/विरेजे भगवान् राजन् ग्रहैश्चन्द्र इवोदित: ।।
(अर्थात हे परीक्षित! उस समय पुष्पक विमान पर भगवान श्रीराम की ऐसी शोभा हुई मानो ग्रहों के साथ चंद्रमा उदय हो रहे हों।                


आइए,हम सब भी दीवाली के शुभ अवसर पर अपने मानसिक चक्षुओं से भगवान श्रीराम- सीता - लक्ष्मणजी की दिव्य झाँकी का दर्शन करें, और अयोध्यावासियों के साथ इस महोत्सव में शामिल हो जायें।अपने ह्रदय को अयोध्या बना लें ताकि प्रभु श्रीराम इसमें विराजमान हो सकें।                    


आप सबको सपरिवार दीवाली की मंगल कामनाएं।