वैश्विक भाईचारे के लिए दुनिया में  एक ही रिलिजन कीअवधारणा!


वैश्विक भाईचारे से दुनिया में इस्लाम और यूरोप के बीच शांति और सद्भाव का रास्ता निकल सकता है।इससे बड़ा और सरल सूत्र दूसरा कोई नहीं हो सकता।....


पिछले दिनों फ्रांस की राजधानी पेरिस में एक स्कूली अध्यापक सैमुअल पैटी ने अपनी कक्षा में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पाठ पढ़ाते हुए पैगंबर मुहम्मद साहब के  बने कार्टून दिखाये थे। इस पर फ्रांस में इतना विवाद हुआ कि चेचेन्या से शरणार्थी के रूप में आए युवक ने अध्यापक की गला काटकर जघन्य हत्या कर दी। सैमुअल पैटी ने कार्टून का न ही किसी सार्वजनिक स्थान पर प्रदर्शित किया और न ही उसका कहीं प्रकाशन किया था, केवल एक संदर्भ के रूप में कक्षा में कार्टून  दिखाया था। जिसे पहले ही लाखों लोग देख चुके थे। पिछले वर्षों में फ्रांस की पत्रिका शार्ली आब्दो में प्रकाशित होने पर यह घटना चर्चा में आई। यद्यपि उसके पहले यह घटना डेनमार्क के एक अखबार में छप चुकी थी। शार्ली आब्दो ने इस प्रकाशन के लिए बड़ी कीमत चुकाई। इसके लिए जिहादी आतंकियों ने 2015 में उसके 12 लोगों को मार दिया था,उसने पांच साल बाद उन्हें पुन: प्रकाशित किया।  एक ऐतिहासिक दस्तावेज तो बन ही गया है।
अध्यापक तो हर सभ्यता और संस्कृति में सम्माननीय होता है,मगर एकाध को छोड़कर किसी भी इस्लामिक देश ने सैमुअल की बर्बर हत्या की निंदा नहीं की। उलटे कुछ को तो हत्यारे के पुलिस द्वारा मारे जाने का अफसोस था। जब अपने अध्यापक की हत्या से आहत फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया दी,तो इस्लामिक राष्ट्रों में भूचाल आ गया। फ्रांस के राष्ट्रपति ने तथाकथित उदारवादियों द्वारा कहा जाने वाला वाक्य नहीं दोहराया कि ‘आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता।’ उन्होंने आक्रोश, अपमान और प्रतिबद्धता से भरे बयान में जिहादी आतंकवाद को रोकने के लिए हर कदम उठाने के निश्चय की घोषणा की। उन्होंने ‘इस्लामिक आतंकवाद’ का नाम लेकर यह कहा कि वे उनके राष्ट्र के भविष्य पर कब्जा करना चाहते हैं। तथ्य यह है कि इस घटना के बाद से फ्रांस में ही नहीं,सारे यूरोप में लोगों की सोच बदल गई है। यूरोप में लोग अब कहने लगे हैं कि उन्होंने जिनको शरण दी, वे अब पलटकर उन्हीं के मुंह पर ताले लगा रहे हैं और घृणा का जहर और हत्या की कुसंस्कृति फैला रहे हैं। वियना में आतंकी हमले के बाद ऐसे स्वर और तेज हुए हैं।


स्वतंत्रता,समानता और बंधुत्व को आधार मानने वाले फ्रांस में पिछले दस वर्षों में एक के बाद एक अनेक जिहादी आतंकी हमले हुए हैं। इनमें सैकड़ों लोग मारे गए हैं। पेरिस में सैमुअल पैटी की हत्या के बाद जिस नीस शहर में आतंकी हमला हुआ, वहां पहले भी भयानक जिहादी हमले हो चुके हैं। भारत ने फ्रांस के साथ एकजुटता दिखाई है। यह एक सही और साहसिक कदम है। आतंकवाद कहीं भी हो, उसका वैश्विक संदर्भ-स्नोत नष्ट किया ही जाना चाहिए और यह कार्य कोई देश अकेले नहीं कर सकता। पिछले कुछ दशकों में मध्य एशिया के मुस्लिम देशों से लाखों शरणार्थी यूरोप पहुंचे हैं। फ्रांस में यह संख्या सबसे अधिक आबादी का दस प्रतिशत है, क्योंकि उसके अधीन रहे अल्जीरिया और ट्यूनीशिया से नागरिकता प्राप्त कर चुके लोग इसमें शामिल हैं।यह एक कटु सत्य है कि इस्लाम को मानने वाले किसी इस्लामिक देश में जाकर बसना पसंद नहीं करते हैं,जबकि वहां के धनाढ्य देशों में भारत,श्रीलंका, फिलीपींस और अन्य देशों से जाकर मजदूरी करने वालों की संख्या तक यह धारणा रहेगी कि मेरा मत-मजहब ही सर्वश्रेष्ठ है तब तक विश्व शांति नहीं आएगी।
यदि कोई पंथ या पंथिक विचारधारा विविधता के प्रति टस-से-मस न होने वाला रवैया अपना ले तो हिंसा से बचना कठिन है। इससे बचने का केवल एक रास्ता है- प्रकृति प्रदत्त विविधता की स्वीकार्यता और सम्मान। इसे रंग,भाषा,पंथ,जाति, नस्ल,क्षेत्रीयता इत्यादि पर लागू करना ही होगा। इसमें सबसे बड़ा रोड़ा वह कट्टरता है, जो यह मानती है कि उसका सत्य ही सत्य है,बाकी सबको उसी में आना है। या यों कहें कि मेरा मत-मजहब ही सर्वश्रेष्ठ है, सभी को उसमें आना है और उन्हें लाना मेरा फर्ज है। जब तक यह धारणा रहेगी, तब तक विश्व शांति और सद्भाव की बातें केवल बैठकों और सम्मेलनों तक ही सीमित रह जाएंगी। इसके लिए भी अनेक मनीषियों ने रास्ते बताए हैं और अपने स्तर पर दृष्टिकोण परिवर्तन कर सफलता भी पाई है।


उदाहरण के लिए खान अब्दुल गफ्फार खान को याद किया जा सकता है, जिन्होंने अपने समुदाय को हर प्रकार की हिंसा से दूर कर अहिंसा के प्रति समर्पित समाज बना दिया। वह स्वयं समर्पित थे और हर नियम को मानने वाले मुसलमान थे, मगर अपने क्षेत्र की प्राचीन संस्कृति पर गर्व करते थे। वह शिक्षा और ज्ञान का महत्व जानते थे। उनके विचार यदि वस्तुनिष्ठता के साथ विश्लेषित किए जाएं तो इस्लाम और यूरोप के बीच शांति और सद्भाव का रास्ता निकल सकता है और वह विश्व शांति का आधार बन सकता है। उनका मानना था, ‘सब धर्मों के मूल तत्व समान हैं। केवल ब्योरा अलग-अलग है,क्योंकि हर मजहब अपने में अपनी उत्पत्ति स्थल के रंग और खुशबू संजोए होता है। ...मैं ऐसे समय को सोच भी नहीं सकता हूं,जब पूरी दुनिया में केवल एक ही रिलिजन होगा।’ वैश्विक भाईचारे के लिए इससे बड़ा और सरल सूत्र अन्य कोई हो ही नहीं सकता।