शब्द ब्रह्मास्त्र कैसे बनता है?

 



हलन्त ने गूगल की मायावी दुनिआ में प्रवेश किया है / अब कागजों को काला करने के दिन निकल चुके /पर गूगल की दुनिआ में भी एक नवजात पत्रिका को अपने पैरों पर खड़ा करना अकेले स्वामित्व से जुड़े व्यक्ति के उद्योग से संभव नहीं है। कोई कलमजीवी कितना भी बड़ा फन्ने खां बने परन्तु बिना पाठक के कोई पत्रिका प्राणवान नहीं रह सकती...विज्ञापनों का यूरिया पत्रिकाओं को जो हरियाल देता है वह इतनी स्थायी नहीं होती कि मीडिया महाबलियों के बीच कोई साधनहीन पत्रिका अपनी जड़ें जमा सके...पाठकों की जमीन से खड़ी हुई पत्रिका को कोई 'माई का लाल' उखाड़ नहीं सकता। आपकी एक क्लिक हमारा ईंधन बन सकती है। ...
हलन्त की कलम व्यावसायिक पत्रकारिता की चालू स्याही से नहीं चलना चाहती, हेराफेरी और लम्पटिया सूचनायें पहाड़ के निष्कलंक पाठकों तक चटपटा बनाकर पहुँचना भी एक तरह का मीडिया-अपराध माना जाना चाहिये। लोकजीवन और बुग्यालों नृत्यों के फोटुओं को नशीला बनाकर नेट पर भी परोसा जा रहा है। नेता और उनकी आस्तीनों में बैठे नोट खाऊ अभिनेताओं के साथ मीडिया गलबहियां डालकर एक अत्याधुनिक मगर खतरनाक दुकानदारी की नींव डाल रहे हैं।
एक आम पाठक यदि इन बड़े मुद्राराकछसों  को गंभीरता से नहीं लेता  तो उत्तरांचल के माई बाप बने लोग उसका अर्थ क्यों नहीं लगाते? ताकि सनद रहे उनकी खटिया खड़ी होने वाली है। अखबार पत्रिकायें और नेट के बड़े मुंह यदि मंुह बन्द करके अपने कानों में सरकारी अठन्नियां ठूंस रहे हैं, नग्नता के उत्तेजक पारे से यदि पहाड़ में लोकप्रियता और प्रसार संख्याओं के आत्ममुग्ध आंकड़े पार किये जा रहे हैं तो स्वयं पत्रकारिता के लिये आत्मघाती है। हमारे जीनियस युवकों के श्रम का शोषण कर उन्हें कैमरे की चारण शैली में निष्णात बनाया जा रहा है। पहाड़ की कलम को स्वयं उनके विरूद्ध खड़ा किया जा रहा है। अफसर और मीडिया एक नये राज्य को जिस बेशर्म तरीके से लूट-खसोट रहे हैं, उसे पहाड़ का आदमी अभी चुपचाप देख रहा है...यह सन्नाटा एक दिन राजनीति के सभी मोहक नारों को निगलेगा। पहाड़ कभी भी उबल सकता है। ऊपर से शान्त लगने वाले पहाड़ के अन्दर वह गुस्सा कब विस्फोट बनकर इस लूटतन्त्र के परखचे उड़ायेगा....भगवान जाने...।
हलन्त अपने पाठकों की ऊर्जा इकट्ठी कर अपने इस फोकटिया गूगल पेज को  कुरूक्षेत्र बनाकर उन सभी धनुर्धरों को आमन्त्रित करता है जो असली अपराधी की आंख को भेदना जानते हैं/चाहते हैं...हलन्त आपकी कलम को तोप बनाकर लोकतन्त्र के युद्ध में आग उगलेगी जिसकी लपट में कई लपेटे जाएंगे।
हमें आर्थिक सहयोग चाहिये। सत्यनिष्ठ नागरिकों का क्लिक  सहयोग हलन्त का ब्रह्मास्त्र बन सकता है। हम  ईमानदारी से और आपके जीवट के  सहयोग से  समाज का प्रतिनिधि चाहते हैं ...हलन्त आपके सक्रिय सहयोग की राह देख रहा है।