चट्टान से बात


क्या तुमने कभी चट्टान से बात की है?
शायद नहीं /गौर से देखो।
किसी सुन्दर पहाड़ी झरने के पास
यहाँ चट्टानें बात करती हैं।
ये बात सुनती हैं, बातंे सुनाती हैं
मैंने शान्त वादियों में
इन्हें नदियों से बातें करते देखा है।
ये, झरनों का संगीत सुनती हैं
हवा को गले लगाती हैं
खिलखिलाती है, मुस्कराती है,
चुप हैं पर बोलती हैं।
गर सुन सको तो सुनो
ये हृदय स्पन्दन सुनाती है।
चट्टानें विश्राम भी करती हैं
इन्हें पसन्द हैं 
बुग्यालों की बिछौने
और गुदगुदी घास के तिकोने।
इनके घर मिलेंगे घने जंगलों में
जहाँ ये रात के अन्धंरे में सोती हैं
और, सुबह उठती हैं 
सूरज के साथ। 
फिर बहते झरने में
मुँह धोना इनकी रोज की आदत है।
मैंने, देखा है इन्हें 
वेगवती धारा में नहाते
नदी के साथ अठखेलियां करते।
फिर ये खुली धूप में बदन सुखाती हैं
खुद को सजाती हैं, दिखने पर लजाती हैं। 
ये सजती है पास खिले फूलों से
और दूधिया फुहारों से /फिर ये बतियाती हैं, 
मैंने इनकी बातें सुनी हैं, 
मानवीय संवेदनाओं से भरी हुयी।
ये चिड़ियों से बात करती है। 
पूछती हंै, आज क्या-क्या हुआ? 
दिन कैसा रहा?
मौसम ठीक रहेगा या बारिश होगी?
चीटियां इनके पास रहती हंै 
छोटे-छोटे घर बनाकर
बाहर जाती हैं तो पूछकर।
ये चीटियों को हिदायत देती हैं 
घर जल्द आना
आज तेज बारिश होगी, 
सुबह चिड़िया ने बताया है 
बादलों से पूछकर।
कल चट्टान उदास थी,
                  दर्द का लिबास थी  
                कुरेदा तो छलक पड़ी 
फिर व्यथा कहने लगी।
हिरन सन्देशा लाया है 
कुछ आदमी जंगल काट रहे हैं
पहाड़ी के उस पार! 
सुना है, सड़क बनाएंगे
पहाड़ों को खोदकर,
चट्टानों को तोड़कर।
फिर मोटरें आएंगी, 
शोर मचाते हुये
धुंआ उड़ाते हुये।
तब चीटियां कुचली जाएंगी 
और चिड़ियायें उड़ जायेंगी 
शायद कस्तूरी छोड़ दें ये जगह
और मोनाल कुतरे जाएंगे।
कह नहीं सकते
काकड़ कहाँ जाएंगे/या
भरड़ मारे जाएंगे।
कपलसास की तैयारी है
खरगोश का दिल भारी है
जहाँ न पहुंच सके ये आदमी
उस जगह की तलाश जारी है
लेकिन! 
चट्टान को यहीं रहना है
फिर बारूद से उड़ना है
सिर्फ पत्थर ही तो है
बस टुकड़ों में बंटना है।
बांटना आदमी की फितरत है
इसने क्या क्या नहीं बांटा?
धरती बांटी, सागर बांटे
देश-द्वीप और कोने बांटे
दीवार खींचकर सरहदें बाटीं
और गगन की छतरी बांटी
सब खेत हो गये टुकड़े-टुकड़े 
आंगन और चैबारे बांटे
जब चूल्हें बंट गये घर घर सारे
तब घर-गांव से बाहर आया
सिर्फ धर्म जाति का नम्बर आया
अब चट्टानों की बारी है 
मरने की तैयारी है 
सावधान!
जंगल जड़ी बूटियों!
निर्माण निरन्तर जारी है
निर्माण निरन्तर जारी है