देवेन्द्र शास्त्री -एक अनथक साधक


समाजसेवी, चिन्तक, राजनेता स्व0 देवेन्द्रशास्त्री एक लम्बी जीवनयात्रा के पश्चात एक वर्ष पूर्व गोलोक वासी हो गये। उनका जीवन एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में रहा। वे राजनीति में रहने के बावजूद भी पहाड़ के सामाजिक विकास को समर्पित थे। ग्रामीण विकास की उनकी मौलिक सोच थी। वे पहाड़ के पहले प्रचारक थे जिन्होंने राष्ट्रीय स्वयँसेवक संघ के पूर्णकालिक कार्यकर्ता के रूप में समाज कार्य को अंगीकृत किया। 'एक अनथक साधक' श्री देवेन्द्र शास्त्री जी के जीवन, उनके कृतित्व पर आधारित एक लघु पुस्तिका है। प्रस्तुत रचना में एक निर्धन पर्वतीय परिवार से प़ढ़ाई के लिये घर छोड़ते हुए, जीवन के अभावों को सहते हुए, संघर्षो को झेलते हुए भी एक युवा ने कैसे समाजसेवा को अपने जीवन का लक्ष्य बनाया इसका आद्योपात्त वर्णन है। राजनीति के शीर्षपुरूष तथा भारतीय जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा0 श्यामाप्रसाद मुखर्जी अपने इस युवा कार्यकर्ता देवेन्द्र शास्त्री द्वारा प्रेरित ग्राम विकास की प्रतीक राजावाला नहर को देखने, उद्घाटन करने 1952 में देहरादून पधारे थे। डा0 मुखर्जी ने शास्त्री जी के इस रचनात्मक कार्य का देश भर में अनेक स्थानों पर प्रेरक वर्णन किया। 1947 में देश विभाजन के समय अविभजित पंजाब में घटित दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं में संघ के स्वयँसेवकों द्वारा जान हथेली पर रखकर पीड़ितों की जो सहायता की गई उसमें देवेन्द्र शास्त्री अग्रणी थे। उनके सहयोगियों के इस शोर्य व साहस की चर्चा देश की अनेक पत्रपत्रिकाओं, ऐतिहासिक ग्रन्थों में हुई है। देवेन्द्र शास्त्री राजनीति में रहे, चुनाव लड़े, विधायक बने किन्तु एक साधक के रूप में राजनीति को उन्होंने सेवा का माध्यम बनाया। प्रसिद्ध समाजसेवी तथा उनके मित्र डा0 नित्यानन्द जी ने शास्त्री जी के महाप्रयाण पर जो पत्र प्रेषित किया, उसमें उल्लिखित वर्णन उनके निश्छल जीवन का एक बड़ा प्रमाण  है। 56 पष्ष्ठों के इस संग्रह में श्री देवेन्द्र शास्त्री के जीवन की गाथा संग्रहीत है। यद्यपि किसी भी महापुरूष का यशास्वी जीवन सीमित पष्ष्ठों पर उकेरना न्यायसंगत नहीं है तो भी पुस्तिका के रूप में यह प्रयास आगे आने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं, आगामी पीढ़ी के लिये अवश्य मार्गदर्शक होगा, यह विश्वास है। इस संग्रह के सम्पादक प्रेम बड़ाकोटी ने अपने सम्पादकीय लेख में आग्रह किया है कि पाठक इस पुस्तक को प्रारम्भ से अन्त तक अवश्य पढ़ें तभी इस प्रयास को सार्थकता प्राप्त होगी। पुस्तक का प्रकाशन सहरनपुर इलैक्टिक प्रेस ने किया है।