गंगा स्नान
 

 

गंगा स्नान

पाप -पुण्य नहीं,

आस्था का प्रश्न  है |

देखा है मैंने

हजारों गरीबों को,

फटे हाल कपडे

भूखा पेट,

बूढ़ा भी चलता

लाठी को टेक |

मन में लगन

स्नान की धुन

भगवान में उसकी

आस्था सघन |

सर पे थी पोटली

पाँव  था चोटल

शरीर थक गया था पर

मन में उमंग थी |

कार्तिक का महिना

सर्दी घनी थी

गंगा का पानी

बर्फ सी जमी थी |

हर-हर गंगे एक मंत्र ने

उसका उत्साह बढा डाला

बर्फ से ठन्डे पानी को

शीतल जल बना डाला |

कर स्नान हुआ वह धन्य

ईश्वर का आभार किया

पाप -पुण्य नहीं विचारा

गंगा का आभार किया |