रसोई गैस
भड़का रही आग
सड़कों पर।
जब भी मिला
होड़ लेता उत्साह
भ्रष्टाचार का।
नापाक रूहें
कोई तो करे इन्हें
शीशी में कैद।
एक छलांग
हार गया ब्रिअेन
....सावरकर।
कल ही सहा
पलायन का दर्द
दर्द आज भी।
समाज सेवा
अब एक धंधा भी
धूल झोंक के
मोतिया आंख
राजनीतिक चश्मा
हरा ही देखे।
कहां कोयल
काग का ही मौसम
आया बसन्त।
आज की नारी
कहां है बदलाव
भाग्य वैदेही
दधीचि की यही तो
सबसे बड़ी पीड़ा
दान की अस्थियों से
इन्द्र की कन्दुक क्रीड़ा।