खुद


आंसू नी रै अंाख्यों मा
सांस नी रै काख्यों मा,
जब बिटीन हरची गै तू
यूं उदासी पाख्यों मा,,
सुबेर उठिक पोतला भि दुरू जांदना
अपणो क खातिर 
सैरा दिन फिरदा न,
ब्याखनि बगत सि भि बौड़ि एगे डेरा मा,,
दगड्या विचरा सबि गयां काम धाणी मा
ग्वेर-घसेरा भी लग्यां छ 
घास पाणी मा
खुद मं तेरी बुढया हवेगी 
भरी ज्वानी मा,,
बालपन गै, ज्वानी गै, 
बुढापु छै धै लगाणु
अपड़ा-अपड़ा नि रै 
बिरणों म छौं रूसाणू
बिरणों कि खातिर हि 
तू ऐ जा घार मा,,
आस सुखि, सांस सुखि, 
हाड़ मांस भि सुखि गैनि
गौला पाणि नि छ जाणू 
पेट मा नि अन्न दाणि
गौला भेंटि जा आखिर बार 
गौदान क बाना मा,,
आंसू नी रै अंाख्यों मा
सांस नी रै काख्यों मा,