मेरा गाँव -भिगुन


अपने पूर्वजों के मार्गदर्शन एवं स्वयं की श्रम साधना से समाज एवं देश-प्रदेश को दिशा, दशा और दृष्टि देने वाला है यह भृगु वन भिगुन गांव। जहाँ एक ओर सरकार पर्यावरण को बचानेे के लिऐ लाखों-करोड़ांे रुपये खर्च करती है, तो वहीं इस गांव की माहिलाओं ने लाखों पेड़ांे को श्रमदान कर जन्म दिया हैै। गांव की कुल आबादी 1000 के आस पास है जिसमें कि 80 प्रतिशत लोग पलायन कर चुके हैै मात्र 20 प्रतिशत लोग ही निवास करते हंै और इन्हीं लोगों ने पर्यावरण के क्षेत्र मेें इतना उल्लेखनीय कार्य किया है जो आज प्रदेश और देश के लिए प्रेरणा का स्तम्भ है। ग्राम भिगुन टिहरी जनपद के विकासखण्ड भिलंगना के सुरम्य बालगंगा घाटी के बूढा केदार के पूर्व में तथा प्रसिद्व तीर्थ बालखिलेश्वर मान्दिर के दक्षिण में वसा गांव है।  
समुद्र तल से 5496 फीट की ऊँचाई एवं घनसाली से 32 कि0मी0 दूर बसा यह गांव आज सभी प्रकार के वानस्पतिक एवं सन्तुलित वन विकास से आच्छादित है। गांव में लगभग 15 जल स्त्रोत एवं विभिन्न प्रकार की प्रजातियों के वृक्ष हंै। गांव की भौगोलिक स्थिति आज भी शोध का विषय है, गांव केेे ऊपर हजारों विशाल शिला खण्ड एवं गुफाएं हैं जो कि मन में एक कौतुहल सा पैदा कर देता है कि इतने बड़े-बडे़ पत्थरों का रेला कब और कहां से आया। इस भूस्खलन के बाद अनुमान लगाया जाता है कि जो दूसरी बस्ती यहां आकर बसी होगी, खतरे को देखकर पूर्वजों के द्वारा बांज के पेड़ों का रोपण किया गया जिससे आज मूल गांव भिगुन सुरक्षित है। किन्तु 15 अगस्त 1975 को गांव के दूसरे उपग्राम के ऊपर भयंकर भूस्खलन हुआ जिससे 50 परिवारांे के मकानांे एवं खेतों में भयंकर मलवा आया। भविष्य की अनिष्ठ की आशंका को देखकर महिलाओं ने वृक्षों का रोपण किया और यह प्रण लिया कि हम इन वृक्षों को बच्चों की भांति पालेंगे। आज उसी का परिणाम है कि जंगल अपनी यौवन अवस्था पर है। जंगल की मनोहरता को देखकर प्रभागीय वनाधिकारी द्वारा गांव की माहिलाओं को सम्मानित एंव मा0 जिला पंचालत अध्यक्ष टिहरी द्वारा भी पुरस्कृत किया गया। वहीं वनविभाग के डीएफओ साहब का कहना है कि अगर गांव में वन पंचायत सरपंच का गठन हो जाता है तो वन विभाग प्रत्येक साल वन सुरक्षा हेतु आथर््िाक मदद देते रहंेगे। इसके लिऐ प्रकल्प प्रमुख श्री बिष्णु प्रसाद सेमवाल का अथक प्रयास रहा। वर्तमान में भिगुन गांव के आस-पास के गांव के कुछ असामाजिक तत्व सघन वन क्षेत्र को क्षति पहंुचा रहे थे। विगत 10-15 सालांे से वन विभाग से वन सुरक्षा हेतु प्रकल्प प्रमुख द्वारा निवेदन किया जाता रहा। फलस्वरुप प्रभागीय वनाधिकारी टिहरी के द्वारा आरक्षित वन क्षेत्र का स्वंय भ्रमण किया गया और आरक्षित वन क्षेत्र को देखकर मातृशाक्ति एवं प्रकल्प प्रमुख श्री बिष्णु प्रसाद् की भूरी-भूरी प्रशंसा की तथा ग्रामवासियों द्वारा आराक्षित सिविल/वन क्षेत्र सुरक्षा हेतु एक चैकीदार की स्वीकृति प्रदान की। वहीं गांव वालों का कहना है कि इतने बडे जंगल में इसके आस पास के गांव भारी मात्रा में जंगलों को नुकसान पहुंचा रहे हंै। गांव वाले आज भी पपीहा पक्षी की तरह स्वाती नक्षत्र के इन्तजार में है कि कब सरकार रुपी बादल विकास की धार बरसाकर सूखी पड़ी गांव की आस को बुझा सके। किन्तु प्रशासन ने आज तक कोई संदेश तक नही भेजा। वही सामाजिक कार्यकर्ता श्री बिष्णु प्रसाद सेमवाल जी का कहना है कि हमने जंगल को बच्चे की भांति पाला है उसी का परिणाम है कि आज वह अपनी यौवन अवस्था पर खड़ा है। उन्हांेने यह भी कहा कि जिस प्रकार हर एक माता-पिता अपनी बच्चे से कुछ पाने की आस रखते है, आज हमें गर्व है कि हमारा पाला हुआ बच्चा इस पड़ाव पर खड़ा है कि वह आज हमें कुछ देने के लिऐ आतुर है। पर्यावरण केे क्षेत्र में तभी नया इतिहास रचा जा सकता है जब देश-प्रदेश की सरकार इस क्षेत्र में काम कर रहे लोगों को प्रोत्साहित और सम्मानित करे और यही सम्मान भारत के सिर मुकुट हिमालय की रक्षा में ब्रह्म अस्त्र पैदा होगा और लोगों के लिऐ एक प्रेरणा का स्रोत बनेगा। और अन्य लोग भी इस मुहीम मेें जुट जायंेगे। भिगुन गांव आज प्राकृतिक सौन्दर्य से और वृक्षों के विपुल भण्डार से सुशोभित है जो जिला, प्रदेश और देश के लिऐ एक प्रेरणास्पद हैै।