दोहा द्वादशी

सावरकर जिन्ना हुए, दुश्मन हुए पटेल।
देशद्रोह फैला रहा, यह वोटों का खेल।।
कटी जवानी अण्डमन, दिये देश हित प्राण।
समझें क्या उसकी कथा, क्या देंगे सम्मान।।
दीवारों पर जेल की लिख पे्ररक साहित्य।
सावरकर था अण्डमन में अचर आदित्य।।
राष्ट्र भक्ति, बलिदान का त्याग-वीरता नाम।
सावरकर स्वातंत्र की उज्जवल ज्योति ललाम।।
चैरासी में जो हुआ सिक्खों का संहार।
मनमोहन पी॰एम॰ बना, हरा सकल अंधकार।।
एमरजैन्सी की कथा भूल न सकता देश।
एक व्यक्ति ही राष्ट्र था, राष्ट्र विकल सविशेष।।
न्याय न नारी को मिले, सो वह किसकी आस।
राम-राज्य में ही मिला, सीता को वनवास।।
चिने दिवारों मे गए, जिन आंखों के लाल।
किये मूल से अलग क्यों, विस्मय हुआ कमाल।।
हुआ राम का नाम भी लेना अब अपराध।
राजनीति में आ घुसे डान, माफिया, व्याध।।
बिना खड्ग या ढाल के देश हुआ आजाद।
चार लाख मारे गये, है किसको अब याद।।
न्यायपालिका पर सदा होता है आघात।
अफजल को फांसी न हो, रहें लगाते घात।।
सावरकर तो त्याज्य है, अब्दुल्ला गलहार।
लौह पुरूष सा, लाल सा लगता नाम विकार।।