उत्तराखंड

हैंगर में लटकी एक रुमाल
जिसे धोना-सुखाना
जनता की जिम्मेदारी और
नाक पोंछ जाते राजनेता
बारी-बारी से,
इसके भाग्य में फकत
थिगला होते जाना है।
कुतर रहे इस रुमाल को 
हर किनारे
भू-शराब-वन-धन माफिया
बाँधों के बोझ को
भारी कर रहा 
राजनीति का गुरुत्वाकर्षण
खनन माफिया की 
पौ-बारह।
उत्तराखंड का हैंगर अटका
दिल्ली दरबार में, जहाँ
इसकी कोई औकात नहीं
जनता की कोई बात नहीं
रुपये-शराब-क्षेत्र-जाति में 
बिकते वोटर
मंत्रीपद में बिकते निर्दलीय
जिन्हें 'माननीय' कहने का
अब कतई नहीं करता 'जी'।