विकास के लिए

उत्तराखंड पर महाकाल का तांडव बनकर टूटी बाढ की यह त्रासदी एक दुर्घटना भर नहीं है, जिसने देखते ही देखते जिंदगी को रौंद दिया। बल्कि उससे कुछ अधिक एक महत्वपूर्ण सबक है कि एक परिवार में एक ही माता पिता के घर में जन्म लेने के बाद भी बच्चों के गुण स्वभाव विचार एक दूसरे से भिन्न होते हैं। पृथ्वी की इस मानसिकता को ध्यान में रखते हुये ही पहाड में जब हम विकास की आधारशिला रखेंगे तो हम उसके साथ न्याय कर पायेंगे। जिस भू ने हमें जीवन दिया है उसका कुछ दाय हम लौटा पायेंगे। व्यापार हर वस्तु का नहीं होता।, हम प्यार और नींद लाखों क्या करोडों रूपये देकर भी नहीं खरीद सकते।  हर स्थान को मौजमस्ती और मनोरंजन का केन्द्र नहीं बनाया जा सकता। तीर्थयात्रा और पर्यटन में अंतर कर हम शहर गाॅव का विकास करें तो जीवन का सही आनन्द लभी पायेंगे। हमारे ऋषिमुनियों ने बरसों पहले भौगोलिक दिव्यता के कारण पहाड पर पवित्र भाव के साथ जो देवस्थान निर्मित किये थे उन्हांेने वे शहर के कोलाहल दूर जिंदगी की भागदौड से थके हारे आदमी को सुख सुकून और शांति का वातावरण दे जीवन से मोक्ष की राह दर्शाने के लिये बनाये गये थे। हमें इस बात का ध्यान रखना होगा और उनके उस स्वरूप् को बचाये रखने की कोशि ही प्र्यावरण रक्षा का आधार है। हम जानते हैं जीवन केवल केवल भोग नहीं है। ऐसे बहुत से रोग हैं जो बिना दवा के केवल कुछ दिनों की साफ हवा पानी मिलने से ठीक हो जाते है। डाक्टर लोग ऐसे रोगियों को कुछ दिन के लिये साफ हवा पानी वाला पहाड प्रवास बता रोगमुक्ति का मार्ग दिखाते हैं। और रोग ठीक होते देखें गये है। ये स्थान ऐसे रोगियों को राहत देने के मन्दिर हो सकते है। भागदौड से थकी हारी अशांत जिंदगी की शांति की प्यास मिटाने के लिये पहाड शांति के स्थल व आध्यात्म के साधक के लिये ये तपोभूमि है।
देश के राजनेता व नीति नियन्तां मिल बैठ जिस दिन निस्वार्थभाव से नदी पहाड जंगल की प्रकृति पर विचार करना सीख जायेंगे। इसके नैसर्गिक सौन्दर्य स्वरूप को प्रदूषण मुक्त बनाये रख कुछ सार्थक प्रयास करते दिखेंगे तब ही वे पहाड का कुछ हित कर पायेंगे। अन्यथा जनता उन्हें वोट के सौदागर ,राजनीतिक लुटेरे जो मन आयेगा कहंेगे नेतामत्री को ंयह बात याद रखनी होगी। वहाॅं भी मौजमस्ती के केन्द्र बना हमने भीड की हलचल भर हवापानी प्रदूषित कर दिये तो स्वास्थ्यलाभ और मानसिक शांति के लिये कहाॅं पायेंगे। बिना सही सोचे समझे व्यापारिक मनोवृत्ति को आगे रख किये गये अंधाधुंध असंतुलित विकास का ही  उत्तराखण्उ को यह दण्उ मिला है कि सोलह जून की रात केदारनाथ में हजारों तीर्थ यात्री मौत के मुह में समा गये। उत्तराखण्ड के उत्तरकाशी चमोली और रूद्रप्रयाग के पहाडों में बादल फट नदियों में बाढ बन बहना ,प्रलय बन लोगो पर मिटाने को अग्रसर हुये जलप्रवाह मं पत्थर धूल रेत के साथ आये तीव्र सैलाब और भयंकर बरसात में पहाड का अनवरत कटना ,पत्थर मिटटी रेत का नदियों का बहना जिसमें आदमी डूबने के साथ उसकी जिंदगी बचाने बसाने के साधन घर दुकान पुल मकान सडकों का टूटकर खंड खंड होना यह सब कुछ अनायास नहीं हुआ। आदमी के स्वार्थ ने धीरे धीरे इसकी बुनियाद रखी थी जो इस सदी की भयंकरतम बाढ का प्रकोप बन पहाड पर जिंदगी की तबाही के निशान उकेर गई।