उत्तराखंड  परिपेक्ष में  प्याज का इतिहास
               

इतिहासकार बताते हैं कि प्राचीनतम मानव जंगली  प्याज का सेवन करता था।  किन्तु प्याज का जन्म कहाँ हुआ पर अभी भी एकमत है। 

इरान -पश्चमी पाकिस्तान में शायद सबसे पहले प्याज का कृषिकरण (5000 BC) हुआ।

इजिप्ट /मिश्र में पिरामिड में मृत राजा (1160 BC ) के मुंह में प्याज पाया गया है।

बाइबल व कुरान में प्याज का उल्लेख है। 

चरक संहिता में उल्लेख है। 

प्याज को संस्कृत में पलांडू कहते हैं और सुश्रवा के वैदकी ग्रन्थ में पलांडू नाम प्याज के  प्रयोग हुआ है।

संस्कृत में प्याज के कई नकारात्मक नाम भी हैं बताते हैं कि भारत में प्राचीन काल अथवा वैदिक काल से ही बहस  रही है कि प्याज सेवन सही है  गलत।

 

मौर्य काल में (300 BC -75 AD ) लिखे गए कौटिल्य के अर्थ शास्त्र में प्याज का नाम नही है, कौटिल्य ने  मूल भोज्य  वनस्पति को , पिंडालुका (अरबी ) व वज्रकंद कहा है।

उत्तराखंड में प्याज और लहसून प्राचीन काल से ही अंग रहा है

  चरक संहिता , भावप्रकाशम , धन्वंतरि निघण्टु , हरित संहिता , किव्यादेव निघण्टु , संग्राम निघण्टु , में प्याज का उल्लेख है। 

 

 

आइन -ए -अकबरी (सत्तरहवीं सदी ) में भी प्याज का जिक्र है।

 

प्याज  आधुनिक राजनीति को भी प्रभावित करने में सक्षम है।