उत्तराखंड में चिकत्सा पर्यटन  इतिहास 


(काश्यप  संहिता (वृद्धजीवकीय तंत्र ): उत्तराखंड में  मेडिकल टूरिज्म का एक उज्जवल अध्याय) 


  खस , किरात द्रविड़ संस्कृति काल से ही  उत्तराखंड मेडिकल टूरिज्म हेतु प्रसिद्ध रहा है।   महाभारत , बौद्ध ,अशोक साहित्य ,  पुराण आदि शास्त्रों में तो उत्तराखंड में मेडिकल टूरिज्म के कई उदाहरण हैं।  इसी तरह कालिदास , पाणिनि साहित्य , चरक संहिता में भी उत्तराखंड में विकसित मेडिकल टूरिज्म के कई उदाहरण हैं , इसी मध्य एक अन्य संहिता में उत्तराखंड में विकसित मेडिकल टूरिज्म का एक उज्ज्वल पक्ष मिलता है। 


 मारीच काश्यप कृत काश्यप संहिता वास्तव में संसार में बाल चिकित्सा (कुमार भृत्य तंत्र )  का पहला ग्रन्थ है और माना  जाता है है कि महर्षि काश्यप ' बाल चिकित्सा के पितामह ' हैं।  काश्यप संहिता में स्थान या अध्याय (books ) हैं।  सभी अध्याय शिशु चिकत्सा संबंधी हैं।  काश्यप संहिता की रचना चरक संहिता जैसी ही है अतः  कहा जा सकता है कि काश्यप संहिता का रचना काल चरक संहिता व शुश्रुत संहिता के बाद का  है।  याने महर्षि मारीच कश्यप को बाल चिकित्सा का जन्मदाता माना जाता है। आयुर्वेद इतिहासकार जैसे अत्रिदेव    विद्यालंकार या डा अजय कुमार व डा टीना सिंघल आदि अनुसार काश्यप संहिता का रचना काल 600 ईशा पूर्व मानते हैं।  काश्यप संहिता में लशुन कल्प व पलांडू प्रयोग से पता चलता है संकलन व सम्पादन तीसरी  सदी के लगभग ही हुआ  है।  


  मूल काश्यप संहिता काफी बड़ी संहिता थी व स्मृति संस्कृति (एक विद्वान् रटकर उसे अन्य शिष्यों को स्मृति अनुसार वितरित करता था ) के कारण कम विद्वान् ही काश्यप संहिता का प्रचार करते थे।  वास्तव में काश्यप संहिता जो बाल चिकित्सा हेतु महत्वपूर्ण तकनीक व ज्ञान था का प्रचार प्रसार बंद ही हो चला था।  तब ऋषि ऋचीक के पांच वर्षीय पुत्र जीवक ने वृहद काश्यप संहिता का संक्ष्प्तीकरण किया।  जब कनखल (हरिद्वार )   में गंगा तट पर चिकित्सा ऋषियों की एक बड़ी सभा (Medical Conference ) हो रही थी (संभवतया दूसरी सदी या तीसरी सदी में ) तो पंच वर्षीय ऋचीक पुत्र जीवक ने काश्यप संहिता के लघु रूप को प्रस्तुत करना चाहा  तो आयुर्वेद विद्वानों ने बालक की बात सुनने से इंकार कर दिया कि बालक कैसे गहन विषय पर अपनी सम्मति दे सकता है।  जीवक उसे समय सबके सामने  गंगा में डुबकी लगाने चले गए।  कुछ समय  उपरान्त बाल जीवक वृद्ध रूप में सभा में उपस्थित हो गए।  तब जीवक ने काश्यप संहिता का संक्षिप्त रूप सुनाया।  इसीलिए काश्यप संहिता को वृद्धजीवकीय कौमर्य भृत तंत्र या संहिता भी कहते हैं  . 


  इस सभा के पश्चात ऋचीक के वंशज वात्स्य ने कश्यप संहिता का प्रचार प्रसार किया अर्थात शिष्य बनाये जिन्हीने रत कर संक्षित काश्यप संहिता का प्रचार किया।  प्रचार प्रसार का ही फल था कि मध्य काल में काश्यप ग्रंथ का अनुवाद चीनी भाषा में भी हुआ 


काश्यप संहिता को प्रकाश में लाने का श्रेय नेपाल राजगुरु हेमराज शर्मा को जाता है।  


  उपरोक्त चिकित्सा सभा संदर्भ से साफ़ जाहिर है कि चिकित्सा  शास्तार्थ  सभाएं उत्तराखंड में होते रहते थे व चिकित्सा पर्यटन का एक उज्वल अध्याय कश्यप संहिता का जीवक  द्वारा संक्षिप्त पाठ है।   


 मेडिकल कॉन्फरेंसेज विकसित मेडिकल टूरिज्म का एक महत्वपूर्ण पक्ष है और काश्यप संहिता भी प्राचीन काल में उत्तराखंड में  विकसित मेडिकल टूरिज्म का एक उज्ज्वल उदाहरण है।  


    Copyright @ Bhishma  Kukreti 2020